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भोपाल(एडवाइजर): शुक्रवार को अखबार की दो खबरों ने ध्यान खींचा! एक थी.. कर्नाटक में बच्चियों से यौन दुराचार करने वाले सबसे ताकतवर लिंगायत मठ के स्वामी शिवमूर्ति गिरफ्तार! दूसरी थी.. दुष्कर्मियों और आतंकियों के साथ कोई रियायत नहीं शिवराज।
ऐसे तो इन खबरों में कुछ खास बात नजर नहीं आयेगी। लेकिन सच में ये दोनों ही खबरें खास हैं।
कर्नाटक में लिंगायत मठ के स्वामी की गिरफ्तारी इसलिए खास है क्योंकि लिंगायत समुदाय राज्य का भाग्य विधाता है। इस समुदाय की आबादी राज्य की सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती है। राज्य में भाजपा की सरकार इसी समुदाय की मदद से बनी है। 75 पार कर चुके पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा की भाजपा में अहमियत इसका प्रमाण है।
ऐसे में अपने मठ में पढ़ने वाली बच्चियों से दुराचार करने वाले शिवमूर्ति की गिरफ्तारी अपने आप में एक बड़ी बात है। जबकि खुद येदुरप्पा उनका पक्ष ले रहे थे।
अब बात मध्यप्रदेश की! प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का एक बड़ा कीर्तिमान बना चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया है कि उनकी सरकार जेल में बंद बलात्कारियों को सजा में कोई रियायत नहीं देगी। आतंकी और देश के साथ दगा करने वाले अपराधी भी मध्यप्रदेश में किसी तरह की रियायत नहीं पाएंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा है आजीवन कारावास पाए ऐसे कैदी जो अपने अच्छे आचरण और व्यवहार की वजह से समय से पहले रिहा किए जाते हैं उनकी श्रेणियां बनाई जाएंगी। बलात्कारी, आतंकी, देश के प्रति अपराध करने वाले और सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान हत्या करने वाले अपराधियों को सजा में कोई छूट नही दी जाएगी। उन्हें आखिरी सांस तक जेल में ही रहना होगा।
उनके प्रति मध्यप्रदेश सरकार कोई नरमी नही बरतेगी। जघन्य हत्यारे और अवैध शराब बेचने वाले अपराधी भी सरकार से माफी नहीं पाएंगे।
यह भी पता चला है की मध्यप्रदेश सरकार इस संबंध में नई नीति बनाने जा रही है। इस नीति का मसौदा तैयार हो गया है। गृहमंत्रालय ने करीब एक दर्जन राज्यों की कैदी रिहाई नीतियों का अध्ययन करने के बाद यह मसौदा तैयार किया है। मुख्यमंत्री इस मसौदे को देख चुके हैं। उनकी अधिकारियों से चर्चा भी हो चुकी हैं।
वैसे तो इस खबर को भी आप सामान्य कह सकते हैं लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल शिवराज का यह बयान गुजरात की उस घटना के बाद आया है जिसको लेकर देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसकी गुजरात सरकार निशाने पर हैं। पूरी दुनियां में उसकी आलोचना हो रही है।
आपको याद होगा कि पिछली 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने सामूहिक बलात्कार और जघन्य सामूहिक हत्याओं के आरोप में आजीवन कारावास की सजा पाए 11 कैदियों को "अच्छे आचरण और चालचलन" की वजह से समय से पहले जेल से रिहा कर दिया था।
इन सभी पर आरोप था कि इन्होंने 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिल्किस बानो नाम की महिला और उसकी बूढ़ी मां के साथ सामूहिक बलात्कार किया था।उसकी तीन साल की बेटी और परिवार के सदस्यों सहित 14 लोगों को बेरहमी से मार डाला था।बलात्कार के समय बिल्किस पांच माह की गर्भवती थी।
