संस्कारित भाषा भूले-जयवर्धन
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राजनीति में जब आने वाली पीढ़ी, गुजरे हुये कल में उनके बुजुर्गों पर किये गये एहसान को केवल इसीलिये भूल जाय, क्योंकि विरोध में बोलने से आने वाले कल में बहुत कुछ हासिल होना है। तो यह मान लेना चाहिए कि भारतीय राजनीति अपनी पुरातन परम्पराओं में परस्पर सम्मान का भाव रखने वाली भावना से विपरीत जा खड़ी हुई है। मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ वर्षो पहले पैदा किये गये जयवर्धन सिंह अब कभी उनकी पीढ़ियों के आश्रय दाता रहे सिंधिया राज परिवार को ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस के लिये पनोती बता रहे हैं। जयवर्धन सिंह को संभवतः राज परिवारों के संस्कार और देश के आम व्यक्ति की परस्पर सम्मान की भावनाओं का ज्ञान नहीं है। राज्य की राजनीति जयवर्धन सिंह अभी तक कुछ ऐसा विशेष कुछ नहीं कर सके, जिसे कांग्रेस के लिये एक मजबूत आधार कहा जा सकें। मिलनसार प्रवत्ति होने के कारण और पिता से मिली राजनीति विरासत अबतक उनकी राजनीतिक पहचान हैं।
उल्लेखनीय है कि कई पीढ़ियों पहले ग्वालियर के महाराज सिंधिया ने एक छोटे से क्षेत्र की जमीदारी जयवर्धन सिंह के पूर्वजों को सौपी थीं। जिसे सिंधिया आज एक टोल नाके की वसूली का प्रभार बताते हैं। कांग्रेस की एक बैठक ने जयवर्धन सिंह का यह बयान स्पष्ट करता है, कि वर्तमान कांग्रेसी सिंधिया के कई महीनों पूर्व पलायन के बाद भी अभी तक उनके असर से बाहर नहीं हो पाय है। यह बात अलग है कि पिछलें दिनों ग्वालियर क्षेत्र का व्यापक दौरा करके जयवर्धन सिंह ने एक नई राजनीति को स्थापित करने की कोशिश की है। दूसरी और सिंधिया भी पहली बार राजगढ़ क्षेत्र में अपनी जमीन को वापस कब्जा करने के लिये प्रयासरत है।
जयवर्धन सिंह का यह बयान कई मान्यताओं को तोड़ता है, राज्य की राजनीति का आदर्श अभी तक बड़ों के प्रति सम्मान और विरोधियों के प्रति परस्पर मित्र भाव पर आधारित है। संभवतः यही कारण है कि प. द्वारका प्रसाद मिश्रा की सरकार को विपक्ष में बिठाने के बाद संविद सरकार के मुख्यमंत्री गोविन्द नारायण सिंह मिश्रजी के प्रत्येक ताने पर उन्हें उनके द्वारा रचित कृष्नायन के संदर्भ दिया करते थे। कांग्रेस टूटने के बाद भी और देश की पहली संविद सरकार बनने के बाद भी कभी पनोती जैसे शब्दों का उपयोग राजनीति में नहीं किया गया।
पनोती का उपयोग करके जयवर्धन सिंह ग्वालियर में कमलनाथ की शासन की पुर्नस्थापना की घोषणा करते हैं। जयवर्धन सिंह शासद यह नहीं जानते कि कमलनाथ मध्यप्रदेश में सम्मान का दूसरा नाम केवल इसलिये है कि जितना सहयोग वे अपने दल के साथ करते है उतना ही सम्मान विरोधी पक्ष के छोटे और बडे नेता और कार्यकर्ता का भी करते हैं। कमलनाथ से स्व. माधवराव सिंधिया वैचारिक दूरियां हमेशा बनी रही। परंतु कभी कमलनाथ ने सिंधिया के लिये पनोती जैसे शब्दों का उपयोग नहीं किया, कमलनाथ चाहते तो उचित अवसर पर सिंधिया के लिये अप शब्दों का उपयोग कर सकते थे, परंतु राजनीति की एक मर्यादा होती है। बडे़ नेताओं को अपने पुत्रों को अपनी राजनीति विरासत सौपने के पहले परस्पर सम्मान और सहयोग भावनाओं को पैदा करना चाहिए। यदि यह भवना राजनीति से समाप्त हो गई तो जयवर्धन सिंह या उसकी बाद की पीढ़ी में सत्ता पक्ष और विपक्ष केवल अपशब्दों और बोलियों की भाषा में खुले मैदान में आचरण करेगा। यह सोचना गलत है कि जयवर्धन सिंह अपने बयान के लिये कभी माफी मांगेगे, भले ही उन्होंने यह बयान पीढियों से उनके रहनुमा रहे महाराज के विरोध में ही क्यों न दिया हो।