(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
देश के दो राज्यों एवं दिल्ली नगर निगम के चुनाव की घोषणा के साथ-साथ पूरे देश में राजनैतिक माहोल गर्म हो गया है। परम्परागत रूप से आमने-सामने खड़ी रहने वाली दो राजनैतिक दल भाजपा और कांग्रेस के मध्य इस बार आम आदमी पार्टी अपने वायदों के आधार पर अपनी जगह खोजने में लगी है। कांग्रेस की हालत राष्ट्रीय स्तर पर जितनी खराब हो चुकी है उसे सुधारने की दिशा में राहुल गांधी पद यात्रा पर निकले हुये हैं। दूसरी और भाजपा पूरी शक्ति के साथ आम आदमी पार्टी को विकल्प न बनने देने के लिये अपनी पूरी कोशिश कर रही है। परंतु क्या भाजपा और कांग्रेस में यदि सब कुछ ठीक-ठाक है, यह प्रश्न प्रतिदिन बदलती हुई राजनैतिक स्थितियों से गंभीर होता जा रहा है। 
भाजपा में एक अतंरबद्ध स्पष्ट नजर आता है कि सब कुछ अपने कंधो पर लेने वाले और विश्व गुरू बनने के पहले भारत भाग्य विधाता के रूप में अपनी छवि को स्थिर बनाने के लिये भाजपा का एक वर्ग स्वयं को पार्टी और संघ के सामने बहुत मजबूत बनाने की कोशिश में लगा है। इसका दुष परिणाम यह है कि पीढ़ियों से संघ से जुड़े हुये कार्यकर्ताओं और उनके परिवारजनों की लगातार उपेक्षा हो रही है। कल तक संघ के अनुशासन को मानने वाले अपना मुह नहीं खोलते थे पर इस बार इन चुनाव के दौरान टिकिट न मिलने पर भाजपा के चुने हुये प्रभावशील नेता खुले आम पार्टी से बगावत कर रहें  हैं। भाजपा का स्वरूप वास्तव एक काडर बेस पार्टी का है, जहां कार्यकर्ता संघर्ष करते हुये पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुचं सकता है। परंतु कुछ वर्षो पहले जब पार्टी की राजनैतिक लाइन को बदलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो इसमें कुछ चुने हुये नेताओं की छवि के इर्दगिर्द बाडे़बंदी कर दी गई और समूची पार्टी को यह मानने के लिये बाध्य कर दिया गया कि जो भाजपा है और रहेगी सिर्फ दो व्यक्तियों के आस-पास होगी।
यह संस्कृति नई थी और भाजपा भी पहली बार प्रभावशील तरीके से केन्द्र की सत्ता में आई थी। दल के कार्यकर्ता और नेता सत्ता सुख भोगना चाहते थे इसलिये खामोश रहे। ऐसा लगता है यह खामोशी अब संनाटे में परिवर्तित हो गई है और क्रमशः अंतरविरोध की राजनीति की ओर जा रही है। इसके परिणाम वर्तमान में होने वाले चुनाव के दौरान स्पष्ट रूप से नजर आयेंगे जो संकेत करेंगे कि लोकसभा महासमर्थ पार्टी कैसे पार करेगी।
दूसरी और कांग्रेस अपनी राजशाही प्रवृत्तियों से बाहर नहीं निकल पा रही है, अस्तित्व खत्म होता जा रहा है, पर आम मतदाता के मध्य अकड़ अभी बनी हुइ है। झुकना और बेचारगी का प्रदर्शन कर आम व्यक्ति की भावना बटोरने में कांग्रसियों की रीड़ की हड्डी झुकती नहीं, जो जीत जाते हैं वो बिकने में संकोच नहीं करते। वास्ताव कांग्रेस के लिये अब लोकतंत्र की प्रक्रिया मंडी के भाव के समकक्ष हो गई है। राहुल गांधी लाख पदयात्रा करें, जब