(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
भारतीय राजनीति में भरपूर उत्साह से भरे हुये युवा राजनेताओं के नासमझी की सबसे बड़ी दास्तान आज जीवित है तो उसे हम उमा भारती की तरह कहेंगे। उमा राजनीति में पैदा होती हैं धार्मिक कथा संसार की व्याख्या करने वाली एक साध्वी के रूप में। भगवा वस्त्र धारण किये हुये लोगो की एक बड़ी जमात, राम मंदिर आंदोलन के समय भारतीय जनता पार्टी में अपना स्थान बना रही थीं। उसी दौर में उमा भारती ने साध्वी का चोला पहन कर अपने जोशीले भाषणों के साथ मध्यप्रदेश की राजनीति में कदल रखा। देखते ही देखते उमा भारती राष्ट्रीय राजनीति में न सिर्फ चर्चित हुई बल्कि बाबरी मस्जिद को गिराये जाने वाले समूह का एक प्रमुख सदस्य बन गई। सब कुछ नपातुला था संघ विश्व हिन्दू परिषद दोनों ही उमा भारती को श्रेष्ठ मान चुके थे और भाजपा उमा के साथ मिलक मध्यप्रदेश में एक नई सरकार की परिकल्पना कर चुकी थीं। 
हुआ भी कुछ ऐसा ही, दिग्विजय सिंह की भ्रष्ट और नकारा सरकार को उमा भारती के तूफान ने इस तरह धाराशाही किया कि प्रदेश का मतदाता पूरी तरह भाजपा के भगवे रंग में रंग गया। वह मुख्यमंत्री बनी, परंतु भाजपा का एक खेमा उमा भारती के मुख्यमंत्री पद को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। राजनैतिक पंड़ितों का मानना है कि इसी समूह ने कांग्रेस के षड़यंत्रकारी नेताओं के साथ मिलकर उन परिस्थितियों को जन्म दिया, जहां उमा भारती का अस्तित्व राज्य के नेतृत्व से समाप्त हो गया।
आज उमा भारती शराब के दुकान के बाहर लगे हुये शोकेज में अपना माथा फोड़ रही है। पुनः पैदा होने की आकांशा में वो कभी शराब की दुकानों पर पत्थर फेकती है और कहीं  दुकानों के बगल में बने हुये आहतों में धरने पर बैठ जाती है। यह सब कुछ केवल इसलिये है कि किसी तरह भाजपा का केन्द्र और राज्य का नेतृत्व उसके अस्तित्व को स्वीकार करें। उमा भारती एक बुझी हुई चिंगारी हो चुकी है जिसमें अब आग की कोई संभावना नहीं है।
जिस रूप में अपने राजनैतिक अस्तित्व को पैदा किया था उस तरह के कई किरदार आज भगवा वस्त्र और रूद्राक्ष की माला डालकर राजनीति में धर्म का पाखंड सफलतापूर्वक कर रहे हैं। उमा भारती की जरूरी अब किसी को नहीं है, उत्तर प्रदेश से सांसद बनने के बाद भी मध्यप्रदेश में जमीन खो चुकी उमा भारती किसी तरह मध्यप्रदेश में पैदा होना चाहती है। राजनैतिक रूप से अब भाजपा या संघ का कोई भी व्यक्ति उनके साथ नहीं है। इसका प्रमुख कारण उनकी ढ़लती हुई उम्र, पूर्व का विवादास्पद राजनैतिक चरित्र और राजनीति में उनकी समझ का शून्य होना है। उमा भारती को मध्यप्रदेश कांग्रेस में अब एक उपलब्धि नहीं बोझ के रूप में देखा जाता है, यदि उमा भारती चाहें कि वे मध्यप्रदेश में किसी विषय पर क्रांति कर सकें तो यह अब संभव नहीं है। उनके चाटूकारों ने और उनकी दिशा भ्रमित करने वालों ने अब उनका साथ पूरी तरह छोड़ दिया है और अपने नये राजनैतिक भविष्य के लिये नये गठबंधन कर लिये है। सही शब्दों में कहें तो उमा भारती की भाजपा के कटोरे में बिलबिला रही है। वे करना बहुत कुछ चाहती है पर उनका अस्तित्व शून्य हो चुका है। वे बुझती हुई चिंगारी से एक आग को पैदा करना चाहती है जो उनका भला कर सकें और उनके शेष जीवन को एक राजनीति रूप में स्थापित कर सकें। वैसे भी उमा भारती का मुख्यमंत्रीकाल कोई विशेष उपलब्धियों के नहीं रहा सिवाय नोटंकी के और धमक- चेतावनी के साथ हर तरह की वसूली के कार्यकाल के रूप में उसे याद रखा जायेगा। उमा बहुत कुछ थी पर आज कुछ नहीं है, पर आने वाले कल में उनका अस्तित्व इतिहास में उल्लेख के लायक नहीं रहेगा। बेहतर यही होगा की वे मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति को राजनीति की तरह चलने के लिये छोड़कर अब वान्यप्रस्त की ओर अपने कदम बढ़ाये, जहां एक प्रवचनकर्ता के रूप में उन्हें कम से कम मानसिक शांति को मिल सकें। 
उमा भारती का उत्थान, पतन और अस्तित्वहीन होना राजनीति की वह सच्चाई है जो यह इशारा करती है कि नेता अपनी क्षमताओं के बावजूद यदि सही योजना, सही सलाहकार और सही निर्णयों को एक साथ प्रभावी नहीं कर पाता तो अंतिम परिणीति उमा की तरह ही होनी है। आज भाजपा जहां खड़ी है निसंदेह उसमें उमा भारती की एक बड़ी भूमिका थी एक बड़ी भूमिका है। पर एक बार विजयी होने के बाद अंहकार और मूर्खतापूर्ण राजनैतिक परिचालन एक जमीन से जुड़े हुये नेता को भी कैसे अस्तित्वहीन कर देता है यह बससे बड़ा उदाहरण इतिहास में जीवित रहेगा।