क्या भारत - वैचारिक परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है .....
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल (एडवाइजर):- 75 वर्ष की स्वतंत्र यात्रा के दौरान भारतीय राजनीति में कुछ भी ऐसा नहीं पाया है, जिसे हम आने वाले हजार वर्षो की यात्रा की एक उपलब्धि मान सकें। राजनीति धीरे-धीरे अपने वैचारिक चिंतक के मूल सिद्धांतों से अलग हटकर भेड़ चाल में परिवर्तित हो गई है। यदि स्थापित राजनैतिक दलों को भी यह लगता है कि आम आदमी पार्टी ने आम मतदाता के मौलिक अधिकारों के चिंतन और उसके प्रति जागरूकता के बिन्दु को स्कूल और अस्पताल की सुविधाओं को जनतंत्रीयकरण से जोड़ दिया है तो भारत के भाग्य विधाता कहे जाने वाले बड़े राजनैतिक दल भी अपनी आंशिक प्रयासों को बड़ा से बड़ा दिखाकर उसी चिंतन पर अपने भविष्य की रणनीति को केन्द्रित कर लेते हैं।
आम आदमी पार्टी ने भारतीय राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिये व्यवहारिक कदम कड़ाई से उठाना शुरू किया। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बड़े राजनैतिक दल कदम उठाने से हिचक रहे हैं। क्योंकि इस भ्रष्टाचार के मूल में वर्षो से चली आ रही उनकी राजनैतिक बिसात पूरी तरह से निर्भर है। एक नये राजनैतिक दल आम आदमी पार्टी ने स्कूल, कालेज एवं अस्पतालों को अत्याधुनिक कर लगभग निशुक्ल घोषित करना शुरू कर दिया। अस्पताल और स्कूल आम व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकता है, जिस पर बड़े राजनैतिक दलों के शिक्षा एवं स्वास्थ्य से संबंधित दलालों ने कब्जा कर रखा है। जैसे ही पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहल इस दिशा में हुई, स्थापित राजैनतिक दलों को भी यह विषय प्रिय लगने लगें। अब सभी राजनैतिक दल न सिर्फ अस्पतालों बल्कि स्कूल की व्यवस्था भी सुधारने के लिये अपने चुनावी घोषणा पत्रों में स्थान रिक्त रखना चाह रहे हैं। दिल्ली और पंजाब सरकार के मॉडल को हर बड़ा राजनैतिक दल समझना चाहता है। उसे यह ज्ञात है कि यदि अगले चुनाव में उसने भी इन व्यवस्थाओं को सुधारने की घोषणा की तो उसका व्यापक प्रभाव आम मतदाता पर पड़ेगा।
आम आदमी पार्टी के उदय के बाद से भारतीय राजनीति में तो इतना परिवर्तन तो आया है कि आम मतदाता के विकास से जुड़े हुये प्रश्नों को घोषणा-पत्र में शामिल करने की मजबूरी राष्ट्रीय दलों पर भी लागु हो गई है। गरीबी हटाओं के सपने दिखाकर आजादी के बाद कई दशकों तक राज्य करने वाली कांग्रेस या नोट बंदी और उपभोक्तावाद से जुड़ी हुई घोषणाएं करके पिछले आठ वर्ष से सत्ता में काबिज भाजपा भी यह अब समझ चुकी है कि बड़े सपने दिखाकर आम आदमी पार्टी द्वारा उठाये जा रहे सामान्य वर्ग के मुद्दों से जनता को अलग नहीं रखा जा सकता।
परिणाम यह है कि आम मतदाता अब उस काल्पनिक और धूर्त राजनैतिक चालों को क्रमशः अपने बुनियादी समस्याओं से जोड़कर देखने लगा है, 75 वर्ष की यात्रा में भारत का मतदाता ठगा गया है। आज भी अपने दैनिक जीवन यापन के लिये वह राजनैतिक दलों पर भरोसा करने के अलावा और कुछ भी नहीं प्राप्त कर सका है। इस दशा में आम लोगों की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिये केवल भ्रष्टाचार को दोषी मानकर आम आदमी पार्टी ने राहत का जो मार्ग खोला है, वह सबसे पहले आम मतदाता को प्रभावित करेगा। यदि इस देश का 130 करोड़ मतदाता इन मुद्दों को प्राथमिक मानकर राजनैतिक चालबाजों, बिजनेसमेन और दलालों की वास्तविक भावनाओं को समझ गया तो हर घर में आंदोलन की एक लहर इस तरह उठेगी कि उसके सामने कोई भी झूठ और फरेब की राजनीति सुरक्षित नहीं रह जायेगी और संभवतः यही परिवर्तन भारत में दोनों स्थापित राजनैतिक दलों की चिंता का कारण बना हुआ है।