सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
कई साल पहले भारत के एक राज्य मगद में नन्द शासक के अराजक शासन के विरुद्ध एक शिक्षक आचार्य विष्णु गुप्त द्वारा एक जन आंदोलन खड़ा किया गया। जो कालान्तर में नन्द वंश के पतन का कारण बना जिसने भारत को चन्द्रगुप्त जैसा राजा दिया और भारतीय राजनीति की संस्कृति में चाणक्य शब्द को महत्वपूर्ण बनाया। अब ना वो मगद है और राजनीति की वो मर्यादाएं और शैली वर्तमान में समाप्त हो गई है और युग पुरूष चाणक्य का नाम अब उन छिछोरें और टुच्चे नेताओं के लिए अलंकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जो अपने घटिया चरित्र के कारण सही अर्थो में स्थापित गुंडे या बदमाश कहलाने की भी क्षमता नहीं रखते है।
राष्ट्रीय स्तर से लेकर ग्रामीण अंचल तक इन दिनों राजनीति में चाणक्यों की भरमार है। हर नेता चाहता है कि उसके उठाई गिरी के धंधो से अलग उसके समर्थक उसे चाणक्य के रूप में समाज में स्थापित करें। सरकारी-गैरी सरकारी मिडिया भी इस तरह के चाणक्य को उनकी घटिया चालों को दूर गामी परिणाम लाने वाला प्रमाणित कर स्थापीत करने में लगे रहते है। भारत में शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल होगा जिसमें कुछ लाख से कम चाणक्य न मिल जाए। इन चाणक्यों को स्वयं नहीं मालूम है कि जिस दलाली की धंधे को सार्थक बनाने के लिए वे राजनीति में आये है। वह राजनीति उन्हें राजनीति का पितामहा बनाकर चाणक्य के रूप में स्थापित कर देगी।
जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर और राजनीति के संस्कारों से दूर इन चाणक्यों की महिमा इनके दलाली के कामों के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है। ये चाणक्य अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए अपनी राजनैतिक चालों को इस तरह नियंत्रित करते है कि जिस दल या देश में इनका अस्तित्व है वहीं अपनी अंतीम सांस लेने लगता है। 
प्रबंधन राजनीति के जानकार मानते है कि प्रबंधन शैली में विक्रय प्रतिनिधि वास्तव में आज चाणक्य बन रहा है। शिक्षा के नाम से शून्य राजनैतिक संस्कारों से दूर ये चाणक्य देश के प्रत्येक गली-चैराहे में एक सिमित समूह में अपनी मान और प्रतिष्ठा को स्थापित कर रह है। इतिहास बताता है कि आचार्य विष्णु गुप्त ने अपने जीवन काल में भारत को एक जुट रखने के लिए और संपूर्ण राष्ट्र के रूप में उसको प्रतिष्ठित बनाने के लिए किस तरह की नीतियों का उपयोग किया था। चाणक्य नीति के नाम पर आज एक छोटी पुस्तक उक्त नीतियों के सार संग्रह के रूप में प्रचलित है जिसे पूरा पढ़ पाना गली चैराहों में घुम रहे चाणक्यों के लिए एक असंभव कार्य है। 
राष्ट्रीय स्तर से लेकर ग्रामीण स्तर तक चंद पैसों के लिए बिक जाने वाले चाणक्य भारतीय राजनीति को छोड़िये अपने आस-पास की राजनीति से भी भंलि-भाती परिचित नहीं होते। इनमें से तो कई चाणक्य तो तड़ीपार है और शेष बचे हुए अपनी गतिविधियों से तड़ीपार होने की कगार पर खड़े हुए है। चाणक्यों की यह जमात वर्तमान राजनीति में बहुत बढ़ चुकी है विवेकहीन मिडिया इन चाणक्यों को बार-बार घेर कर राजनीति के मंच के केन्द्र पर ले आता है। बड़े राजनेता कहलाने वाले जनाधार खो चुके नेता भी अपने राजनैतिक अस्तित्व के लिए इन पर आश्रित है। वे राजनैतिक दल जो स्वयं को जनता में सर्वाधिक लोकप्रिय मानते है इन्हीं चाणक्यों के भरोसे अपना जीवन निर्वाह कर रहे है। राजनीति की बदलती हुई परिभाषा संभतः बाजार में घुमते हुये इन चाणक्यों के कारण ही समाप्त की और जा रही है। राजनीति सेवा का का विषय है और जन कल्याण की भावना उसके मूल में है इससे अलग हटते हुए इन चाणक्यों ने राजनीति को व्यक्तिगत लाभ, परिवार पोषण और कृतिम लोकप्रियता का माध्यम बना दिया है। भारत में संभतः एक या दो ही ऐसे राजनीतिक चिंतक होंगे जो बुद्धि, शक्ति और धन के सामन्जस्य को स्थापित करके राष्ट्र के विकास की दिशा में आगे बढ़ने की योजनाएं बनाते होंगे। वर्तमान राजनीति में अब या तो कोई आधारहीन नेता का चमचा है या देश को निरन्तर आर्थिक विपन्नता की और ले जाने वाले किसी धन कुबेर का दलाल।