म.प्र. चुनाव - असंतोष की राजनीति से दोनों ही दल परेशान....
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले उम्मीद के अनुसार राजनैतिक दलों के जहाज से चुहों का भागना तेजी से बड़ रहा है। सबसे अधिक पलायन भाजपा की ओर से हो रहा है, और भविष्य में भी यहीं सम्भावनाएं नज़र आती है कि पलायन की इस प्रक्रिया का जिसे भाजपा के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया आवागमन कहते हैं में बहुत तेजी आयेगी। दूसरी ओर कांग्रेस का टिकिट का न घोषित होना फिलहाल एक शांति का एहसास दिला रहा है। पर यह तय है कि टिकिट वितरण की पहली लिस्ट जारी होने के साथ कांग्रेस में वे असंतुष्ट नेता जो अपने राजनैतिक अस्तित्व के लिये वर्तमान चुनाव को ही एक मात्र आधार मानते हैं, खुलकर सामने आ जायेंगे।
फिलहाल भाजपा में चल रहे पलायन के कारण पार्टी का केंद्रीय और राज्य स्तरीय नेतृत्व परेशान है। दल की छोटी से छोटी राजनैतिक इकाई से लेकर बड़े स्तर तक विघटन को यह दौर शामिल है। भाजपा से निकलने वाले शूरवीर केवल कांग्रेस में नहीं जा रहें बल्कि आम आदमी पार्टी का दामन भी थाम रहे हैं। जो इस बात का संकेत है कि पार्टी कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास इतना कमजोर हो चुका है कि भाजपा के अलावा किसी भी पेड़ की छाव को वे फिलहार अपना ठिकाना बनाना उचित मान रहे है।
इस पूरी परिक्रिया पर कांग्रेस खुश है। उसे अपनी जीत की संभावनाओं में इस पलायन से वृद्धि नज़र आती आ रही है। इतना ही नहीं कांग्रेस स्वयं कोशिश कर रही है कि इसी दौर में भाजपा के कुछ वरिष्ठ और स्थापित नेता भाजपा का दामन छोड़कर सार्वजनिक रूप से उसके सिद्धांतों पर अपना विश्वास व्यक्त करे। वास्तव में राजनैतिक परिवेश इतनी तेजी से और इतनी दमदारी से बदलेगा इसका अंदाज किसी को नहीं था। असंतुलन और उससे पैदा होने वाले असंतोष को लेकर यदि चिंताएं थीं तो उन चिंताओं का समायोजन करने के लिये दोनों ही दलों के मठाधीश अपनी-अपनी ओर से आश्वासनों का एक पिटारा खोलकर बैठने के लिये तत्पर थे। यह उम्मीद थी कि जो कुछ होगा उसे कम से कम असंतोष की परिभाषा के अंर्तगत आने से रोका जा सकेगा। परंतु राजनेताओं की महत्वाकांशा और पार्टी से अधिक अपनी स्वयं की राजनीतिक महत्वपूर्ण समझने वाले वारिष्ठ नेताओं की एक भीड़तंत्र मध्यप्रदेश में राजनीति की परिभाषा ही बदल दी। ऐसा नहीं है कि इस दौर में कांग्रेस बहुत सुरक्षित है। वैसे भी कांग्रेस राजनैतिक गतिविधियों के अतिरिक्त स्वयं को भाग्य के भरोसे सौपकर कथा वाचकों की शरण में जा चुकी है। अब भगवान भरोसे यदि नाव पार लगनी है तो लग जायेगी और इसका श्रेय बड़े नेताओं को मिल जायेगा। कांग्रेस को फिलहाल भाजपा के असंतोष को समझकर उसे खरीद फरोख्त या भविष्य के आश्वासनों पर लाकर खड़ा करना होगा। इन स्थितियों में कांग्रेस बगैर एक रूपये खर्च किये केवल जुबानी जमा खर्च कर भरोसे अपने भविष्य को सुरक्षित और मजबूत कर सकती है। राजनीति का यह पैतरा कई वर्षो तक कांग्रेस ने अपनाया है। फिलहाल राज्य की जनता का विश्वास शिवराज से अधिक कमलनाथ पर है और मतदाता 15 महीने में गिराई गई सरकार के विरूद्ध पैदा किये षड़यंत्र को आज भी गलत मान रहा है।