दो पीढ़ी बाद की राजनीति करने चली है-कांग्रेस
सुधीर पाण्डे
(advisornews.in)
भोपाल(एडवाइजर): कतरा-कतरा होकर राष्ट्रीय स्तर पर बिखरती हुई कांग्रेस, बिना नेतृत्व के देश की राजनीति में बहुत तेजी से अस्तित्वहीन होने की तैयारी कर रही है। गुलाब नबी आजाद के पलायन के बाद एक लाइन लगी है, जिनके भरोसे कभी कांग्रेस देश की शीर्षस्थ पार्टी कही जाती थी। कांग्रेस नें भी अब संभवतः मन बना लिया है कि वह संघ की तरह दो पीढ़ी वाद कांग्रेस के लिये समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम पर भरोसा करेगी। इसके लिऐ उसे वर्तमान में अस्तित्वहीन होना पडेगा जिसके लिये कांग्रेस तैयार है और मध्यप्रदेश के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बाल कांग्रेस की योजना को अधिक प्रभावी ढंग से क्रियांनवित करने की योजना की ओर कांग्रेस तेजी से बढ़ रही है।
कांग्रेस की अब तक की पीढियों ने जितना ऋण भारत की जनता से लेना था ले लिया। वर्तमान स्थिति में उसे चुका पाने के लिये कांग्रेस के पास न कोई योजना है और नाही कोई योजनाकार। बूढे हो चुके हाफते हुये कांग्रेसी नेता अब अपनी अगली पीढी के लिये कांग्रेस के नेतृत्व की तैयारी की कोशिश में इस हद तक जुड़ चुके है कि उन्हें यह आभास ही नहीं हैं कि जडों को कमजोर करके किसी भी वृक्ष को कभी पुष्पित नहीं किया जा सकता। बूढे नेताओं की एक जमात कांग्रेस के कथित युवा नेतृत्व द्वारा अचानक ही किनारे कर दी गई। नई पीढी जो विकल्प बन कर उभरी उसकी शिक्षा विदेशी पाठ्यक्रमों के माध्यम से भारत सहित विश्व के कई देशों में हुई थी परिणामतः गोबर से बनने वाले उपले या उनका उपयोग वे नहीं जानते थे, फिर भी वे नई पीढी के नेता करार दिये गये।
कांग्रेस की बूढी हो चुकी हाफती हुई पीढी शारीरिक और मानसीक रूप से कितनी सक्षम थी इसका अंदाज नई पीढी के कथित नेतृत्व को नही हो पाया। नेतृत्व शनिवार और रविवार के अवकाश पर अपनी राजनीति में ताला लगा देता है। यही प्रक्रिया कांग्रेस ने में भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रारंभ कर दी, परिणामतः देश में पहली बार नेतृव्त करने वाले रविवार की छुट्टी पर जाने लगे। राजनीति कार्पोरेट शैली में करने की कोशिश में राजनीति की परिभाषा ही बदल गई। वास्तव में राजनीति जनता के लिये किया जाने वाला वह उपक्रम है जिसमें धनतंत्र, राजतंत्र, प्रशासनिकतंत्र और समाज शास्त्र का सविलयन होता है। कांग्रेस में धनतंत्र को पोषित करने वाले उन धन पशुओं की ओर या उनके पक्ष मे बैठकर राजनीति जैसा कुछ करने लगे जो अपनी जरूरतों के लिये किसी का भी उपयोग करने से या किसी को खरीदने या बेचने में संकोच नही करते। व्यवसायियों का एक समूह राजनीति की परिभाषा को बदलकर पार्टी के नाम पर धन एकत्र करने के लिये इन कारोबारियों के साथ जा खड़ा हुआ।
