प्रशासनिक बैचेनी ने-परिवर्तन के संदेह को गहरा किया
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):- एक कहावत है जब जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहें जहाज को छोडतें हैं। दूसरे अर्थो में कहें तो जब किसी राज्य की या केन्द्र की सत्ता में अस्थिरता के संकेत मिलने लगते हैं तो सबसे पहले प्रशासन से जुड़े हुये अधिकारी अपना विभाग बदल देते हैं। ऐसे ही कुछ संकेत इन दिनों मध्यप्रदेश में देखने को मिल रहे हैं। प्रशासन तंत्र में एक अजीब तरह की बेचैनी है। सचिवालय से लेकर संचालनालय तक फाइलों को टाला जा रहा है। अधिकारी और कर्मचारी अधिक से अधिक समय सरकार के राजनैतिक तंत्र में चलने वाली गतिविधियों पर कानाफूसी करने और निगाह रखने का काम कर रहे हैं।
इन सभी गतिविधियों के दो प्रमुख कारण है पहला आने वाले माह में मुख्य सचिव का सेवानिवृत्व होना और नये मुख्य सचिव का पदभार ग्रहण करना। दूसरा कारण राजनैतिक रूप से परिवर्तन के प्रत्येक संकेत को पहले से समझ लेने और जान लेने की उत्सुकता मध्यप्रदेश में प्रशासन तंत्र यूही अपनी सीमाओं में रह कर कार्य करता है। कोई भी रचनात्मक नया कदम अधिकारियों द्वारा अपनी ओर से पिछले 18 वर्षो के दौरान योजना बनाकर प्रस्तुत किया गया हो और उसके अनुमोदित कराकर उसका क्रियान्वयन किया गया हो ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। राज्य की केबिनेट में अधिकारियों के इस रवैये के प्रति व्यापक असंतोष है। वर्तमान में मध्यप्रदेश सरकार तबादले के सीजन से गुजर रही है। तबदलों के अधिकारों का विकेन्द्रीयकरण भी स्पष्ट न होने के कारण कई विभागों में असमंजस की स्थिति बनी हुई हैं ।
पिछले 18 वर्षो से मध्यप्रदेश में यह माना जाता रहा कि सत्ता, प्रशासन, सभी कुछ होने के बावजूद अज्ञात शक्तियां तबादले, पदान्नति और विशिष्टता का निर्धारण करती हैं। इस निर्धारण प्रक्रिया में बकायदा नीलामी की व्यवस्था भी शामिल है। वर्तमान में शुरू हुआ तबादला सीजन राज्य में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन लायेगा इसके संकेत नहीं हैं। अपने-अपने विभागों को लेकर मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी इतने सशंकित है कि वे किसी भी प्रक्रिया को प्रारंभ करने से पीछे हट रहे हैं।
मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद से ही दबादले का यह मौसम सुख-समृद्धि लाने वाला काल माना जाता रहा है। इस काल में छोटे-बडे दलाल अपने बड़ी पहुंच के सहारे लाखों रूपये के वारे-न्यारे कर लेते हैं। इन्हीं दलालों के भरोसे ऊंचे पदों पर बैठे अधिकार सम्पन महापुरूष भी बहती गंगा में डुबकी लगा लेते हैं। एक वर्ष बाद मध्यप्रदेश में आम चुनाव का मौसम आने वाला है, इन स्थितियों में राज्य सरकार तबादले के कलंक को अपने सर पर ओढ़ना नहीं चाहती। वैसे भी अवैध मायनिंग और पोषण आहार घोटाला सहित नये व्यापम का घोटाला सरकार की छवि को धूमिल करने के लिये पर्याप्त रहा है। इन स्थितियों में तबादलों से परेशान अधिकारी, कर्मचारी अपनी नई पदस्थापना में सरकार के साथ खड़े रहेंगे इसमें संदेह है। इसके बावजूद नियमानुसार विभागों में अपनी सूचियों का निर्माण प्रारंभ कर दिया हैं। जिसमें आर्थिक आहुति देने के लिये वर्षो से परेशान कर्मचारी एवं अधिकारी सरकार के सक्षम दलालों के पास अपने आवेदन लेकर प्रस्तृत भी होने लगे है।
मंत्रालय में सशंकित अधिकारियों को समूह क्रमशः बड़ा होता जा रहा हैं। बाबुओं की टेबल पर आदेश के लिये लंबित फाइलों का अम्बार क्रमशः बड़ता जा रहा है। सब कुछ इस बात पर निर्भर है, क्या परिवर्तन चुनाव के पहले अभी होगा क्योंकि चुनाव के बाद तो परिवर्तन की संभावनाएं शतप्रतिशत है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2023 तक अब न कोई बडे़ निर्णय होंगे और नाही लिये गये निर्णय का सफल व्यवहारिक क्रियान्वयन देखने को मिलेगा।