आधी अधूरी तैयारी के साथ म.प्र. में निर्वाचन प्रक्रिया के लिए दोनों दल तैयार
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): इस बार के विधानसभा चुनाव में बिलकुल अलग ही नज़ारा राजनैतिक रूप से देखने को मिलेगा। यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि चुनाव घोषणा होने के कुछ समय पूर्व से राजनीति में गर्मी के संकेत दोनों दलों में मिलने लगेंगे। मध्यप्रदेश वैसे भी कांग्रेस भाजपा के अलावा अन्य किसी छोटे-बड़े दल को प्राथमिकता नहीं देता। इनके अन्य दलों के जीते हुये सदस्यों और जीते हुये निर्दलीय विधायकों की भूमिका राज्य विधानसभा में हमेशा सरकार को आवश्यक बहुमत देने तक या ऐसी जरूरत न होने की दशा में विधानसभा में रहते हुये भी स्वयं को तटस्थ रखने तक सीमित रहती है।
इन निर्वाचनों के दौरान सबसे अधिक जोर एक दूसरे के प्रत्याशियों को किसी तरह प्रभावित करने और भविष्य में उनसे पाला बदलकर निरन्तर सहयोगी बनाने पर सीमित रहेगा। भाजपा ने मध्यप्रदेश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं और नेताओं के माध्यम से अगली सरकार की भूमिका को मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव प्रचार के नाम पर जनसम्पर्क, नुक्कड़ सभाएं, धार्मिक मेले और आयोजनों की लगातार तैयारी हिन्दू मतदाताओं को आकर्षित करने के लिये निरन्तर की जा रही है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री स्वयं राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंच कर नई-नई योजनाओं के साथ समाज के विभिन्न वर्गो को उचित संरक्षण देने की दुहाई दे रहे हैं। 20 साल से सरकार चला रही भजपा अपने मंत्रीपरिषद के सदस्यों की अकर्मण्यता के परिणाम का लगतार परीक्षण कर रही है। भाजपा को यह मालूम है कि इस बार उसका मुकाबला आम जनता की भावनाओं से होना है, उस आक्रोश से होना है जो 20 साल तक किसी मतदाता के उपेक्षित रहने से पैदा होता है।
इसी पर मरहम लगाने के लिये पूरे राज्य में रोज नये आयोजनों को जन्म दिया जा रहा है। अधूरी महत्वाकांशाओं को पूरा करने के नाम पर आश्वासन के तौर पर नई योजनाओं की घोषणा की जा रही है। निगम मण्ड़लों में नये पदाधिकरियों की नियुक्ति पर जातिगत समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की जा रही है। भाजपा 20 साल से सत्ता में है, इसलिए आर्थिक रूप से और प्रशासनीक रूप से कांग्रेस से कही अधिक सक्षम है। 20 साल के शासनकाल के दौरान प्रदेश के अधिकारी, कर्मचारी सहित आम व्यक्ति का भी जनमानस भाजपा के प्रति बदला है।
दूसरी ओर कांग्रेस को अपने 15 महीनें के शासनकाल के बाद अब नई संभावनाओं की खोज करनी पड़ रही है, कांग्रेस की परेशानी सही मुद्दों की तलाश न कर पाना है। दूसरी ओर जमीन से जुड़े हुये उन कार्यकर्ताओं को पुनः सक्रिय करना है जो 20 वर्ष के दौरान अपने जीवन यापन के लिये कहीं न कहीं भाजपा के प्रभावशाली नेताओं के प्रभाव में आ चुके है। कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं, नेताओं को देने के लिये कोई आधार मंत्र नहीं है, जिसे आंदोलन बनाकर कार्यकर्ता प्रदेश में जनजागृति का संदेश ले जा सकें। कांग्रेस की दूसरी बड़ी मुश्किल यह है कि चुनाव के इस कठिन समय में भी पार्टी के पास सामान्य वेशभूषा में सामान्य वर्ग की भाषा में और सामान्य वर्ग की भावनाओं को समझते हुये अपनी बात कहने वाले वे स्थानीय नेता नहीं है। जो गांव की चैपाल में पालठी मारकर, सर पर गांधी टोपी रखकर स्थानीय मुद्दों की बेबाक व्याख्या करते हुये उनके समाधान का मार्ग कांग्रेस की नीतियों से ही निकलने का दावा कर सकें। इस 20 वर्षो में कांग्रेस ने आम जनता के मुद्दों से मुह मोड़ लिया है, 15 माह की सरकार ने कांग्रेस कुछ ऐसा नहीं कर सकी जिसे वो अपनी भविष्य की योजनाओं का मूल बिन्दु बता सके। इसी आपाधापी में मध्यप्रदेश की राजनीति मतदाताओं के विवेक ओर उनकी समझ पर धीरे-धीरे आकर टिक गई है, जिसके परिणाम केवल चुनाव परिणामों के सामने आने पर ही प्रगट हो सकते हैं।