(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):-
एक पुरानी कहावत है कि कभी नाव नदी पर तो कभी नदी नाव पर, भारत की कांग्रेस की राजनीति में कुछ ऐसे परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं, जिससे अब नदी नाव पर आश्रित होने जा रही है। राष्ट्रीय राजनीति में राजस्थान को लेकर जो विश्वास और वफादारी का संकट पैदा हुआ है, उसमें कांग्रेस के इतिहास में पहली बार सारे समीरण बदल दिये हैं। हाई कमान, हाई कमान नहीं रह गया, गुरू के सर पर चेले का डांस होना तय होता जा रहा है। एक बार फिर युवा शक्ति को आगे बढ़ाने के नाम पर, बूढ़ों की राजनीति फिर अपना नया दाव चलने जा रही है या यह कहे कि युवा शक्ति को कागजी तौर पर आगे बढ़ाने वाला कांग्रेस समूह फिर युवाओं की भावनाओं की सामूहिक कब्रगाह बनाने जा रहा हैं।
इस राष्ट्रीय राजनीति का मध्यप्रदेश की राजनीति में व्यापक असर पडेगा। कांग्रेस के राजनैतिक इतिहासकार भलीभांति जानते हैं कि 10 साल के दिग्विजय सिंह के शासनकाल के अंत के बाद, कांग्रेस के राज्य में सम्पूर्ण पतन की एक मजबूत पृष्ठभूमि तैयार हो गई थी। इस जमीन पर किसी फसल का फिर से उग पाना असंभव था। इसी बीच कांग्रेस में कमलनाथ वापस एक नई चेतना को लेकर प्रगट हुये। तय तो यह था, कि राष्ट्रीय राजनीति के एक महाप्रबंधक मध्यप्रदेश की बंजर राजनैतिक भूमि में, नई राजनैतिक फसल की तैयारी करेंगे पर हुआ इसका उल्टा। प्रारम्भिक दौर में कमलनाथ के चेहरे पर विश्वास करते हुये और भाजपा के लगातार चल रहे शासन के प्रति असंतोष ने, कांग्रेस को 5 साल की एक सरकार दे दी। जिसे राजा महाराजा बीच की प्रतिस्पर्धा और पुश्तैनी दुश्मनी के कारण 15 महीनों में ही खंड-खंड होकर बिखर जाना पड़ा।
अब, तब से लेकर अब तक, एक आज्ञाकारी कांग्रेस की भाती मध्यप्रदेश की समूची कमलनाथ राजनीति को बांस और बल्लियों के सहारे दिग्विजय सिंह ही पार लगाते आये हैं। जमीनी राजनीति में कमजोर पकड और तकनीकी जानकारी के विशेषज्ञ कमलनाथ एक बड़े भाई के रूप में हाथ पकड़कर दिग्विजय सिंह के प्रति हाई कमान की सारी दुर्भावनाओं को समाप्त करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहें। परिणाम यह हुआ कि करीब 100 किमी की नर्मदा यात्रा करने वाले दिग्विजय सिंह जमीनी दौड़ में कई आगे निकल गये।
अब स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को आने वाले दिनों में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष को मिलने के लिये पर्ची भेज कर इंतजार करना होगा कि उनका समय कब निर्धारित होता है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति से चलने वाले प्रत्येक निर्देश का अनुशासन की परिधि में रह कर, पालन करना भी मध्यप्रदेश के पार्टी अध्यक्ष का कर्तव्य होगा। संभवः इसे ही नाव में नदी का समाना कहा जाता होगा। 
मध्यप्रदेश बड़ी उत्सुकता के साथ उस क्षण की प्रतिक्षा कर रहा है, जब गले में गेंदे के फूलों की माला डालकर कल तक राजा कहें जाने वाले दिग्विजय सिंह, महाराज दिग्विजय सिंह बन कर हवाई अड्डें पर अवतरित होंगे, और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के स्वागत के लिये प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष, कमलनाथ गुलदस्ते के साथ उनका स्वागत करेंगे। परिवर्तन के यह संकेत अभी अस्पष्ट हैं, पर यह तय है कि कांग्रेस हाई कमान के टूटे हुये मनोबल और हताश निराश गतिविधियों में कोई भी षड़यंत्रकारी नेता राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का नेतृत्व अपने हाथ में ले सकता है। उसके परिणाम चाहे कुछ भी हो। पर यह तय है कि कांग्रेस एक ऐसे रास्ते पर आकर खड़ी हो चुकी है, जहां से उसमें एक बड़ी टूटन की संभावना और राहूल गांधी की पद यात्रा के बाद ही उसकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आना तय है। 
देश में विभिन्न टीवी चेनल कांग्रेस की इस स्थिति का प्रति सेकण्ड मूल्यांकन कर रिपोर्ट प्रस्तुत कर हैं। जिसका व्यापक असर रिपोर्ट देखने वाले मतदाता के मस्तिष्क पर अंकित होता जा रहा है। यह भी तय है इस समूचे घटना क्रम से केवल राजस्थान ही नहीं गुजरात एवं अन्य राज्यों के भविष्य में होने वालें चुनावों पर एक व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है।