प्रदेश में आदिवासी वोटरों पर - सब की निगाहें लगी...
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं को अब एक बड़ा वोट बैंक मान लिया गया है। पिछले कुछ समय से यह तय नहीं हो पा रहा था, कि अनुसूचित जाति या जनजाति में से किसे वोट बैंक के रूप में स्वीकार किया जाए। वोट बैंक का अर्थ यह होता है कि समूह में एक विशेष वर्ग के लोगों को प्रलोभन दिखा कर, कुछ स्थानीय नेताओं के माध्यम से अपने पक्ष में एक तरफा वोटिंग करा ली जाए। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का एक प्रमुख कारण आदिवासी क्षेत्रों में उसका पिछड़ जाना था। इन क्षेत्रों में इस बार भी भाजपा की स्थिति बेहतर नहीं हैं, इसके बावजूद एक साल पहले से भाजपा ने अपने सभी संगठनों को आदिवासी वर्ग पर अधिक ध्यान देने और उनकी महत्वकांशाओं को समझने में लगा दिया है।
यह माना जाता है कि अनुसूचित जाति वर्ग के लिये बहुजन समाज पार्टी सहित कई संगठन राजनैतिक रूप से राज्य में सक्रिय हैं। इसलिए एक संगठित रूप से इस वर्ग को अब वोट बैंक बना पाना मुश्किल होता जा रहा है। इसके विपरीत जनजातिय वर्ग में नेतृत्व का अभाव और शिक्षा की भारी कमी जैसे दोष होने के कारण कांग्रेस और भाजपा इस वर्ग को प्रभावित करने के लिये अपना पूरा जोर लगा रही है।
आदिवासी वर्ग के मध्य में भी कुछ संगठन राजनीतिक रूप से कार्य करते हैं, जिसमें वर्तमान में जयस जैसे संगठन महत्वपूर्ण है। गोंडवाना अपने अस्तित्व के लिये लड़ाई लड़ रही है, उसके क्रियाशील सदस्यों ने मध्यप्रदेश के लिये एक नये संगठन राष्ट्रीय क्रांति दल की रचना कर ली हैं। आदिवासियों बीच में वनवासी रहन-सहन होने के कारण सम्पर्क की स्थितियां बहुत अनुकूल नहीं है। आदिवासी अपने जीवन के लिये अपने क्षेत्र में ही संघर्ष करता रहता है, इनके बीच में से जो व्यक्ति राजनीति रूप से मजबूत हो जाता है। वह स्वयं कभी यह कोशिश नहीं करता है कि अपने समाज को वो अधिक स्थायी, मजबूत और स्थिर बना सकें।
राजनैतिक दल इस बात को भलीभांति जानते हैं कि आदिवासी समाज की आवश्यकताएं बहुत थोड़ी हैं और महत्वकांशायें लगभग नहीं के बराबर है। इसलिए इस समूह को ध्यान में रखते हुये कांग्रेस और भाजपा अपने चुनाव की व्यूह रचना कर रहे हैं। परंतु दोनों ही दलों की ओर से ऐसा कोई स्थायी कार्यक्रम लागु नही किया गया, जो आदिवासी वर्ग को व्यक्तिगत तौर पर प्रभावित कर सकें। दोनों दलों के इस वर्ग से संबंधित नेताओं और विधायकों को अपने दल के पक्ष में जन जागरण करने का अधिकार दिया गया है। जबकि इस समूची प्रक्रिया का अध्याय प्रादेशिक स्तर पर राजधानी में बैठक दोनों ही दल करने जा रहे है।
आदिवासी क्षेत्रों में किसी अफवाह को जन्म देकर वोट बटोरना असंभव है। क्षेत्र की धुरियां अधिक होने के कारण और आदिवासी संस्कृति में विविधता होने के कारण यह कार्य संभव नहीं है। कुल मिलाकर राजनैतिक रूप से स्थायी लाभ लेने के लिये दोनों दलों के जमीनी कार्यकर्ताओं को अलग-अलग टुकड़ों में रह रहें आदिवासियों समूह के पास ही जाना होगा और उनसे उनकी जरूरतों के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करनी होगी। इस कार्य के लिये वर्तमान में समय पर्याप्त है, परंतु दोनों दल कितनी गंभीरता से इस अभियान को आगे बढ़ाते हैं यह देखना होगा।