तक यात्रा के दौरान भावनात्मक मुद्दों का समावेश और गरीब आम व्यक्ति के साथ उनका आत्मीय संवाद नहीं होगा तब तक यात्रा अधुरी रहेगी। कांग्रेस के बडे़ नेता यात्रा के दौरान खुले आम अपनी वरिष्ठा को कोने में रख कर नागिन डांस करें, यात्रा के दौरान राहुल गांधी की मानवीय संवेदनाओं के स्थान पर उनकी नियमित सुख सुविधाओं पर अधिक टिप्पणी की जाए यह यात्रा को अधुरा ही बना कर रखेगी। राहुल यात्रा के दौरान किसी बच्चे को गेंद फेक कर बहलाते हैं तो दूसरी दिन खबर आ जाती है कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ग्रामीण माहोल में गली चौराहे की क्रिकेट में चौके-छक्के जड़कर अपनी योग्यता का परिचय दिया। पूरी यात्रा के दौरान कांग्रेस को उसके वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष के व्यक्तित्व को स्थायी बनाते हुये एक नया मार्ग खोजने की जरूरत नहीं पड रही। यह बात अलग है कि मध्यप्रदेश में प्रवेश के पूर्व ही राज्य के अस्तित्वहीन वरिष्ठ नेता यह कहकर कि उनकी फोटो का उपयोग बेनर-पोस्टर में न हो, अपने महत्व को राज्य मे स्थापित करने की असफल कोशिश करते हैं। यह बात अलग है कि यह नेता स्वयं यह घोषणा कर चुके है कि वे जिस विधानसभा में प्रचार करने जाते है वहां कांग्रेस हार जाती है। इन्हे विभिन्न चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र में बुलाने से कांग्रेस के प्रत्याशी स्वयं घबराते हैं।
बड़े दलों की इस राजनीति के मध्य आम आदमी पार्टी बेचारगी की चादर ओढ़ कर आम आदमी के मध्य जा रही है, आम मतदाता आप पार्टी में अपनी छवि को देख रहा है। सम्भवतः यह काम कांग्रेस को करना चाहिए था, जो स्वयं को आज भी एक राष्ट्रीय दल मानती है। इस यात्रा को कोई प्रभाव 13 महीने बाद मध्यप्रदेश में होने वाले चुनाव पर पड सकेगा इसकी कोई संभावना नहीं है। क्योकि राहुल गांधी की मेहनत और उनके बढते हुये कदम के मानवीय अर्थो को समझ पाने और आम मतदाता को समझा पाने में कांग्रेस पूरी तरह विफल है। आम आदमी पार्टी इस पदयात्रा की धूल के वातरण के छटने पहले ही उन सारी संभावनाओं को बटोर लेना चाहती है, जो उसे प्रत्येक मतदाता के दिल तक पहुंचा सकें। यह दार्शनिक मान्यता है कि एक गरीब का संवाद एक गरीब के साथ आत्मीय और खुला हुआ होता है। जबकि दो अमीरों का मध्य होने वाला संवाद हमेशा कई पर्दो से ढका हुआ होता है। यदि कांग्रेस बेचारगी की परिभाषा को बेचारी बनकर समझ पाती तो राहुल गांधी की इस यात्रा का पूरा लाभ राष्ट्रीय स्तर पर वह पुनः मतदाताओं के घर में प्रवेश करने के लिये ले सकती थी। परंतु जब साथ चलने वाले नेताओं के दिल में झूठे समर्पण के दिखावे के साथ छल-कपट और स्वार्थ सिद्ध करने का भाव हो और सड़क पर होने वाला नागिन डांस अपने या अपने परिवार के लिये कुछ विशेष अर्जित करने के लिये हो तो वास्तवित राजनीति की संभावना समाप्त हो जाती है, शायद यही राहुल गांधी की यात्रा के साथ हो रहा है।