(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव का बुखार जैसे-जैसे चढ़ता जा रहा है, सबसे अधिक सक्रियता भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों में देखी जा रही है। पूरे राज्य में भगवा झंडों के माध्यम से एक ऐसी भीतरी क्रांति करने की कोशिश है, जहां सरकार की लगभग 20 सालों की कमजोरी को न सिर्फ ढका जा सकें बल्कि पार्टी में हो रहे संभवित विद्रोह को भी आपसी समझ बुझ से हल किया जा सकें। 
भाजपा के शीर्ष नेता इन दिनों लगभग पूरे समय राज्य में प्रवास कर रहे है। राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख पदाधिकारी भी इस कार्य में राज्य के गांव-गांव में सक्रिय है। कुल मिलाकर माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि 20 साल कि प्रशासनिक कुव्यवस्था को ढ़का जा सकें और भविष्य के लिये एक नये सपने का सृजन किया जा सकें। इसके बावजूद भाजपा में आंतरिक रूप से चिंगारियों का सुलगना कम नहीं हो रहा। गुटों में बंटी हुई भाजपा अब धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है। वो कार्यकर्ता जो कभी चना-गुड़ खाकर पैदल-पैदल चलते हुये हजारों किलोमीटर तक भाजपा के संदेश को पहुंचाता था अब पूर्णतः सुविधा भोगी हो गया है। पिछले 20 सालों में पार्टी ने अपने संगठात्मक ढ़ाचें में कोई परिवर्तन किया हो या नहीं पर यह तय है कि कार्यकर्ताओं का जीवन स्तर अलग-अलग स्थानीय व्यवसायों से जुड़ने से बड चुका हैं। राज्य स्तर पर और संभाग स्तर पर यही कार्यकर्ता जब प्रभावी नेताओं की कोठियों का आकार देखता है और उस विदेशी कारों के काफ़िले को देखता है तो दंग रह जाता है। उसे भी अपना भविष्य अति सुविधा भोगी सम्प्रदाय में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाने को करता है। भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेताओं की केन्द्र ही नहीं राज्य स्तर पर भी भारी उपेक्षा की है। भाजपा का 20 साल का शासन काल केवल शिवराज सिंह चौहान के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया है। राज्य में कोई ऐसा वैकल्पिक नेतृत्व पार्टी पैदा नहीं कर सकी जो राज्य पर और बिखरे हुये कार्यकर्ताओं पर व्यापक नियंत्रण रख सकें। यही कारण है कि भाजपा को इस चुनाव के दौरान एक अलग तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस दुविधा की जड़ में अवैध कमाई और भ्रष्टाचार बहुत गहरे तक घटा है। शायद इसलिये संघ के अनुशासित कहे जाने वाले स्वयं सेवी बीमारी की नब्ज़ नहीं पकड़ पा रहे हैं। भाजपा अपने पैरों पे सारे विरोधो के बावजूद एक बार फिर खड़ा होना चाहती है। 
इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी परेशानी यही है कि असंतोष से दबे हुये बीजों को इस तरह सामने लाकर उन्हें संतुष्ट किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह या पर्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं को कितने भी प्रवचन दे ले। व्यक्तिगत रूप से स्थानीय स्तर पर 20 वर्षो से चल रही प्रतिस्पर्धा समाप्त होने का नाम नहीं ले रही। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि विद्रोह के यह स्वर चाहे तो सामने भी नहीं आ रहे जिन्हें पहचाना जा सकें। केवल अनुमान के सहारे हर शांत पड़े हुये नेता को टटोलना भी भाजपा की परेशानी का कारण है। इस चुनाव अभियान के दौरान भाजपा की ओर से राज्य स्तर के नेताओं में केवल शिवराज सिंह चौहान ही एक मात्र ऐसे है जो घोषणाओं का पिटारा साथ लेकर कभी महाकाल मंदिर के सामने छांज लेकर नृत्य करते हैं कभी महिलाओं को प्रभावित करने के लिये अपनी तथाकथित लाड़ली बहनों के सामने मंच पर ही साष्टांग दण्डवत करते हैं। लगातार की जा रही घोषणाओं की कम से कम चुनाव तक पूर्ति के लिये रिजर्व बैंक इंडिया से दस हजार करोड रूपये का ऋण भी लेते हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगता कि ये पूरा चुनाव शिवराज सिंह द्वारा ही स्वयं की राजनैतिक सुरक्षा के लिये लड़ा जा रहा है। पार्टी के अन्य नेता और सुभचिंतक केवल राज्य के विभिन्न भागों में सम्पर्क करके मीडिया में अपने प्रयासों को प्रमाणित करने में लगे है।