करोड़ों का दहेज लेकर अखिर फ़स गये गोविन्द सिंह
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश में कांग्रेस क्या सही मायने में विपक्षी दल की भूमिका निभा पाने में सक्षम है। एक विपक्षी दल की जो ललकार होती है कांग्रेस क्या उस स्तर पर अपनी आवाज उठाकर मध्यप्रदेश के मतदाता को विपक्षियों के आत्मविश्वास को दिखा पाने में सक्षम है। उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर एक घटना के कारण वर्तमान में शून्य पर आ गया है।
कांग्रेस के विधायक जीतू पटवारी द्वारा विस्तार से की गई दस्तावेजों पर आधारित पत्रकारवार्ता में कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में गये सिंधिया समर्थक वर्तमान मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत पर भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये। वैसे भी वर्तमान मंत्री मण्डल मे सिंधिया समर्थक मंत्रियों की कारगुजारियों के कई किस्से प्रचलित है। भाजपा में होने के बाद भी विस्थापित के रूप में भाजपा में आये सिंधिया के समर्थक न तो भाजपा संगठन में और न ही राष्ट्रीय स्वयं संघ के साथ कोई सामन्जस्य बिठा पा रहे है, और न ही इस समूह के मंत्रियों और विधायकों ने कोई ऐसा महत्व का कार्य किया है जिससे भाजपा को कोई नई दिशा मिल सकती हो।
गोविन्द सिंह राजपूत मध्यप्रदेश की राजनीति में निजी सम्मपत्ति के रूप में एक स्कूटर और शासकीय सेवा में कार्यरत अपने बड़े भाई के भरोसे युवक कांग्रेस के माध्यम से पैदा होते है। इन्हीं राजपूत पर यह आरोप प्रमाण और तथ्यों के आधार पर लगाया गया है कि विवाह के कई वर्ष उपरांत इनकी ससुराल वालों ने इन्हें 50 एकड़ जमीन जिसकी कीमत करोड़ों रूपये में आकी जा रही है दान स्वरूप दहेज में दी है। गोविन्द सिंह राजपूत वर्तमान में राजस्व एवं परिवहन विभाग के केबिनेट मंत्री है, और अपने मंत्रालयों का कार्य भोपाल के स्थान पर अपने परिवार के साथ सागर से संचालित करना उचित समझते है। भोपाल में सिंधिया समर्थक इस मंत्री की उपस्थिति केवल विशेष अवसर पर या केबिनेट बैठक के दौरान कुछ घंटे के लिये रहती है।
गोविन्द सिंह राजपूत के बारे में यह कहा जाता है कि किला कोठी के नाम से सागर में निर्मित किया गया सम्राज्य वास्तव में कुछ ही वर्षो में गोविन्द सिंह के करोड़पति बन जाने की कहानी का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कमलनाथ शासनकाल के दौरान गोविन्द सिंह राजपूत मंत्री रहते हुये खासे चर्चित रहे। इतना ही नहीं कांग्रेस में बगावत के समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को झूठे आश्वासन देने वालों की सूची मे इनका नाम सर्वप्रथम आता था। कहा तो यह भी जाता है कि गोविन्द सिंह के इसी भरोसे के कारण दिग्विजय सिंह महाबली बनकर सिंधिया के सम्राज्य पर कमलनाथ के माध्यम से हमला करने में सक्षम हुये। सिंधिया समर्थकों जब बैंगलोर में रखा गया था तो अंतिम समय तक यह विश्वास था कि गोविन्द सिंह इकट्ठा हुये गुट को एक बार पुनः सिंधिया की इच्छा के विरूद्ध कांग्रेस में वापस ले आयेंगे। राजनैतिक सूत्र बताते है कि कांग्रेस छोड़कर भागे हुये नेताओं के मध्य गोविन्द सिंह राजपूत सहित कुछ अन्य नेता भी एक नई राह की खोज में लगातार काम कर रहे थे। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति के कारण और कड़ी पहरेदारी के कारण वह संभव नहीं हो सका और कांग्रेस को तोड़ने का अभियान पूरा हो गया। वहीं गोविन्द सिंह भ्रष्टाचार के बडे़ मामले में आज प्रमाणों के साथ जांच के दायरे में खड़े है। यह बात अलग है कि कांग्रेस को जिस तरह इस मुद्दे को उठाना था उसमें कांग्रेस ने कमी कर दी है। इतने बड़े मामले के सामने दिग्विजय सिंह को एक अन्य मंत्री भुपेन्द्र सिंह के द्वारा दी गई चुनौती को स्वयं कांग्रेस ने महत्वपूर्ण बना दिया है। यह समझना कठीन नहीं है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग अभी भी निजी स्वार्थो के लिये षड़यंत्र करने से बाज नहीं आ रहा। गोविन्द सिंह का मामला प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और आयकर विभाग के स्तर का है। इस मामले से सिंधिया समर्थकों के नियत पर भी बड़ा संदेह उठता है। अंतिम परिणाम कुछ भी हो कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक भाजपा के परम्परागत नेताओं के लिये चिंता का विषय बने है इसमें कोई संदेह नहीं है।