सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग स्थानों में लगने वाली जन प्रतिनिधियों की मंडी ने अब यह सोचने के लिये बाध्य कर दिया है, कि निर्वाचित प्रतिनिधि समाज में अपना सम्मान स्वयं कायम रखने का इच्छुक है कि भी नहीं। लोकतंत्र में जन सेवा के नाम पर खुद पर बोली लगाने के लिए प्रस्तुत करना भारतीय राजनीति का विश्व के सामने एक नया उदाहरण है। कुछ हजार करोड़ रूपये खर्च करके किसी भी राज्य, केन्द्र या स्थानीय जनतांत्रिक प्रणाली को अब ना सिर्फ खरीदा जा सकता है बल्कि इच्छा अनुसार उपयोग करके फेका भी जा सकता है। लोकतंत्र के इस अवमूल्यंन पर अब संवैधानिक केन्द्रीय ऐेजेंसी भी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके किसी एक के पक्ष में दूसरे को डराने का काम करने लगी है।
राजनीति के बदले हुए संदर्भो में नेता कहे जाने वाले प्राणी की आंखों में शर्म, हया सब कुछ गायब कर दी है अब रह गया है तो षडयंत्र। उसमें सामाजिक सारोकारों या समरसता कोई गुनजाइश नहीं है। बडे-बडे निजी हवाई जहाजो में पुलिस के संरक्षण में ढ़ोकर ले जा रहे अब जनप्रतिनिधि अब पशु मंडी के उन बकरों की तरह हो गये है जिन्हें ईद के मोके पर कुर्बानी के पहले अच्छा खिला पिलाकर तैयार किया जाता है। लोकतंत्र का सबसे भद्दा मजाक इन दिनों महाराष्ट्र में चल रहा है। ठीक मध्यप्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी एक सरकार को गिराने के लिए बड़ी लम्बी लड़ाई लड़ी जा रही है। जिसमें अभी विधानसभा के अधिकारों और न्यायपालिका के सर्वमान्य निर्णय तक पहुंचना शेष है।
अंत क्या होगा यह लगभग सबको मालूम है। पर क्या यह षडयंत्र महाराष्ट्र में समाप्त हो जायेगा, ऐसा नहीं लगता। क्योंकि अभी कुछ अन्य राज्य इस विद्रोह के लिए अभी खाली पड़ी हुई तिजोरियों में लगे हुए जालों को साफ कर रहे है। कुल मिलाकर लोकतंत्र के भरोसे लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर समूचा देश इन नेता प्रतिनिधियों के रूप में किन्ही अज्ञात ताकतो के हाथों में बिकने के लिए तैयार है। तकाजा केवल समय का है उपयुक्त समय पर ही सारी परिस्थितियों को देखकर खरीदारों का षडयंत्र नई मंडियों में प्रारंभ होगा। एक प्रश्न यह जरूर रह जायेगा कि 75 साल की आजादी के बाद क्या अब भारत पुनः लोकतांत्रिक गणराज्य की शक्ल को कायम रख पायेगा या उद्योगपतियों द्वारा फेके गये इस जाल में फिर कोई इस्ट इंडिया कम्पनी आने वाले बकरों की खरीदारी कर लोकतंत्र को कलंकित करेगी।