गुजरात में आप से इतनी भयभीत क्यों है - भाजपा
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): आने वाले दिनों में गुजरात विधानसभा के लिये होने वाले चुनाव किस हद तक महत्वपूर्ण हो गये हैं इसका सहज अंदाज नहीं लगाया जा सकता। अपने-अपने भविष्य को संरक्षित करने और मजबूती प्रदान करने के लिये, यदि कांग्रेस और भाजपा के लिये यह चुनाव महत्वपूर्ण है तो आम आदमी पार्टी के लिये एक राष्ट्रीय विकल्प बन जाने की प्रक्रिया यहीं से शुरू होती है। गुजरात चुनाव की वह भूमि बन चुका है जहां से भारत के राजनैतिक भूतकाल को भविष्य बनाने की प्रक्रिया मजबूत होगी या एक नये भविष्य की ओर भारत के बढ़ने की पक्रिया प्रारंभ होगी।
यह नहीं माना जा सकता कि गुजरात को वैचारिक रूप से कमजोर मान कर केवल आर्थिक प्रलोभनों के आधार पर फिर से जीता जा सकें। यह भी नहीं स्वीकार किया जा सकता कि आर्थिक रूप से सक्षम गुजराती मतदाताओं की व्यवसायी बुद्धि के सामने उनकी राजनैतिक और सामाजिक बुद्धि का विकास कम हुआ है। गुजराती भारतीय समाज का वह प्रतिष्ठित समूह है जो एक व्यवसायिक प्रवृत्ति के सवर्धन के लिये राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों की लगातार व्याख्या करता रहता है।
ऐसा नहीं है कि समूचे देश में चल रहा राजनैतिक प्रपंच गुजराती समुदाय के समझ में नहीं आ रहा। गुजरात का आम नागरिक भी राष्ट्रीय स्तर पर महगांई और बेरोजगारी की समस्या पर लगातार सामना कर रहा है। यह समझ लेना कि गुजरात के नेतृत्व में देश की शीर्ष सरकार चलने का मतलब गुजरात का अपने आप सम्पूर्ण रूप से सम्पन्न हो जाना है गलत है। यह बात अलग है कि पिछले 27 सालों में गुजरात की राजनीति व्यवसायिक मानसिकता के साथ चलती रही है।
गुजरात राज्य में दूसरे बडे़ राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस का कोई अस्तित्व रह गया है इस पर चिन्तन करना जरूरी है। जिस तरह के झूठे वायदों और काल्पनिक स्पप्नों के भरोसे 27 साल गुजरात में गुजरे है, उसी तेजी के साथ आम आदमी पार्टी ने एक विरोध की हवा को जन्म दिया है। पूरे देश की भांति दिल्ली और पंजाब माडल को देखते हुये हर गुजराती एक बार एक नई राह पर चलने के लिये सोच रहा है। संभवतः यही कारण है कि 27 साल शासन करने वाली भाजपा को इस राज्य में अब कदम-कदम पर खतरा नजर आने लगा है।
यदि यह मान भी लिया जाए कि जातिगत और धर्मगत आधार पर बंटे हुये गुजरात में अभी भी 27 साल पुरानी लहर को जीवित किया जा सकता है, तो राज्य के गांव-गांव में परिवर्तन की एक चाहत क्यों नजर आती है। गुजरात राज्य से इस देश का प्रधानमंत्री और गृहमंत्री देश को दिशा दे रहे हैं, इस बात का गर्व गुजरातियों में कम क्यों होता जा रहा हैं। क्यों आम गुजराती दिल्ली और पंजाब माडल के सफल कहें जाने वाले कार्यक्रमों के विज्ञापन इतने गौर से गुजरात में देख रहा है। भविष्य के चुनाव में कांग्रेस स्वयं अनुपस्थित होने जा रही है, कांग्रेस की रूची गुजरात के स्थान पर हिमाचल प्रदेश में दर्शायी जा रही है। यही कारण है कि भाजपा के सामने विकल्प की राजनीति के रूप में आम आदमी पार्टी के फायदे अधिक प्रभावशील नजर आ रहे है।
जिस तरह से आम आदमी के ऊपर आरोपों और जांच का सिलसिला अचानक प्रारंभ हुआ है, उसका भी कोई सार्थक प्रभाव भाजपा के पक्ष में जाता हुआ नजर नहीं आ रहा। इसका प्रमुख कारण गुजराती समूदाय की वो संवेदनशीलता है जो दूसरों के दुख और तकलीफ मे हमेशा मददगार बनके हाथ बढ़ाने में पृवत्ति की पक्षधर है। यदि विभिन्न आरोपों में जांच और गिरफ्तारी का सिलसिल ऐसे ही बिना परिणाम के चलता रहा तो इसे गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरोध में जाने से कोई नहीं रोक सकता है। वस्तुतः भाजपा ने स्वयं अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को अपने वक्तव्यों के माध्यम से इतना महत्वपूर्ण बना दिया है कि कार्यकर्ताओं के दिल में एक अज्ञात खोफ कायम हो गया है और मतदाताओं को एक नई उम्मीद की किरण नजर आने लगी है। अगला चुनाव गुजरात में भाजपा विरूद्ध आम आदमी पार्टी होना है। यह बात अलग है कि कुछ सीटों पर कांग्रेस भी अपने अस्तित्व को प्रदर्शित कर सकती है।