(Advisornews.in)

सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में इन दिनों तबादलों का सीजन अंतिम चरण में है। 18 साल का अनुभव रखने वाली वर्तमान सरकार के मंत्रियों ने इस तबादलें के मौसम में अलग-अलग प्रयोगों के माध्यम से, अपने निजी कोष को स्थायी बनाने के लिये भरपूर प्रयास किये है। प्रशासनिक तंत्र में चुप्पी लाने के नाम पर और स्वयं को भ्रष्टाचार विरोधी प्रतिक बनाने के लिये, अब मंच से ही निलम्बन की प्रक्रिया बुलडोजर चलाने की प्रक्रिया की तरह तेजी से प्रारंभ हो रही है। न कानून न कायदा और ना ही प्रक्रिया, किसी जात की कोई जरूरत नहीं। बस राजा को असंवैधानिक लगा और उसने जनता के मध्य ही सरकारी कर्मचारी-अधिकारी को निलम्बन का फरमान सुना दिया। इसमें संदेह नहीं है कि इस तरह की प्रक्रियाओं को आम जनता के मध्य थोड़े समय की लोकप्रियता प्राप्त करने का सर्वाधिक सुलभ साधन माना जा सकता है। परंतु सरकार की नाक के निचे जिस तरह जल संसाधन मंत्रालय के एक मामूली से टाइम कीपर के घर करोडों की सम्पत्ति मिल रही है, वह इशारा करती है कि चारो तरफ लूट मची है।
तबादलों के इस मौसम में विभागीय मंत्रियों ने कुछ मापदण्ड निर्धारित किये हैं। वैसे सामान्य प्रशासन विभाग के सामान्य निर्देष यह है कि किसी भी अधिकारी कर्मचारी का तबादला कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर तीन वर्ष में एक बार किया जा सकता है। परंतु सरकार में बैठे मंत्री और अधिकारी इन विशेष परिस्थितियों को अपनी सुविधानुसार कागजों में निर्मित कर रहे है और मात्र 10 माह या 12 माह के बाद ही पुनः स्थानांतरण के आदेश जारी किये जा रहे है। 15 माह पूर्व कई लाख रूपये देकर जो तबादला आपने कराया था, अभी आप उसकी वसूली भी नहीं कर पाये और पुनः उससे अधिक वित्तीयभार झेलने के लिये पुनः स्थानांतरण कर आपको बाध्य किया जाय। यह नैतिक नजर नहीं आता। 
कुछ विभागों के मंत्रियों और अधिकारियों ने जिलों से होने वाली अवैध आमदनी के आधार पर मध्यप्रदेश के अपने विभाग के जिलों को ए.बी.सी.डी. वर्ग में विभाजित कर लिया है। ए-वर्ग के अधिकारी के लिये 50 लाख, बी-वर्ग के अधिकारी के लिये 30 लाख, और सी-वर्ग के अधिकारी के लिये 20 लाख रूपये जैसी रकम निर्धारित की गई है। जिसका भुगतान भी आपको अग्रिम रूप में करना पड़ता है। इस तरह राज्य की सरकार ठीक चुनावी वर्ष में प्रशासनिक कसावट लाने की कोशिश कर रही है। 
शहर के निजी टाइपिंग संस्थान में आवेदन पत्र टाइप करवाने वालों से भरे पडे है, होटल्स पूरी तरह आरक्षित है, भोजनालय में भोजन की उपलब्धता कम होती जा रही है। कूल मिलाकर व्यवसाय की दृष्टि से यह तबादला सत्र चुनाव पूर्व अंतिम ही सही सबकी कमाई का जरिया बन रहा है। 
मंत्री अपने विशेष सहायकों से तबादलों की सूची तैयार करवा रहे है, उनके परिवारजन, दलाल और निजी स्टाफ में पदस्थ कर्मचारी हर आने वाले से अग्रिम जमा करवा रहा है। जबकि विभाग के सचिव इस बात के लिये तैयार बैठे है, कि जो कुछ होगा नियमों के अनुसार होगा, हम तक लिस्ट तो आने दो। दूसरे अर्थो में कहें तो निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिये चल रहे इस तबादला उद्योग की अंतिम परिणीति एक बार पुनः विभागीय मंत्री और उच्च अधिकारियों के मध्य किसी मतभेद की संभावना को जन्म दे रही है। जिसके सुखद या दुखद परिणाम भविष्य में सामने आयेंगे। 
इस दौड़ में अधिकारियों-कर्मचारी का एक और दस्ता भी तैयार हो रहा है, जो पिछली रिकवरी न हो पाने के कारण पुनः राजनीति कल्याण कोष में लाखों रूपये देने से बच रहा है और स्वयं के भविष्य को आगामी चुनाव का ईश्वर के भरोसे छोड़ रहा है।