परिणाम यह हुआ कि राजनीति में कूटनीति जैसे प्रभावशील अध्याय का अंत कांगे्रस में हो गया। समस्याओं को मेनेज करने के लिये मेनेजर नियुक्त किये जाने लगे और रविवार अवकाश के अतिरिक्त छुट्टियां बनाने के लिये विदेशों जमीन को अधिक उपयुक्त माना जाने लगा। विदेशी जमीनों में बैठकर छुट्टियों का आनंद के बिना किसी मर्यादा के लिया जा सकता था। इसलिए विदेशों की भूमि में आराम करने की परम्परा भारतीय राजनीति में कांग्रेस को समाप्ती की और ले गई।
स्थानीय भाषाओं में स्थानीय परम्परा या आम व्यक्ति की मनोदशा को आजादी के पूर्व भीड में समझने वाले कांग्रेसी नेताओं का क्रमशः अकाल पडता गया। देश में बदलने वाली परिस्थितियों का पूर्व अनुमान करना और विरोधी दलों की किसी भी राजनैतिक चाल से निपटने के लिये कांग्रेसी भूल चुका है। वस्तुतः कांग्रेस के गले में एक तख्ती लटकी रही कि उसने आजादी दिलाई थी, कांग्रेसी भूल गया आजादी उसने नहीं वास्तव में महात्मा गांधी के नेतृत्व में, देश की जनता ने लाठियां खा के अत्याचार सहन करके प्राप्त की थी। गांधी का नेतृत्व इस देश के लिये जरूरी था इसके मायने यह नहीं है कि कांग्रेस भी इस देश की बुनियादी जरूरत मान ली जाय।
बदलते समय के साथ राजनीति की परिभाषा में जिस धर्म आधारीत कूटनीति का जन्म हुआ उसका आभास प्राप्त करने वाली पीढी सीताराम केसरी, अर्जुन सिंह और प्रणव मुखर्जी जैसे लोगों के अवसान के बाद कांग्रेस कुछ उत्साही युवाओं का एक ऐसा समूह बन कर रह गई जिन्होंने कभी राजनीति में अंधेरे के दर्शन भी नहीं किये थे। यही चेहरे दावा करने लगे कि विरासत के रूप में राजा का बेटा ही राजा बनेगा उन्हें इस बात का अंदाज नहीं था कि लोकतंत्र की मार्यादा आम व्यक्ति से शुरू होकर आम व्यक्ति पर ही खत्म होती और आम व्यक्ति की भावनाओं तक पहुंचने के लिये तकनीकी के सहारे से ज्यादा उसके मनोभावों को समझ लेना और गोबर के उपले बनाने की तकनीकी में विशेषता प्राप्त कर लेना जरूरी है।
विदेशी इत्र लगाकर 20 सुरक्षा कर्मियों के बीच में अपनी लोकप्रियता की गुमान के साथ फोटो खिचवाने से नेतृत्व नहीं बनता, कांग्रेस अब हस्ताचल की और जा रही है। भाजपा ने 8 वर्ष पूर्व सत्ता प्राप्त करने के साथ एक कूटनीति का संकल्प लिया था और भारत को कांग्रेस मुक्त करने का अभियान छेडा था वास्तव में उस अभियान को कम से कम समय में पूरा करने में कांग्रेस और उसके नेताओं ने ही उसका योगदान दिया है।
आज कांग्रेस के नेता कई उद्योगपतियों के भरोसे कांग्रेस की वर्तमान शक्ति को नकार कर इंसानों के बाल स्वरूप में नई कांग्रेस की संरचना कर रहे है। आने वाले दिनों में कांग्रेस इसी तौर पर सामाजिक एवं पारिवारिक रूप से अपने विस्तार की नई सम्भावनांए तलशते हुये नव विवाहित कांग्रेस, प्रसूता कांग्रेस जैसे गंभीर विषयों पर सार्थक कदम उठायेगी। आने वाली पीढ़ी जन्म के कुछ घंटों बाद ही कांग्रेस के झंडे को उठाकर लोरी की जगह कांग्रेस की लोरी सुनेगी तभी दो पीढी बाद ही सही अकेले चलने का संकल्प ले चुके कांग्रेस के नेतृत्व को कार्यकर्ताओं की एक समर्पित सेना मिलेगी जो कांगेस से मुक्त हो चुके भारत में पुनः कांग्रेस को जन्म देगी।