(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर, भाजपा जिस तरह सक्रिय है उसके ठीक विपरीत उसका विकल्प कही जाने वाली कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को वह गति नहीं दे पा रही। जो एक अल्पकाल में पार्टी को मजबूती से खड़ा हुआ दिखा सकने में सक्षम हो। राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पत्र यात्रा भले ही अभी मध्यप्रदेश से सैकडों कि.मी. दूर हो। पर उसमें भाग लेने के लिये मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेता कर्नाटक की सड़कों पर केवल डांस करते हुये नजर आ रहे हैं। पद यात्रा राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर हो रही है, मुद्दें भी वहीं है जो आम आदमी से संबंधित हैं। इन स्थितियों में मध्यप्रदेश जैसे राज्य जहो 2023-24 में दो बड़े चुनाव होने हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गतिविधियां फेसबुक, ट्विटर, सामाजिक समारोह में उपस्थिति की केवल फोटो दिखाने तक सिमित है।
यह सैद्धांतिक रूप से माना गया है, कि सफल राजनीति का जन्म जन आक्रोश और जन आंदोलन से होता है। मध्यप्रदेश में वर्तमान सत्ताधारी दल के विरूद्ध इतने तथ्य और प्रमाण इकत्र है, कि आम व्यक्ति को जगाने के लिये किसी बड़ी योजना को जन्म दिया जा सकता है। कर्नाटक जाकर राहुल गांधी के प्रयास में नृत्य करने के स्थान पर यदि कांग्रेस राज्य में एक सामानान्तर जनआंदोलन खड़ा करती तो इसे राजनैतिक प्रयास समझा जाता। राज्य में अभी टिकिट बटे नहीं है, पर संभवित उम्मीदवारों ने अपने पक्ष में दोनों ही दलों में लॉबिंग शुरू कर दी है। मतदाता को जगाने के नाम पर केवल मुण्डन, खतना, शादी एवं अन्य छोटे धार्मिक आयोजनों में कांग्रेस के बडें नेताओं की उपस्थिति नजर आती है। जिसे वे अपने राजनीतिक अस्तित्व का हथियार बनाने के लिये सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक रूप से प्रचारित करने में पीछे नहीं हटते।।
आम जनता के मुद्दों से अलग खड़ी हुई कांग्रेस केवल एक चमत्कार के भरोसे है, कि कमलनाथ का चेहरा राज्य में बहुत बड़ी क्रांति का कारण बनेगा। भाजपा की तरह कांग्रेस के जिला एवं ग्रामीण स्तर के नेताओं को अभी तक यह समझ नहीं आ रहा है, कि जनता के मध्य जब तक उसके स्थानीय मुद्दों को राज्य की प्रशासनिक कमजोरियों को वे एक बड़ा मुद्दा नहीं बनायेगें, तब तक मतदाता उनके पक्ष में खड़ा नहीं होगा। वोट खरीदने की ताकत में भाजपा राज्य में कांग्रेस से राज्य में कही आगे है। 20 सालों तक चली सरकार ने प्रशासनतंत्र के वैचारिक स्तर पर एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है। 15 महीनों की कांग्रेस सरकार ने प्रशासनिकतंत्र कितना प्रभावित हो सकता है यह सहज में समझा जा सकता है। जबकि इन 15 महीनों के दौरान राज्य में मुख्यमंत्री के अतिरिक्त एक शैडो मुख्यमंत्री भी कार्यरत था। कांग्रेस की मान और प्रतिष्ठा आजादी की लड़ाई से ही जन आंनदोलनों पर आधारित रही है। अन्य दलों द्वारा किये जाने वाले इन आंदोलनों और कांग्रेस के आंदालेन के बीच एक मुख्य भेद यह था कि कांग्रेस समग्र को एकत्र करके आंदोलन की रचना बनाती थी, जिसके प्रमुख महात्मा गांधी हुआ करते थे। वहीं आजादी के बाद हुये सभी बडे़ जनआंदोलन सत्ता प्राप्त करने के लक्ष्य को सामने रख कर किये गये है। कांग्रेस को यह भी समीक्षा करनी चाहिये कि इस देश में अन्ना हजारे के नेतृत्व के रूप में फर्जी आंदोलन खड़ा किया गया था। हजारे न तो राष्ट्रीय थे और नाही किसी राष्ट्रीय विचार धारा से प्रेरित। सत्ता परिवर्तन के बाद अन्ना हजारे को वर्तमान सरकार ने ही भुला दिया, जेड प्लस की श्रेणी सुरक्षा देकर अन्ना महत्वपूर्ण हो गये और यह भी संभावना है कि कांग्रेस को उल्टाने का पुरस्कार उन्हें भविष्य में उन्हे किसी राष्ट्रीय अलंकरण के रूप में मिल जाये। पर अन्ना आंदोलन के बाद कभी प्रासंगिक नहीं हो सके, उनकी स्थिति इस देश के आम जनमानस के सामने एक फर्जी आंदोलन की बन कर रह गई।
कांग्रेस मध्यप्रदेश में कितनी गंभीर है, इसका अंदाज केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि जितने भी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष, विपक्ष के नेता आज कांग्रेस के साथ जुडे हुये है। आज कांग्रेस में उन सभी को शक्तिहीन करके स्वंय कांग्रेस ने घर बिठा दिया है। उनकी हैसियत घर बैठकर भैसों से निकलने वाले दूध का हिसाब रखने, खेतों में पकने वाले फलों की गिनती तक सिमित रह गया है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस सुनहरे भविष्य की ओर देख रही है।