अविश्वास प्रस्ताव कमलनाथ के विरूद्ध था या शिवराज सरकार के
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र अपने चैथे दिन अविश्वास प्रस्ताव की बहस के साथ समाप्त हो गया। दो दिन तक अविश्वस प्रस्ताव पर उत्तर देने के लिये मुख्यमंत्री ने अविश्वास के प्रत्येक बिन्दु को गलत प्रमाणित किया। वास्तव में यह समझ पाना मुश्किल था कि अविश्वास प्रस्ताव किसके विरूद्ध लाया गया है। यह प्रक्रिया मध्यप्रदेश की वर्तमान शिवराज सरकार के विरूद्ध थी या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के विरूद्ध। अविश्वास में चर्चा के दौरान कांग्रेस की आक्रमकता शून्य रहीं। यहां तक कि कांग्रेस अविश्वास के बिन्दुओं को प्रभावी ढंग राज्य विधानसभा में न प्रस्तुत कर सकी और ना ही प्रमाणित कर सकी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अविश्वास के चर्चा के दौरान दोनों दिन सदन से गायब रहे। जो यह स्पष्ट करता था कि एक लम्बे समय से चल रही भाजपा की प्रदेश सरकार को पुनः एक आलम्बन देने के लिये अविश्वास का यह चक्रव्यूह आधे अधूरे मन से बनाया गया है।
अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ और उनकी पूर्व सरकार पर गहरे वार किये। 165 दिन में 450 आईएएस-आईपीएस के तबादले वल्लभ भवन को दलालों का अड्डा बना देना, मुख्यमंत्री के ओएसडी का वायरल हुआ विडियों, सिंचाई परियोजना का घोटाला जैसे मुद्दे भाजपा की ओर से कांग्रेस की ओर उछाले गये। यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि कमलनाथ के पास विधायकों से मिलने के लिये समय नहीं था। जबकि बड़े ठेकेदार और उद्योगपतियों को उनके साथ लम्बा समय गुजारने का अवसर मिलता था पूरे प्रदेश में त्राही-त्राही मची हुई थी।
मुख्यमंत्री के जवाब के बिच में कई बार कांग्रेस के सदस्यों ने बालात हस्तक्षेप करने की कोशिश की, परंतु वे किसी तरह का दवाब या तथ्य प्रस्तुत कर पाने में असफल रहें। अविश्वास प्रस्ताव पर जिस तरह चर्चा हुई है वैसी मध्यप्रदेश के इतिहास में संभवतः कभी नहीं हुई थी। पूरी भारतीय जनता पार्टी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में कांग्रेस पर इस तरह हावी थी कि सज्जन सिंह वर्मा, जीतू पटवारी जैसे विधायक भी जनसमस्याओं के उदाहरण बनाकर सरकार के विरोध मे कोई बड़ा मोर्चा नहीं खोल सकें। मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा कि कांग्रेस नेता अरूण यादव ने इस सरकार के बारे में लिखा था कि यदि सरकार ईमानदारी से कर्ज माफ करती तो 53 लाख किसानों के कर्जे माफ होते। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कभी कलेक्टर, एसपी की पोस्टिंग में पहले पैसे नहीं लिये गये। लेकिन कमलनाथ की सरकार ने पैसे लेकर कई अधिकारी बदले गये तीन-तीन कलेक्टर बदले गये। उस समय बात तो यह होती थी कि कौन कितने ज्यादा पैसे देने वाला है। मुख्यमंत्री के इन कथन पर सचिन यादव ने मुख्यमंत्री से प्रमाण मांगा तो उन्हें जवाब मिला कि मामला लोकायुक्त में चल रहा है।
मुख्यमंत्री ने अपने बयान मे यह स्पष्ट किया कि कमलनाथ सरकार ने कई योजनाओं को बंद करने का काम किया। इस पर जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री से इससे संबंध आदेश की प्रति सदन के पटल पर रखने की चुनौती दी। मुख्यमंत्री ने कमलनाथ को लक्ष्य करते हुये कहा कि टेंडर की शर्तो में बांध की नींव बनने तक भुगतान का प्रावधान था। छिन्दवाड़ा काम्प्लेक्स में पाइप लाइन वितरण में लगने वाली सामाग्री के दो हजार करोड रूपये एडवांस ही दे दिये गये, सामग्री मिली नहीं तब शर्तो को ही बदल दिया गया। इस पूरी चर्चा के दौरान कमलनाथ सदन से बारह रहे प्राप्त जानकारी के अनुसार वे विदिशा जिले के सिरोंज क्षेत्र में अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। कुल मिलाकर सदन में अविश्वास प्रस्ताव भाजपा को ताकत देने में कामयाब रही, साथ ही कांग्रेस के अंदर उठ रहे प्रश्नों को भाजपा ने सदन के पटल पर रख कर कांग्रेस के भीतर की लड़ाई को सार्वजनीक कर दिया। यह अविश्वास प्रस्ताव कमलनाथ पर लग रहे तमाम प्रश्नों को भी सार्थक कर दिया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान में कांग्रेस न विपक्ष में बैठने योग्य है और ना ही अगले आम चुनाव के लिये किसी भी स्तर पर तैयार है।