बडे पर्यावरण संकट की ओर बढ़ रहा भोपाल
(advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): भारत में किसान को सबसे बड़ा पर्यावरण प्रेमी और संरक्षण माना गया हैं। इसी देश में मुंबई के आरे के जंगलों को मेट्रो स्टेशन की स्थापना के लिये काटा जाना प्रस्तावित था। जिसका विरोध मुंबई के पर्यावरण प्रेमियों से लेकर प्रत्येक शिक्षित वर्ग ने केवल इसलिये किया कि, यह जंगल मुंबई को पर्याप्त मात्रा में प्राण वायू प्रदान करने वाला प्राकृति केन्द्र है। अधिकारीयों की लगातार चालाकियों के बावजूद आभी तक आरे का जंगल अभी तो सुरक्षित है। पंरतु अधिकारीयों एवं पूंजीपतियों का षड़यंत्र संभवतः मुंबई से प्राण वायू को छीन कर अपने व्यक्तिगत लाभ को बनाने में सफल रहेगा।
ऐसा ही कुछ 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे मध्यप्रदेश के किसान कहे जाने वाले मुख्यमंत्री के नाक के निचे राजधानी भोपाल में होने जा रहा है। मुख्यमंत्री निवास के करीब बनी हुई प्रोफेसर कॉलोनी को समाप्त करके, इसके स्थान पर अधिकारीयों के लिये फ्लेट कलेक्टर और कमीश्नर कार्यालय बनाने की योजना है। स्मरण रहे कि प्रोफेसर कॉलोनी राजधानी के स्थापना के बाद मध्यप्रदेश के प्रभावशील राजनेताओं एवं मंत्रियों का निवास स्थान रही है। इस कॉलोनी में सैकड़ों वर्ष पुराने हजारों वे वृक्ष लगे है जो, नये और पुराने भोपाल को एक आदर्श वातावरण प्रदान करते है। इसके अतिरिक्त नगर की संरचना करने वाले नगर निगम के पूर्व अधिकारी स्व. आनंद एमएन बुच द्वारा रेतघाट पुल के पास से स्थानांतरित किये गये लोगों की एक बड़ी तादात भी इस कॉलोनी में रहती है। इस कॉलोनी से छोटे तालाब का नजारा स्पष्ट नजर आता है, यही कारण है कि हजारों पेड़ों को काटकर अधिकारी तालाब की ओर मुह करके बनने वाली बालकनियों में बैठकर अपने जीवन का आंदन लेना चाहते है।
किसान पर्यावरण को संरक्षण भी देता है पर, शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुये जिस तरह विकास की योजनाओं के नाम पर मध्यप्रदेश के विभिन्न वन क्षेत्रों से सैकड़ों वर्ष पुराने सागौन के जंगलों को साफ किया गया है। वह यह संदेह उत्पन्न करता है कि, प्रोफेसर कॉलोनी का संरक्षण कर पाना और उसे स्वार्थी निकम्में प्रशासन तंत्र की बुरी दृष्टि से बचा पाना शिवराज सिंह के लिये संभव नहीं है।
प्रोफेसर कॉलोनी को लेकर जिस तेजी के साथ राज्य के मुख्य सचिव सहित और गृह प्रशासन और गृह निर्माण मंडल ने कदम उठायें हैं और यह घोषित कर दिया है कि, पूरी कॉलोनी को उसमें पाये जाने वाले वृक्षों को समाप्त कर विकास की नई गाधा लिखी जायेगी, राजधानी की धड़कने बड़ा रहा है।
विपक्षी दल पर्यावरण संबंधी इस समस्या के प्रति हमेशा की तरह उदासीन है। व्यक्तिगत रूप से प्रदेश के या स्थानीय किसी नेता को पर्यावरण की सुरक्षा के लिये, इस नव संरचना का विरोध करने की फुर्सत नहीं हैं। संभवतः राजनेताओं की प्रवत्ति भी प्रशासनीक अधिकारीयों की भांति संकुचित हो गई है। जहां परियोजनाओं की उपादेयता को अब आर्थिक रूप से मिलने वाले लाभ से तौल कर देखा जाने लगा है। अभी तक कांग्रेस के किसी भी नेता ने प्रोफेसर कॉलोनी के संरक्षण के लिये न कोई बयान जारी किया है और नाही किसी तरह की कानूनी मदद की ओर पहल की है।
प्रोफेसर कॉलोनी के इस जंगल के कट जाने के बाद फिर राज्य और केन्द्र सरकार धरती में आ रहे पर्यावरण संकट को लेकर लंबे-लंबे बयान जारी करेगी पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया जायेगा।
इस कालोनी का अस्तित्व समाप्त होने का दूसरा विपरित प्रभाव राजधानी में प्रवेश करने वाले प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या अन्य राष्ट्राध्यक्षों की सुरक्षा पर भी पडेगा। शहर के हवाई अड्डे को राजभवन से जोड़ने वाली इस मात्र संवेदन सड़क इसी कॉलोनी से होकर गुजरती है। भविष्य में यदि, इन अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा में कॉलोनी का स्वरूप बदल जाने के कारण कोई आघात पहुंचा तो उसके लिये वर्तमान मुख्य सचिव उनके अधिकारीयों समित वर्तमान मुख्यमंत्री और उनके अन्य जिम्मेवार मंत्री ही जिम्मेवार होंगे।
शिवराज सिंह को चाहिये कि वे अपने अधिकारों का उपयोग करके प्रस्तावित निर्माण कार्यो को कहीं और स्थानांतरित करने के आदेश दें पर, इतनी हिम्मत कर पाने की उम्मीद राजधानी निवासी शिवराज सिंह से नहीं कर सकते। प्रोफेसर कॉलोनी बचेगी या कटेगी इसका राजधानी के पर्यावरण पर कितना व्यापक प्रभाव होगा, इसका अध्ययन करना कोई जरूरी नहीं समझता। परंतु आने वाले संकट के प्रति वर्तमान में सभी राजनेता और प्रशासनीक अधिकारी बेफिक्र हैं।