(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):-
जब कोई राजनैतिक दल अंदर ही अंदर खोखला हो जाता है तो, उसके हाई कमान को ऐसे समझौते करने पड़ते हैं, जो राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों से विपरीत जाकर उसके नेतृत्व पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगते हैं। कांग्रेस एक ऐसे दोराहे पर खड़ी है जहां, राष्ट्रीय नेताओं के नाम पर अवसरवादी और अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले नेताओं की एक बड़ी जमात स्वयं उसके अस्तित्व पर संकट उपस्थित कर रही है। राजस्थान का समूचा घटना क्रम यह बताता है कि, राजस्थान राज्य में गेहलोत की अनुपस्थिति की कल्पना मात्र से हाई कमान किस कदर भयभीत हो गया और समझौते के उस रास्ते को अपना लिया, जिससे नेतृत्व की क्षमता पर ही प्रश्न चिन्ह उपस्थित हो गये। 
गेहलोत ने जो किया उसे कम से कम अनुशासन की परिधि में तो नहीं माना जा सकता। अनुशासनहीनता करके मासूमियत का चोला ओढ़ लेना, इन दिनों राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में परिपाटी बन चुकी है। कांग्रेस हाई कमान और उसके परिवेक्षक राजस्थान की मेरियट होटल में गेहलोत का परोसा हुआ भोजन करके अपने आत्म सम्मान को समाप्त कर दिल्ली लोट आये और नौ पन्नों की रिपोर्ट में सबसे पहले अशोक गेहलोत को ही क्लीनचिट दे दी।
आने वाले दिनों में कमजोर कांग्रेसी हाई कमान को डराते हुये अभी कई राष्ट्रीय नेता गेहलोत जैसी जादूगरी दिखायेगी, पर क्या इससे कांग्रेस का भविष्य सुरक्षित होगा। हाई कमान चाहता था कि राजस्थान में नेतृत्व बदले, पर क्या वह अब हिम्मत कर पायेगा। 
राष्ट्रीय स्तर गुर्जर समाज क्या सचीन पायलेट की उपेक्षा के बाद कांग्रेस के साथ एक जुट होकर खड़ा रहेगा, क्या समूचा गुर्जर समाज सचीन पायलेट के नेतृत्व में ही अपने नये राजनैतिक मार्ग की खोज कर लेगा। इस तथ्य की सम्भावना और अफवाएं तेजी से फैली है कि, सिंधिया की तहर गेहलोत भी निर्बल पडे़ हुये कांग्रेस हाई कमान को नकार कर एक नई राजनैतिक भूमि की तलाश कर सकते  हैं।
कांग्रेस में राष्ट्रीय नेतृत्व का संकट गहराता जा रहा है। राजनीति के भावी कर्णधारों में अब दिग्विजय सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। यहां यह नहीं भूलना चाहिये कि 10 वर्ष के अंतिम शासनकाल के बाद, 20 साल हो गये कांग्रेस मध्यप्रदेश में वापस नहीं लोटी है। 15 महीनों की अल्प अवधि में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार भी इन्हीं दिग्विजय सिंह को समर्पित थी। जिसने 15 महीनें के बाद हुये उपचुनाव में बागी प्रत्याशियों के सामने कांग्रेस को समाप्त कर दिया। 
देश की राजनीति में राजस्थान की घटना एक राष्ट्रीय दल के पतन और नेतृत्व की नाकामयाबी की मिसाल बनेगी। भाजपा कहती रह गई कि उसे कांग्रेस मुक्त भारत चाहिये, कांग्रेस गांधी परिवार मुक्त भारत की ओर क्रमशः बड़ती रही और आज गांधी परिवार की कोई आवश्यकता कांग्रेस के संगठन को नहीं है। 
बगावत के ये सूर राजस्थान में यह प्रमाणित कर गये है कि हाई कमान डरता है उसे डराने वाला चाहिये। जादूगर अशोक गेहलोत की शैली कांग्रेस में प्रमाणित मानी जायेगी और धीरे-धीरे देश के अन्य भागों से भी कांग्रेस के पदाधिकारी इस कीचड़ से अपने पैर वापस खींचकर नये भविष्य की तलाश करेंगे।