मराठाओं के अस्तित्व पर-अब प्रश्न चिन्ह लगा
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी ने आज एक बयान देकर राष्ट्रीय राजनीति में पिछले 18 वर्षो से चल रही एक सुगबुगाहट को हवा दे दी। महामहिम ने महाराष्ट्र की प्रगति में गुजराती और राजस्थानी के निवासियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। दिये गये बयान से यह स्पष्ट होता है कि गुजराती और राजस्थानी व्यक्तियों को यदि महाराष्ट्र की सीमा से बाहर मान लिया जाए तो मराठी भाषी व्यक्तियों लोगों का अस्तित्व नहीं के बराबर है। इस बयान के जारी होने के बाद मराठाओं में बचा कुचा आत्मसम्मान और स्वाभिमान अचानक प्रबल हो उठा। महाराष्ट्र में मराठी भाषियों को भिखारी घोषित करने तक के आरोप इस बायन में छिपे होने का अंदेशा जारी किया जाने लगा।
वास्तव में महाराष्ट्र में शिव सेवा को समाप्त करने के बाद देवेन्द्र फडणवीस को उनकी औकात पे लाके खड़ा कर देना यह पहला संकेत था कि देश की राजनीति में वर्चस्व किसका होगा। पिछले दिनों की राजनीति यह स्पष्ट करती है कि एक बड़े राजनैतिक मुहीम की शुरूआत इसी तरह के छोटे बयानों के माध्यम से किये जाने की परम्परा बन चुकी है। इन छुपे बयानों में छुपे हुये तथ्य यदि भावनाओं में ज्यादा उबाल लाने लगे तो बयान देने वाला बयान अपने कदम वापस खींच कर क्षमा मांग लेता है। यदि प्रतिक्रिया बहुत गहरी न हो तो इस क्रम को दूसरी-तीसरे और बाद में निरन्तर नये-नये माध्यमों से हवा दी जाती है। फिर खड़ा होता है खरीदे गये मिडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार और माहौल बनाने का एक सिलसिला। भारत में इस प्रक्रिया को पिछले एक दशक से लगातार न सिर्फ देखा जा रहा है बल्कि इससे प्राप्त होने वाले परिणामों की भी प्रतिक्रियाएं अब सामने आने लगी है।
वास्तव में महाराष्ट्र से पैदा होने वाली मराठा राजनीति को पिछले एक दशक के दौरान दबाया नहीं जा सका है। मराठा राजनीति भारत के इतिहास में 1700 के बाद से संगठित और राष्ट्र के प्रति समर्पित रही है। इस राजनीति के तहत हिन्दू राष्ट्र की कल्पना को पहली बार आकार दिया गया था और अनेकों वीर गाधाएं मराठा संस्कृति में राष्ट्र के प्रति एक दूर दृष्टि की योजना को साथ लेकर चलने वाले योद्धाओं की रही है। वास्तव में मराठाओं के राष्ट्र प्रेम और उनके जीवन के सामने आदि कालीन भारत की स्वतंत्रता और एकजुटता के कई रहस्य छुपे हुये हैं। राष्ट्र के सम्मान के प्रति वीर शिवाजी इसी परम्परा के एक स्थापित प्रतिक है।
यह तक है राष्ट्र की राजनीति को चलाने के लिये इन मराठाओं में विभेद कर इनके मनोबल को तोड़ना बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं है कि आज ही कुछ उद्योगपतियों और व्यापारियों के माध्यम से मराठाओं को प्रलोभित करने की योजना चलाई जा रही हो। ऐसा सदियों से होता रहा पर मराठा अपने आत्मसम्मान और राष्ट्र प्रेम के सामने विरोधियों की इन छल-कपट से भरी हुई इन योजनाओं का लगातार तिरस्कार करते रहें।
अब मनोबल से सेंध लगी है, नितिन गडकरी कह रहे है कि इच्छा होती है कि राजनीति छोड़ दूं, क्योंकि राजनीति सेवा के लिये नहीं सत्ता प्राप्त करने के लिये की जा रही है। देवेन्द्र फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचते-पहुंचते अंत में बमुश्किल उप मुख्यमंत्री बन सके। मराठाओं की पहचान और स्वाभिमान मानी जाने वाली बाला साहेब ठाकरे की शिव सेना को खरीद फरोक्त करके या षडयंत्र करके, खंड-खंड करके तोड़ दिया गया है। मराठा संस्कृति, सूटबूट की राजनीति से इतनी विखंडित हो चुकी है कि यह माना जाने लगा है कि कुछ बिके हुये दलाल टाइप के मराठा, मराठाओं के इतिहास को कलंकित कर उसे कुछ धन कुबेरों के हाथ में बेचने में सफल हो चुके है।
आम मराठा क्या अपने आत्मसम्मान को चौराहे पर निलाम कर व्यापारियों और व्यवसायियों की गुलामी को स्वीकार करेगा। क्या राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का आज दिया हुआ वक्तव्य मराठा स्मिता को चोट पहुंचायेगा। क्या देश की संस्कृति को एकीकृत करने के लिए युगों से समर्पित मराठा कौम चंद दलालों के कारण हो रही टूटन और विखंडन को स्वयं को बचा पायेगी। ऐसा तो लगता नहीं है पर मराठाओं का इतिहास बार-बार विश्वास को टूटने ही नहीं देता। वास्तव में क्या भाजपा और संघ की राजीनति में अगला संघर्ष व्यवसायियों और मराठाओं के मध्य प्रारंभ होगा, जिसमें तिसरा भागीदार उत्तर भारत का कोई अन्य धार्मिक या सांस्कृतिक प्रदेश भी हो सकता है।