सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): स्थानीय संस्थाओं के चुनाव खत्म होने के साथ ही मध्यप्रदेश में भाजपा ने विधानसभा चुनाव की तैयारी जोश-शोर से प्रारंभ कर दी है। पिछले चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखते हुए भाजपा का प्रदेश कार्यालय और उसकी सभी तकनीकी संस्थाएं इस बात का विश्लेषण कर रहीं है कि मतदाताओं के रूझान में क्रमशः परिवर्तन किस तरह का आ रहा है और पार्टी के प्रति मतदाताओं के रूझान या अपेक्षाओं की सही स्थिति क्या है। भाजपा ने आंतरिक तौर पर ताजी परिस्थितियों का मूल्यांकन करने की जो कोशिश प्रारंभ की है, उसमें अधिकतम कार्यकर्ताओं को जोड़ा जा रहा है। उनके द्वारा दी गई जानकारी को भविष्य के विश्लेषण और योजना निर्माण के लिये एक शक्ल दी जा रही है।
पिछले चुनाव में जमीनी स्तर तक भाजपा का कार्यकर्ता कुछ हद तक अव्यवस्थित रहा। इसके अलावा कई स्थनों में पार्टी में बड़े नेताओं की गुटबाजी भी सामने आयी। इसके विपरित परिणाम किसी न किसी रूप में भाजपा को भुगतने पड़े। पार्टी अब यह नहीं चाहती कि वर्ष 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव किसी भी तरह से उसके हाथ से निकले। भाजपा के प्रदेश नेताओं की अब हर संभव कोशिश यही है कि मध्यप्रदेश में दो तिहाई बहुमत लेकर वे लोकसभा चुनाव में पार्टी को मजबूत आधार दे सकें।
यह संकेत भी मिल रहे हैं कि पार्टी को संगठित रखने के लिये राष्ट्रीय स्वयं संघ के जमीनी नेटवर्क को पूरी तरह विश्वास में लिया जा सकता है। इसके साथ ही प्रदेश संगठन में संघ की ओर से नामजद संगठन महामंत्री पद की बहाली हो सकती हैं। ऐसा करने से समूची भाजपा में एक अनुशासन का माहोल बनेगा, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज से 18 साल पहले भाजपा संगठन ने श्री कप्तान सिंह सोलंकी की उपस्थिति में देखा और परिक्षण किया जा चुका है। जिसके परिणाम स्वरूप भी राज्य में उमा भारती ने भाजपा की सरकार बनाई थी। 
भाजपा के इन कदमों में इस बार विशेष रूप से सामान्य कार्यकर्ता को बडा प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। पार्टी के नेताओं के अनुसार पार्टी यदि स्थापित चेहरों के स्थान पर इस बार नये चेहरों को उम्मीदवार बना कर स्थान देती है तो इसमें आश्चर्यजनक परिणाम मिल सकते हैं। यह प्रयोग भाजपा स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में भंलिभांति कर चुकी है। आगामी विधानसभा चुनाव के लिये भाजपा विपक्ष के प्रति प्रारंभ से ही आक्रमक शैली का प्रयोग करने पर विचार कर रही है। वैसे भी कांग्रेस का छिन्न-भिन्न पडा हुआ संगठन मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाने में फिलहाल सक्षम नहीं है। इसके अलावा विपक्षी दल में पड़ी हुयी आपसी फूट भाजपा के लिए सूनहरे भविष्य का संकेत है। 
यह माना जा रहा है कि भाजपा के प्रदेश संगठन में व्यापक परिवर्तन होंगे और जिम्मेवारियों को वहन करने वाले नये चेहरों को बहुत ठोक बजाकर ही अवसर प्रदान किया जायेगा। मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा यदि संगठित होकर प्रयास करती है तो उससे छत्तीसगढ़ और राजस्थान की राजनीति में भी उसे मदद मिलेगी इस बात को  भाजपा भंलिभांति जानती है। पार्टी को यह भी उममीद है कि विधानसभा के पूर्व बड़ी तादात में कांग्रेस से भाजपा की ओर पलायन होना संभव है। जिसके लिये पार्टी को स्वयं को न सिर्फ तैयार करना होगा बल्कि आरएसएस की नीति सिद्धांतों को भी राजनैतिक तौर पर कुछ लचिला करना होगा। 
पार्टी नेताओं का मानना है कि स्थानीय संस्थाओं के चुनाव से उत्साहवर्धन तो हुआ है, पर इसे विधानसभा चुनाव के जीत की गारंटी नहीं माना जा कसता। 18 साल सत्ता मे रखने के बाद मतदाताओं में पैदा हुई भावनाओं से भविष्य की नोनिर्माण की नीति पर एक बार पुनः सफलतापूर्वक ले जाना भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती होगी, जिसके लिये दल को संयम, एकजुटता और एक विस्तारित योजना की जरूरत होगी।