(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में राजनैतिक चिंतन करने वाले विद्वानों का  एक वर्ग यह मानता है कि कांग्रेस हाई कमान को मध्य प्रदेश के प्रति उपेक्षा का भाव अब समाप्त करना होगा। जितनी गंभीरता से कांग्रेस उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी के हाई कमान के नेतृत्व में उतरती है, वैसा ही कुछ उसे गंभीरता से मध्य प्रदेश में करना होगा। गुटबाजी के कारण राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश तीनों ही राज्य बुरी तरह प्रभावित हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें वर्तमान में भी कार्यरत है। इसलिए इन राज्यों में संभावना अधिक है, परंतु मध्य प्रदेश अकेला राज्य है जहां 60 महीनें के लिये चुनी गई सरकार, अंहकार और निजी स्वार्थ के कारण ना सिर्फ 15 महीनें में धाराशाही हो गई, बल्कि सरकार गिरने के बाद भी राज्य स्तर पर कांग्रेस में कोई भी मजबूती के लिये ठोस प्रयास नहीं किये गये। 
28 विधायकों के साथ सिंधिया के पलायन के बाद अभी तक, कांग्रेस इस टूटे हुये मनोबल को भर नहीं पाई है। कांग्रेस समर्थक समीक्षकों का मत है कि यदि इस बार भी कांग्रेस हाई कमान ने मध्य प्रदेश को गंभीरता से नहीं लिया तो जितने या हारने दोनों ही स्थितियों में राज्य में अनुशासनहीनता और गुटबाजी चरम पर पहुंच जायेगी। समीक्षक मानते हैं कि मध्य प्रदेश राज्य में आम मतदाता पर प्रियंका गांधी का व्यापक प्रभाव है। मध्य प्रदेश का मतदाता कांग्रेस के साथ हमेशा से केवल गांधी परिवार के कारण ही जुड़ा रहा है। इन स्थितियों में यदि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की तरह मध्य प्रदेश में चुनाव की कमान पूरी तरह अपनी हाथों में लेकर उत्तर प्रदेश शैली में ही राज्य में प्रचार कर सकें तो ही कांग्रेस को एक मजबूत आधार मिल सकता है।
समीक्षकों का मत है कि प्रियंका गांधी का नेतृत्व अपने हाथ मे लिया जाना राज्य में पहली बार कांग्रेस हाई कमान की उपस्थिति के कारण कांग्रेस की सक्रियता का प्रमाण बनेगा। मध्य प्रदेश में अधिकांश मतदाता निम्न वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग से संबंधित है। मध्य प्रदेश कोई उद्योग नगरी नहीं है, यहां उद्योगपतियों की संख्या से कई गुना अधिक उन मजदूरों की संख्या है जो अपने मतदान से सरकार निर्धारित करते हैं। 
समीक्षकों के मतानुसार प्रियंका गांधी के पास आम व्यक्ति से जुड़ने की जो दुर्लभ शक्ति है। आम आदमी की नस को पकड़ कर उससे सहज संवाद कर लेने की जो प्रवृत्ति है, उसका व्यापक असर मध्य प्रदेश के मतदाताओं पर पड़ेगा। प्रियंका गांधी की उपस्थिति से कांग्रेस को भटकाने वाले षड़यंत्रकारी नेताओं की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा, और कांग्रेस के लिये कार्य करने वाले वास्तविक कार्यकर्ता को बिना गुटबाजी के अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा। जिसके लिये वह पिछले लगभग 20 वर्षो से कथित बड़े नेतओं की चापलूसी कर रहा है। 
प्रियंका गांधी की उपस्थिति यदि गंभीरतापूर्वक इस राज्य में सुनिश्चित की गई तो समीक्षक मानते हैं कि हिमाचल प्रदेश से कहीं अधिक मजबूत स्थिति में कांग्रेस अपने अस्तित्व को कायम कर सकती है। प्रश्न केवल यहीं ही है कि क्या आज तक हाई कमान के रूप में स्वीकार गांधी परिवार मध्य प्रदेश को वह महत्व देगा। यहां अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिये क्या प्रियंका गांधी अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर सकेंगी। समीक्षकों के अनुसार वैसे यह काम असंभव है। क्योंकि प्रियंका गांधी की उपस्थिति गुटबाजी में बटे हुये प्रदेश के कई नेताओं को रास नहीं आयेगी। इस संभावना के पैदा होने के साथ ही अफवाहों और तर्को का एक सिलसिला शुरू होगा, जो प्रियंका गांधी के इर्दगिर्द बैठे हुये सलाहकारों और समर्थकों में मध्य प्रदेश के महत्व को कम करके इस उपस्थिति का नकारात्मक पहलु खोज लेगा, और मध्य प्रदेश पुनः गुटबाजी के शिकार कांग्रेस के भरोसे अगले चुनाव में अपने कदम रखेगा। कांग्रेस ने निर्णय और योजना के अभाव में वैसे भी संशय और संदेह के कई आवरण बिछा रखे है। यह सत्य है कि कांग्रेस की विजय का श्रेय यदि मिलती है तो किसके पक्ष में जायेगा इस बात पर भी अभी से विवाद प्रारंभ हो चुका है। कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग उपेक्षा के दौर से प्रियंका गांधी की उपस्थिति में अवसाद से बाहर निकल सकता है और कांग्रेस को राज्य में एक नया जीवन प्राप्त हो सकता है।