म.प्र. में नाच-कूद के साथ राहुल गांधी की सफल यात्रा की शुरूआत
(Advisiornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राहुल गांधी की लम्बी पदयात्रा के दौरान, कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर अपने पुनर्जीवित होने का मार्ग मिला हो या ना मिला हो, एक नई प्रजाति की खोज इस यात्रा के दौरान कांग्रेस ने जरूर कर ली है। अब तक अविवाहित राहुल गांधी को इस यात्रा के दौरान 75 साल पुराने कांग्रेसी नेताओं के नृत्य कौशल का व्यापक अनुभव मिल गया है। जिसे वे भविष्य में स्वयं के लिये होने वाले मंगल कार्यक्रमों में उपयोग कर सकते हैं। यात्रा के दौरान नृत्य के नाम पर कूद-कूद कर हाथ-पैर पटकने वाले और लगभग छाती कूटने वाले इन नृतकों ने कांग्रेस को राष्ट्रीय दल से निचे गिराकर एक भांड पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया है।
वह पैदल यात्रा जिसमें राष्ट्रीय समस्याओं की चर्चा होनी थी, जिसमें आम आदमी के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश होनी थी। जिस यात्रा ने भारत की अलग-अलग संस्कृति, सभ्यता और भाषा से कांग्रेस के नेतृत्व को परिचित होना था। वह यात्रा कब्र में पैर लटकाये बैठे चंद बुर्जुग कांग्रेसियों के भोंडेपन के कारण लंगुरों की बारात बन गई। ऐसी यात्रा से कांग्रेस नेतृत्व क्या उम्मीद कर सकता है, यह अज्ञात है। परंतु यह ज्ञात अवश्य है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक की इस यात्रा में वरिष्ठ एवं कनिष्ठ कांग्रेसियों के उदण्ड और गैर अनुशासित व्यवहार को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया है।
कल्पना कीजिये यात्रा के प्रारंभ में आम मतदाता के दिमाग में इस यात्रा की छवि महात्मा गांधी कि पूर्व में की गई यात्राओं के समक्षक क्या नहीं बनी थी। क्या आम मतदाता को यह ऐहसास नहीं हुआ था कि महात्मा गांधी, नेहरू और पटेल की विरासत को लेकर एक लम्बे समय बाद कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी फिर पैदल देशाटन की ओर निकल रही है, जो आजादी के पहले के भारत के मतदाताओं के इतिहास की तुलना वर्तमान हालात से करेगी। बेशक राहुल गांधी इस यात्रा के दौरान संजीदा रहे, पर इस यात्रा के आयोजक अपनी सोच को पारम्परिक सिद्धांतों और पार्टी की 100 साल पुरानी सोच के अनुकूल नहीं बना पाये।
बंदरों की तरह फिल्मी गानों की धुनों में कूदना कांग्रेस की संस्कृति कभी नही थी। परंतु 75 वर्ष के एक बूढ़े को आखिर रोक कौन सकता था जबकि उसने अपनी छवि कांग्रेस के चाणक्य और कांग्रेस हाई कमान के मार्गदर्शन के रूप में स्थापित कर रखी हो। यात्रा के दौरान चिंतन की संभावना शून्य है, यात्रा से महात्मा गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे तक की वैचारिक परम्परा के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाएं नहीं के बराबर है। बस एक यात्रा है जो चाय, नाश्ता दोपहर भोजन और रात्रि भोजन करते हुये कहीं-कहीं थोड़ा विश्राम करते हुये आगे बढ़ रही है। इस यात्रा को राजनैतिक बनाने के लिये अंजाने में सावरकर का उल्लेख किया जाता है। जबकि वास्ताव में यात्रा मंहगाई, बेरोजगारी और वर्तमान की राजनैतिक कमजोरियों के कारण आम जनता को होने वाली परेशानियों को प्रदर्शित करने के लिये उन पर मरहम लगाने के लिये आयोजित की जा रही है। वास्ताव में कांग्रेस हाई कमान अब चिंतन की शैली से अलग हटकर, व्यवस्थाओं से परिपूर्ण उन आंदोलनों पर आश्रित होता जा रहा है, जिसमें नागिन डांस जैसे या सड़क पर कूद कर उल्लास प्रगट करने जैसे आयोजन महत्वपूर्ण हो चुके है। राहुल गांधी मध्यप्रदेश की व्यवस्थाओं को ए-ग्रेड देकर स्थानीय नेताओं के मनोबल को बढ़ाएंगे परंतु इस बात पर अध्ययन नहीं होगा कि मध्यप्रदेश में नेतृत्व कितना यांत्रिक हो चुका है और मध्यप्रदेश की राजनीति आम व्यक्ति से अलग हटकर कितनी व्यावसायिक हो चुकी है।