(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):-
यह तय हो गया कि हम एक अंतराष्ट्रीय छवि को राज्य के दायरे में कैद करके उसकी क्षमताओं का आकलन कर रहे थे। प्रादेशिक स्तर पर एक इतने बडे़ नेता को राज्य के ग्रामीण स्तर की राजनीति तक बांध पाना संभव नहीं था। हमने सूर्य की रोशनी को हेलोजन लाइट बनाकर राजनीति में प्रयोग प्रांरभ किये थे, जिनका निरर्थक होना तय था। राजस्थान में हुई कांग्रेस की उठापटक ने यह प्रमाणित कर दिया कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये कितना भी समर्पित और पुराना कांग्रेस कार्यकर्ता हो, अपने नेतृत्व को कभी भी ठेंगा दिखा सकता है। अशोक गेहलोत कल तक कांग्रेस के सबसे वफादार बुजुर्ग, अनुभवी, योजनाकार माने जाते थे। उनकी निष्ठा गांधी परिवार के प्रति इस दर्जे की थी कि हर सांस में वे सोनियाजी का नाम प्राथमिकता के आधार पर रखते थे। राजस्थान के मुख्यमंत्री पद में परिवर्तन की बात क्या हुई, अशोक गेहलोत अपनी सारी निष्ठा भुलकर षड़यंत्र के उस दलदल मे जा खडे़ हुये जहां से गुजर कर कई कोंग्रेसियों ने कांग्रेस हाई कमान को अंगुठा दिखाया है। 
इन परिस्थितियों में एक बहुत बड़ा परिवर्तन राष्ट्रीय राजनीति में नजर आया। कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को अहमद पटेल के बाद वास्तव में किसी वरिष्ठ राजनेता और प्रबंधक की भारी जरूरत है। नेतृत्व की अनुभवहिनता और कुटनीति दांव पेंच में उनके कमजोर होंने के कारण धीरे-धीरे कांग्रेस में एक स्वतंत्र बुद्धिजीवियों या बागियों का समूह खड़ा होता जा रहा है। जो बचीकुची कांग्रेस में से अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिये अब तक के कांग्रेस के सिद्धांत और परम्पराओं को नोच कर खा रहा है।
बदलती राष्ट्रीय परिस्थितियों में जब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर संकट में आई तो मध्यप्रदेश के अध्यक्ष कमलनाथ की याद आना स्वाभाविक थीं। कांग्रेस के इतिहास में कमलनाथ कई बार विपरित परिस्थितियों में पार्टी के संकट मोचन बन कर उभरे हैं। वास्तव में कमलनाथ का आकार इतना छोटा नहीं है कि उन्हें केवल मध्यप्रदेश राज्य में सिमित किया जा सके। कमलनाथ मध्यप्रदेश में राजनीति करने के दौरान छोटे-छोटे राजनैतिक उपक्रमों के लिये विश्वस्त मानकर उन लोगों को अपना माध्यम बनाते रहे जो स्वय अपने स्वार्थ के लिये कांग्रेस की कालीन को कुतरने की कोशिश कर रहे थे।
कमलनाथ को राष्ट्रीय राजनीति में राजस्थान की समस्या के निराकरण के लिये उपयुक्त समझा गया, वास्तव में यही कमलनाथ की जमीन है जहां वे स्वतंत्र रूप से अपने स्वभाव के अनुसार खेल सकते हैं। कमलनाथ इस राष्ट्रीय संकट को किस तरह निपटायेंगे किन-किन मध्यस्तों का उपयोग वे करेंगे यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा। पर राष्ट्रीय राजनीति के संकट मोचक के रूप में कमलनाथ ने अपनी ख्याति पुनः अर्जित कर ली है। आम कांग्रेसजनों को यह विश्वास है कि राजस्थान की राष्ट्रीय स्वरूप लेती समस्या को हल करने में कमलनाथ को उनके पूर्व अनुभव का पूरा लाभ मिलेगा। संभवतः यही करण है कि प्रत्येक राजनैतिक दल कमलनाथ को जरूरी मानते हुये किन्ही भी परिस्थितियों में उनसे अपने संबंधों को बिगाडना नहीं चाहता। यह बात अलग है कि मध्यप्रदेश के छुटभय्ये नेताओं ने कमलनाथ को अपनी आय का साधन बनाकर उनके द्वारा प्रस्तावित किये गये राजनीति की मार्ग को दुषित कर दिया। कमलनाथ की अद्भुत प्रबंधन शैली से राज्य में पिछले दो दशक के दौरान ऐसे नेता पुनः राष्ट्रीय राजनीति स्थापित हो गये जो प्रथम दृष्टया पार्टी के सिद्धांतों और हितों की अनदेखी करके दण्ड के प्रथम हकदार थे। बहराल कमलनाथ एक बार पुनः राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर अपने नैसर्गिक स्वभाव का प्रदर्शन करने हेतु प्रस्तुत हुये हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस हाई कमान इस अद्भुत प्रतिभा की पहचान करेगा और कमलनाथ स्वयं राजस्थान की समस्या की निराकरण में सफल सिद्ध होंगे।