राजैनतिक मर्दानगी का संकेत दे रहे हैं - म.प्र. के दोनों दल
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): बहुत संनाटा है मध्यप्रदेश कें राजनैतिक क्षेत्र में। ऐसा लग ही नही रहा कि राज्य के अगले पांच वर्षो के राजनैतिक कार्यक्रमों को निर्धारित करने के लिये विधानसभा का निर्वाचन राज्य में होने जा रहा है। सबसे बड़ी चीज यही है कि कार्यकर्ता उत्साह से बहुत दूर अपने नियमित क्रियाक्रम में लगा हुआ है। कोई नहीं जानता कि दोनों दलों के अंदर ऐसी कौन से कूटनीतिक खिचड़ी पक रही है। जो चुनाव के कुछ हफ्ते पहले तक सारे माहौल को संनाटे में परिवर्तित कर रही है। मध्यप्रदेश के विपरित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में एक राजनैतिक उत्सव का माहौल है। छत्तीसगढ़ में यदि प्रधानमंत्री की सभाएं यह रोनक खोकर यह स्पष्ट सकेंत दे रही है कि इस बार मोदी मैजिक से राज्य कहीं दूर है। तो राजस्थान में घोषणाओं का अम्बार प्रतिदिन इतना बड़ा होता जा रहा है कि आने वाली कई सरकारे भी उसकी पूर्ति नहीं कर सकती। राजनैतिक झांसेबाजी को ही राजनैतिक वातावरण में जादूगरी या कलाकारी कहते है।
वे इस जादूगरी या कलाकारी से मध्यप्रदेश अछूता क्यों है? जबसे भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेताओं को राज्य में विधानसभा का उम्मीदवार घोषित किया है, एक खामोशी भाजपा के कैम्प में फेल गई है। भाजपा के कई नेता जो अपनी राजनैतिक विरासत अपने पुत्रों या रिश्तेदानों को सौपना चाहते थे निराश हो गये है। अंतिम क्षणों में पता नहीं किस कूटनीतिक चाल के तहत सासंदों को विधायकों में परिवर्तित करने का मंत्र भाजपा हाई कमान द्वारा लागू कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कोई बहुत बड़ी हवा किसी के पक्ष में चल रही है। ममध्यप्रदेश में तो कम से कम यह दावा किया जा सकता है कि निष्क्रिय पड़ी राजनैतिक गतिविधियां किसी भी दल को सम्मानजनक बहुमत तक पहुंचाने के लिये ना काफी है। मध्यप्रदेश में अचानक राहुल गांधी शाजापुर में प्रगट होते है और अपने लम्बे उबाऊ भाषण से यह कोशिश करते है कि कार्यकर्ता का जागरण हो। मध्यप्रदेश में राजनैतिक जरूरतों को बिना समझे हुये अधिक से अधिक खर्चो पर कटौती करके कांग्रेस अपने पैर में कुल्हाडी मार रही है। कांग्रेस के पास राज्य भर में कोई मंच नहीं है जहां से वो विपक्ष की भूमिका में अपनी रणनीति का खुलासा कर सकें। दूसरी और भाजपा सरकार के घोषणाओं ने राज्य में कांग्रेस की चूले हिलाकर रख दी है। परिणाम यह है कि कांग्रेसियों को भाजपा की घोषणाओं और उसके तत्काल क्रियांवयन की कोई काठ कहीं नजर नहीं आ रही। इन घोषणाओं का व्यापक प्रभाव राज्य की राजनीति में पड रहा है यह कहना गलत होगा। पिछले 18 वर्षो के शासनकाल में जिस तरह भाजपा सरकार की नीतियों की सरेआम धज्जियां उड़ाई गई है। उसमें आम जनमानस को कुछ अलग सोचने के लिये बाध्य कर दिया है। अब वह कुछ अलग कमलनाथ के रूप में सोचा जा रहा है ऐसा नहीं है। कागजों पर बनाई जाने वाली औद्योगिक विस्तार की परिकल्पना को रणदीप सुरजेवाला राजनैतिक घोषणा के रूप में ले सकते है। पर प्रदेश का मतदाता इससे सहमत है इसका दावा नहीं किया जा सकता। राजनीति को औद्योगिक मंच बनाने और मध्यप्रदेश जैसे राज्य में कॉर्पोरेट राजनैतिक शैली का विस्तार करने की कल्पना मात्र ही मध्यप्रदेश में राजनैतिक प्रभावों का कारण बन सकती है। कांग्रेस आम आदमी के मुद्दों को उठा नहीं रही, उनका कोई हल बता नहीं रही और भाजपा कॉर्पोरेट शैली की राजनीति के भरोसे चुनाव लड़ना नहीं चाहती। परिणाम यह है कि मतदाना और दोनों दलों का कार्यकर्ता असमन्जय की स्थिति में है। कुल मिलाकर एक संनाटे की स्थिति है, जिससे निकल पाना दोनों ही राजनैतिक दलों के लिये अब असंभव हो चला है। कुछ कागजी नेता अपने झूठे सच्चे दावों के भरोसे राज्य के राजनैतिक स्थितियों में जबरिया हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे है। पर दोनों ही दलों के पास राज्य में न कार्यकर्ताओं को सुनने वाली टीम है और ना ही जमीन पर आधारित मतदाता की महत्वकांशा और जरूरतों को समझने वाला तंत्र। कुल मिलाकर इसे तूफान के पूर्व की शांति भी नहीं कहा जा सकता और एक कुटनीतिक षड़यंत्र की गंध भी इससे नहीं आ सकती। राजनीति की यह मुहिम केवल निष्क्रिय और सोच रहित नेताओं के काल्पनिक उड़ान का परिणाम मानी जा सकती है। जिसमें ना पार्टी कुछ है ना ही कार्यकर्ता, यदि कुछ है तो सब कुछ भाग्य के भरोसे।