(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश की राज्य सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित, राज्य के कई हिस्सों में विकास के नाम पर प्रकृति को गहरी चोट पहुंचाने के लिये बडे़ छायादार वृक्षों को काट कर, नई कालोनियां और कार्यालय विकसित करने की योजना है। सत्तापक्ष और विपक्ष के मध्य एक अज्ञात साझेदारी इस कदर मजबूत है कि कांग्रेस के विधायक, नेता या पार्षद राज्य सरकार के इस पर्यावरण विरोध कार्यक्रम का विरोध करने से बच रहे हैं । विकास के नाम पर जिस तर उत्तरांचल में जोशी मठ को समाप्त किया जा रहा है, उसी तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी सड़कों के, शहरों के विकास के नाम पर बड़ी तादात में जंगल काटें जा रहे है और प्रकृति का सर्वनाश किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, पर्यावरण प्रेमी होने का अभिनय कुछ इस तरह करते हैं कि हर जगह उनके नये पेड़ लगाते हुये फोटो आसानी से देखी जा सकती है। परंतु मध्यप्रदेश के सभी जिलों में पिछले 20 वर्षो के दौरान विकास के नाम पर जितना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया है, उतना संभवतः स्थापना के बाद से आज तक किसी भी शासनकाल में नहीं पहुंचाया गया। 
विभिन्न इलाकों में काटें हुये जंगल सैकड़ों वर्ष पुराने थे और राज्य की वनवासी छवि को न सिर्फ सुरक्षित करते थे बल्कि प्राकृतिक जनसंसाधनों, वन्य प्राणी संरक्षण जैसे मामलों में अभूतपूर्व योगदान देते थे। पर्यावरण के नाम पर नये जंगल रोपने की कोशिश कभी भी काटें गये जंगलों से प्राप्त होने वाली प्राण वायु या अन्य प्राकृतिक सुरक्षाओं का स्थान नहीं ले सकती। वैसे भी मध्यप्रदेश में हमेशा से ही जंगलों का निर्माण करना भ्रष्टाचार के लिये सबसे सुगम माध्यम है। पिछले 20 वर्षो के दौरान जितने जंगल काटें गये और जो किमती लकड़ी जंगलों से निकाली गई उसका कोई रिकार्ड नहीं है। यह बात अलग है मध्यप्रदेश के सभी नेताओं के घर सागौन और शीशम का फर्नीचर उनके ड्राइंगरूम की शोभा बड़ा रहा है और वन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य की लकड़ी का अन्य राज्यों में तस्करी होना प्रभावशील लोगों के लिये बड़े मुनाफे का सौदा बना हुआ है।
लाख विरोधों के बावजूद मध्यप्रदेश की सरकार पूरे राज्य को जोशी मठ बना देने पर आमादा है। केवल राजधानी भोपाल में ही स्मार्ट सिटी का नाम पर जिस तरह शमशान का निर्माण किया गया है, वह राजनैताओं की क्रूरता की पराकाष्ठा है। राजनीति में व्यक्ति के प्रति संवेदनाएं खो गई है, पर सत्ता में बैठे हुये लोग यह भी भूल गये है कि प्रकृति का संरक्षण न करके वें स्वयं अपनी आने वाली पीढ़ी को भी अपाहिज बना रहे हैं। भोपाल के प्रोफेसर कॉलोनी क्षेत्र में जिस उत्साह से राज्य सरकार 2 लाख वर्फफीट का ऐतिहासिक कलेक्टर भवन बनाने जा रही है, उसकी तारीफ ही करनी पडे़गी। किसी भी तरह की कोई आपत्ति की कोई गुंजाईश कहीं नही है। राजनेता अंधे, बहरे और संवेदनहीन होकर जाती हुई सरकार से किसी भी तरह अपना लाभांश बटोरने के चक्कर में है। उम्मीद यह कि जानी चाहिए है कि राजनैताओ और भ्रष्ट अफ्सरों की जमात एक दिन मध्यप्रदेश को पूरी तरह वृक्षहीन करके नंगा बना पाने में सफल होगी, और इसके बदले विदेशों में अपने और अपने परिवारों की बड़ी-बड़ी कोठियां स्थापित करने में सफल होगी। फिलहाल राजधानी में चल रही यह प्रक्रिया प्रदेश में अन्य जिलों में चलने के वाली प्रक्रिया के ही समकक्ष है। जिसका विरोध कर पाना किसी विशिष्ट कहें जाने वाले व्यक्ति के लिये संभव नहीं है।