(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की पराजय का प्रमुख कारण संगठन का कमज़ोर होना है। बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता कांग्रेस को चुनाव में भारी पड़ जाती है। यह कथन कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और चाणक्य कहें जाने वाले दिग्विजय सिंह जी द्वारा व्यक्त किया गया है। 
संगठन की कमज़ोरी का मतलब यह माना जाता है कि कांग्रेस का वर्तमान प्रदेश नेतृत्व कांग्रेस नेताओं की दृष्टि में कमज़ोर है। इतना ही नहीं बूथ लेवल तक कांग्रेस के प्रबंधन का कमज़ोर होना ज़मीनी कार्यकर्ताओं से कांग्रेस से संवादहीनता को प्रदर्शित करता है। श्री दिग्विजय सिंह जी का यह कथन यह स्पष्ट करता है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष होनें के बावजूद संगठन में सारी शक्तियां भर देने में असफल सिद्ध हो रहें हैं। निचले स्तर तक संवादहीनता और निष्क्रियता यह प्रमाणित करती है कि कांग्रेस का सामान्य कार्यकर्ता जो बूथ स्तर पर सक्रिय रह कर कांग्रेस को बुनियादी मजबूती देता है, अभी भी कांग्रेस से कोसों दूर हैं ।
दिग्विजय सिंह के इस कथन को सामान्य कथन के रूप में नहीं लिया जा सकता। स्वयं कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को पूरे राज्य में दौरा करके कांग्रेस को सक्रिय बनाने सही उम्मीदवारों का चयन करने और नाराज़ नेताओं को एकजुट होने की जिम्मेदारी सौपी है। वास्तव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस अगला चुनाव इन्हीं दोनों नेताओं के भरोसे लड़ने जा रही है। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर के अन्य छुट भाइये नेताओं को उतनी ही शक्तियां या अधिकार प्रदान किये जा रहें हैं जितना भविष्य की राजनीति को दृष्टिगत रखते हुये दिये जाने चाहिये। कांग्रेस ने विभिन्न नेताओं को राज्य स्तर पर अलग-अलग समूह बनाकर क्षेत्रवार जिम्मेवारियां सौपी है। इन वरिष्ठ नेताओ में फूलसिंह बरैया, अरूण यादव, सुरेश पचैरी, कमलेश्वर पटेल और जयवर्धन सिंह जैसे तेजस्वी नेता शामिल किये गये हैं। ये सभी 16 नेता अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टी को नब्ज़ को टटोलेंगे और राज्य भर में बन रहे कांगेस के तूफानी माहौल का अकलन करेंगे। इसके अतिरिक्त प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह राज्य के अन्य अलग-अलग जिलों का दौरा करके कांग्रेस की हर संभव वापसी के लिये प्रयास करेंगे। 
कांग्रेस का यह अभियान कागज़ों में प्रभावशील है और उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा द्वारा बनाये जा रहे राजनैतिक चक्रव्यहू में कांग्रेस का कार्यकर्ता नहीं फ़सेगा और पार्टी के प्रति निष्ठावान रहकर पूरी लगन और मेहनत से सम्भवित विजय के लिये प्रयास करेगा। पार्टी ने अपने आगामी प्रचार अभियान में राज्य के स्वयं सेवी संगठनों, जातिगत संगठनों एवं युवा एवं महिला स्वतंत्र संगठनों से व्यक्तिगत सामांजस्य बनाने का कोई प्रयास अभी तक प्रदर्शित नहीं किया है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह स्वतंत्र जीवी सभी संगठन भाजपा की 20 साल की सरकार से परेशान होकर अंतः स्वयं कांग्रेस की जेब में आ गिरेंगे और कांग्रेस एक प्रभावशील नेतृत्व के साथ प्रदेश में अगली बार सरकार बनाने के लिये कदम बढ़ा सकेंगी। यह सभी धारणाएं भविष्य में क्या राजनैतिक रंग लेती है इसका अनुमान लगाना सहज नहीं है, क्योंकि योजनाएं अभी तक वातानुकूलित कमरों में बैठकर कागज़ों में तैयार हो रहीं हैं और विभिन्न यांत्रिक सर्वेक्षण विजय के सम्पूर्ण एहसास को इस हद तक जीवित कर रहें हैं कि कभी-कभी लगता है कि कांग्रेस इन बैठकों में अपने अगले मंत्रिमण्डल का निर्धारण कर रही है। दूसरी और भाजपा की पैनी निगाह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं सहित वरिष्ठ नेताओं पर टिकी हुई है। वास्तव में भजपा, कांग्रेसी नेताओं, कार्यकताओं की महत्वाकांशा का मूल्यांकन कर रही है।