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सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):-
राष्ट्रीय राजनीति के बदलते हुये संदर्भो में कांग्रेस अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष खोज रही है। निर्वाचन की यह प्रक्रिया अगले माह के पहले पखवाड़े में पूर्ण होनी है। अशोक गेहलोत वर्तमान तक अखिल भारतीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में पहले नम्बर पर बताये जाते हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर गेहलोत को अपना राजस्थान मुख्यमंत्री का पद इस निर्वाचन के बाद छोड़ना पड़ सकता है। उन स्थितियों में राजस्थान मुख्यमंत्री पद के लिये सचीन पायलेट की दावेदारी सी.पी. जोशी एवं अन्य प्रत्याशियों के अनुपात में अधिक भारी बतायी जाती हैं।
इस पूरी राजनीति के केन्द्र में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष के सबसे करीबी दिग्विजय सिंह की राजनैतिक भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। दिग्विजय सिंह ने कांगेस के गोवा में सरकार बनाने में अक्षम रहने के कारण राष्ट्रीय राजनीति से पलायन कर लिया था। निरंतर प्रयासों और नर्मदा पद यात्रा परिकल्पना से मिले आर्शिवाद के भरोसे आज दिग्विजय सिंह, राहूल गांधी की पद यात्रा का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। दूसरे अर्थो में राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह से धीरे-धीरे क्रमशः उस मोड़ पर आकर खड़े हो गये हैं, जहां से कांग्रेस का नेतृत्व उनसे कुछ हाथ दूर ही रह गया है। 
वास्तविकता भी यही है कि निढाल पड़ी हुई कांग्रेस को एक कूटनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता है। एक ऐसा नेतृत्व जो संघ परिवर की कमजोरियों को समझता हो और उसके विरुद्ध सीना तान कर खड़ा हो सके। इतनी क्षमता संभवतः कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के अतिरिक्त ओर किसी के पास नहीं है। स्मरण रहे ये वहीं दिग्विजय सिंह है, जिन्होंने कमलनाथ की 15 महीनें के सरकार को सफलतापूर्वक चलाने के लिये और उसमें नये कीर्तिमान स्थापित करने के लिये दिन-रात एक कर दिये थे। बिना मुख्यमंत्री पद की शपथ लिये हुये राज्य में पहली बार अघोषित मुख्यमंत्री शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री से कही अधिक भारी पडा था। 
यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि 15 महीनों की कमलनाथ सरकार से सिंधिया का पलायान का प्रमुख कारण भी दिग्विजय सिंह की  राजशाही प्रतिद्विंदता का परिणाम माना गया था। एक राजा और महाराज के बीच अंहकार और वर्चस्व का युद्ध कमलनाथ की सरकार को रातोरात धाराशाही कर गया था। वर्तमान में राहूल गांधी की पदयात्रा में 300 कि.मी. तक पैदल चलने और भविष्य की यात्रा का मार्ग प्रशस्त करने की जिम्मेवारी लेने का साहस केवल दिग्विजय सिंह ही कर पाये हैं।
राजनेताओं का मानना है कि दिग्विजय सिंह जी के व्यक्तिगत् राजनैतिक संबंध और उनकी कूटनीतिक क्षमता का आकलन कर पाना किसी भी नेता के लिये संभव नहीं हैं। दिग्विजय सिंह लम्बी राजनीति के लिये स्वयं अपने दल और अपने विश्वास पर लोगों पर आघात करने से नहीं चुकते। वे जानते हैं कि थोड़ी देर के लिये मिला हुआ दर्द उनके राजनैतिक जीवन के साथ सफलता के नये अवसर जोडेगा। जो लोग यह मानते है कि दिग्विजय सिंह का राजनैतिक धैर्य और दिशा उनके कथित गुरू स्व. अर्जुन सिंह के समकक्ष ठहरती है। वे गलती करते हैं, राजनीति के जानने वाले मानते है कि दिग्विजय सिंह एक विशेष लक्ष्य के साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर काबिज होना चाहते हैं, जिससे भविष्य में गांधी परिवार के समकक्ष उनके राजनैतिक रसूख की गणना की जा सके। यह बात अलग है कि समाचार चैनल में वे स्वयं को समर्पित प्रदर्शित करते है। परंतु यह समर्पण किसके प्रति कब और कितना रहा है इस बारे में व्याख्या करने वालों के अलग-अलग मत हैं। 
कुल मिलाकर कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह के रूप में एक नया दीर्घजीवी नेतृत्व जन्म ले रहा है। जो आने वाले समय में स्वयं के लिये और कांग्रेस के लिये लाल किले की प्राचीर में मुकुट बन कर खड़ा होगा और कांग्रेस को नई ऊंचाईयों तक ले जायेगा।