यह अपराधी 2008 में जेल भेजे गए थे। हालांकि आधिकारिक तौर पर गुजरात सरकार की ओर से कोई बयान नहीं आया है लेकिन कहा यह गया कि सरकार के नियम के तहत ही इन सभी को छोड़ा गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का भी जिक्र आया था। फिलहाल गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ही चुनौती दी गई है।
मजे की बात यह है कि यह अपराधी उस दिन जेल से रिहा किए गए थे जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से महिलाओं के सम्मान की बात की थी। उनके भाषण के कुछ घंटे बाद ही ये अपराधी जेल से रिहा किए गए थे।जेल के बाहर इन सभी का फूल मालाएं पहनाकर और मिठाई बांट कर विजेता की तरह सम्मान किया गया था।
इस घटना पर पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई।दिल्ली में प्रदर्शन हुए।लोग इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए। दुनियां भर में इस रिहाई की निंदा हुई।
लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि भाजपा का कोई नेता इस मुद्दे पर एक शब्द नही बोला। आज तक सभी ने मौन साध रखा है।
पर स्वभाव से नरम और कोमल मन वाले शिवराज सिंह चौहान ने बिना कुछ कहे एक ऐसी लाइन खींच दी है जिसने वर्तमान  भाजपा नेतृत्व का कद छोटा कर दिया है।
उनके इस फैसले के कई अर्थ निकाले जाएंगे। कोई इसे उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड से निकाले जाने से जोड़ेगा तो कोई इसे अपना कद बढ़ाने की कोशिश कहेगा। हो सकता है कि शिवराज के मन भी ऐसा ही कुछ हो। क्योंकि वे राजनेता हैं और राजनीति में कुछ भी संभव है।11 बलात्कारियों की रिहाई भी राजनीति की ही एक चाल है।
लेकिन शिवराज महिलाओं के मुद्दे पर चालबाज नही हो सकते।शायद यह बात कम लोग ही जानते होंगे कि चुनावी राजनीति में शिवराज सिंह चौहान नरेंद्र मोदी से सीनियर हैं।शिवराज सिंह 1992 में, अटल बिहारी बाजपेई द्वारा छोड़ी गई, विदिशा लोकसभा सीट पर उपचुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे। सांसद बनने के बाद जो सबसे उल्लेखनीय काम शिवराज ने किया था,वह था गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह कराना। यह काम अब भी जारी है। अब यह काम सरकार कराती है। बच्चियों और महिलाओं को लेकर उन्होंने जो योजनाएं बनाई, उनका अनुसरण देश के अन्य राज्यों ने भी किया है। इसी क्रम में शिवराज ने खुद को मामा की उपाधि दी। आज भी पूरे राज्य में वे "शिवराज मामा" के नाम से ही जाने जाते हैं। कई अनाथ बच्चियों को शिवराज और उनकी पत्नी साधना ने पाला हैं। इस विषय पर वे शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं।
कुछ भी हो पर इतना तय है कि उनका यह फैसला चुनाव की देहलीज पर खड़ी गुजरात सरकार और देश के प्रधानमंत्री को पसंद नही आयेगा। क्योंकि शिवराज ने जो कहा है, अगर उस पर अमल हो गया, तो देश के इतिहास में उनका नाम दर्ज हो जायेगा।साथ ही वे इस बात के लिए भी जाने जायेंगे कि जब भाजपा के दिग्गज नेता एक व्यक्ति की चरण वंदना कर रहे थे तब उन्होंने बड़े ही सलीके से एक बड़ी लाइन खींच दी थी।
यह भी हो सकता है कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने की अटकलें सच साबित हो जाएं। कुछ नई समस्याएं उन्हें घेर लें!लेकिन इस एक फैसले से उन्होंने खुद को सब से अलग कर लिया है। राम के भक्त उन्हें "लंका में विभीषण" की संज्ञा भी दे सकते हैं।यह भी संभव है कि उनकी सरकार से जुड़े कुछ घोटाले भी सामने आ जाएं।कुछ भी हो फिलहाल शिवराज ने अपने एक फैसले से नरेंद्र मोदी की लाइन छोटी कर दी है। शिवराज के इस साहस को सलाम! 

अरुण दीक्षित के लेख से साभार