(Advisiornews,in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के राजनैतिक हालात दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों के लिये अच्छे नहीं कहे जा सकते। एक ओर भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया के बढ़ते प्रभाव और उनके समर्थक मंत्रियों को भविष्य में दिये जाने वाले अधिकारों को लेकर चिंतित है। तो  दूसरों ओर कांग्रेस राहुल गांधी की पदयात्रा में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव के साथ शुरू हुये एक नये विवाद के कारण चर्चा में है। दोनों ही दलों में अभी तक यह अस्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव के पूर्व किस बड़े नेता का दबाव अपने दल में अधिक प्रभावशाली हो सकेगा और कौन आगामी लोकसभा के लिये राज्य में अपनी शैली में नई शतरंज बिछा सकेगा।
कांग्रेस से बीजेपी में प्रवेश के बाद सिंधिया का कद अचानक पिछलें कुछ महीनों से भाजपा में अन्य वरिष्ठ नेताओं की चिन्ता का कारण बन गया है। प्रधानमंत्री और अमित शाह द्वारा सिंधिया की जिस तरह पूछपरख की गई, उसमें उन नेताओं के माथे पर बल डाल दिया है, जो सिंधिया के भाजपा के आगमन पर राजनीति की मंडी में किया गया एक स्थायी समझोता मानते थे। जिसका लाभ भाजपा और सिंधिया समर्थक दोनों को ही तत्काल मिल गया। परंतु अप्रवासी बन कर भाजपा की नागरिकता लेने वाले इन नेताओ को सिरमौर बना लिया जायेगा इसकी उम्मीद प्रदेश के नेताओं को नहीं थी। 
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में चल रहे विचार-विमर्श में अब सबसे महत्वपूर्ण है सिंधिया के कारण दल के भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव का। भाजपा के नेताओं का मानना है कि सिंधिया समर्थक अभी तक स्वयं को भाजपा की शैली में ढाल नहीं पाये हैं और सामंजस्य का जो सिलसिला भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ अब तक बन जाना चाहिये था वह भी नहीं बन सका है।
दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है कि खरगोन के वरिष्ठ कांग्रेस नेता अरूण यादव के कहने पर ही उन्होंने निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा को राहुल गांधी की पदयात्रा की जिम्मेवारी एक क्षेत्र विशेष में सांैपी है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस खेमे में हलचल मची हुई है, जहां अरूण यादव के कद को छाटने और विकल्प के रूप में निर्दलीय विधायक को पदोन्नत करने के आरोप प्रभावी ढंग से प्रमाणित किये जा रहे हैं। यदि यह मामला राहुल गांधी की यात्रा में खर्च उठाने तक था तो शेरा के समकक्ष अरूण यादव के सामर्थ को कम नहीं माना जा सकता। दूसरी ओर अरूण यादव, राहुल गांधी की मित्रगण की श्रेणी में भी आते है। 20 नवम्बर जब राहुल गांधी अपने कदम बुरहानपुर के पास से मध्यप्रदेश में रखंेगे तो कांग्रेस में एक नया तूफान उनका स्वागत करने के लिये खड़ा मिलेगा। वैसे भी प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियों में महत्व न मिल पाने की शिकायत पिछले कई महीनों से कई वरिष्ठ नेता करते रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस हाई कमान ने कभी मध्यप्रदेश को कभी गंभीरता से नहीं लिया। वास्तव में मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति में एक ऐसा खोखला राज्य नजर आता है जहां जीत की प्रबल संभावनाओं के बावजूद कांग्रेस स्वयं पराजय की ओर बढ़ने की चेष्टा कर रही है। राहुल गांधी की पदयात्रा कांग्रेस के लिये एक बेहतर अवसर है, परंतु यात्रा मांर्ग को छोड़कर शेष मध्यप्रदेश में कोई ऐसा बड़ा राजनैतिक तूफान कांग्रेस खड़ा कर नहीं पाई है, जिसका लाभ 13 महीनें बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में वो उठा सकें। अब यात्रा की शुरूआत के बाद ये शंकाएं प्रबल होती जा रही है कि जैसे-जैसे राहुल गांधी यात्रा पूरी कर जिलें की सीमा पार करेंगे कई कांग्रेसजनों का पार्टी छोड़ने का सिलसिला न शुरू हो जाए। अंत में मध्यप्रदेश छोड़ते समय यात्रा के स्वागत की तो कई कहानियां सुनने को मिलेगी, पर यात्रा मार्ग में कांग्रेस के कुछ नेताओं के पलायन से एक बड़ी रिक्तता कायम हो जायेगी जो यात्रा को कम से कम सफल तो करार नहीं दे सकती।