(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिये भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री के दौरों के बाद माहौल में अचालक गर्मी आ गई है। भाजपा में एक तरफ रूठने और मनाने का सिलसिला जारी है, वहीं राज्य में फैले हुये कार्यकर्ताओं की टीम को नई चेतना देने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये जा रहें हैं। प्रदेश की पूरी भाजपा धीरे-धीरे राज्य के प्रत्येक हिस्से में चुनाव अवधि तक के लिये अपने नेताओं को न सिर्फ स्थापित कर रही है बल्कि उन्हें स्थापना क्षेत्र के आस-पास की समस्त गतिविधियों से जोड़ने का काम कर रही है। भाजपा का यह अभियान प्रधानमंत्री के दौरे के बाद राज्य में तेजी से चलाया जा रहा है। पार्टी जानती है कि 18 साल से चल रही उसकी सरकार के कारण पैदा हुई मतदाताओं की अरूची इस बार उसके लिये भारी पडेगी। इसके अलावा राज्य में असंतोष नेताओं के किसी भी विपरीत कदम का भाजपा को परिणाम भोगना पड़ेगा। इन स्थितियों से परिचित होने के बाद पार्टी सामान्य कार्यकर्ताओं के मध्य वरिष्ठ नेताओं को भी सामान्य कार्यकर्ता के रूप में घुल मिल कर माहौल बनाने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर प्रियंका गांधी के जबलपुर प्रवास के बाद भी कांग्रेस के क्षेत्र में कोई गर्मी नज़र नहीं आती। वरिष्ठ कहें जाने वाले नेताओं का एक समूह चुनावी गतिविधियों से दूर अपने या अपने समर्थकों के क्षेत्र में ही सक्रिय है। पार्टी में यह अफ़वाह तेजी से फैली हुई है कि कांग्रेस 160 के अंको प्राप्त करने जा रही है। तो अब सवाल उठने लगा है कि मंत्री परिषद का सदस्य कौन बनेगा कौन निगम का अध्यक्ष बनगा। सामान्य कार्यकताओं की स्थिति यह है कि पिछले 18 सालों के दौरान छोटे-छोटे स्थानीय व्यवसायों में उनकी सहभागिता भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ अच्छी तरह बनी हुई है। कार्यकर्ताओं को भोपाल या दिल्ली से किसी भी तरह का प्रोत्साहन न मिल पाने के कारण और अब भी उपेक्षाओं का शिकार होने के परिणाम स्वरूप एक निराशा का भाव बनता जा रहा है। जिसकी पूर्ति आने वाली संभवित सरकार की कल्पना फ़िलहाल तो कर रही है, पर किसी बड़ी योजना के अभाव में कार्यकर्ता अभी जनसामान्य के मध्य पार्टी के लिये कुछ विशेष कर पा रहा हो ऐसा नहीं है। प्रियंका गांधी के दौरे के बाद यह भी स्पष्ट हो गया कि राज्य के बड़े नेताओं को अखिल भारतीय स्तर के नेताओं की आवश्यकता राज्य में अधिक नही है, और नाही वे सक्षम है कि बड़े नेताओं के संदेश को किसी अभियान के रूप में आम मतदाता तक पहुंचा जा सकें। राजनीति के जानकार यह समीक्षा कर रहें हैं कि प्रियंका गांधी का पहला प्रवास जबलपुर होना चाहिए था या ग्वालियर। वास्तव में कांग्रेस ने अपनी 15 महीनें की सरकार ग्वालियर से ही खोई थी और इस बार भी चुनाव में ग्वालियर क्षेत्र प्रतिष्ठा की लड़ाई का प्रश्न बनेगा। यह बात अलग है कि जयवर्धन सिंह जैसे तेजस्वी नेता के हाथ ग्वालियर का प्रभार देकर इस क्षेत्र को सुरक्षित करने की कोशिश की गई। इसके बावजूद इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस क्षेत्र में कांग्रेस के किसी भी नेता से बड़ी पहुंच और अंधश्रद्धा स्थानीय सिंधिया राजघराने के लिये है। आने वाले समय में ग्वालियर समूचे मध्यप्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाला क्षेत्र बनेगा। इस दबाव के क्षेत्र में कांग्रेस के नौसिखिया नेता इतना प्रभाव डाल सकेंगे यह देखने की बात होगी। राजनीति के जानकार मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थापित नेताओं की उपेक्षा और महाकौशल क्षेत्र में किसी बड़े नेता के पैदा न हो पाने की स्थितियों की भी समीक्षा कर रहें हैं। कांग्रेस का विन्ध्य क्षेत्र इस बार चुनाव में पूरी तरह राहुल अजय सिंह के नियंत्रण में रहेगा। पिछले चुनाव से राहुल यह सीख़ ले ली है कि राज्य जिताने के नाम पर मध्यप्रदेश का हेलिकाप्टर से दौरा करना प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं है बल्कि भविष्य में अपने ही प्रदेश अध्यक्ष से अपमानित होने का कारण बना है। इस बार विन्ध्य क्षेत्र को अंतिम क्षणों तक राहुल अजय सिंह अकेला छोड़ने के मूड में नहीं है। वैसे भी विन्ध्य क्षेत्र में कांग्रेस के पास किसी वरिष्ठ नेता आ आभाव है। चुनावी दौड़ में फिलहाल तो पिछले सात दिनों के दौरान कांग्रेस से भाजपा कही आगे है। यह समीक्षा पार्टियों द्वारा तैयार की योजना बडे नेताओं की उपलब्धाता और कार्यकर्ताओं चेतन-अचेतन अवस्था को सामने रख कर यह कि गई है।