सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मतदान पेटियों मे बंद पड़े हुये स्थानीय संस्थाओं के चुनाव परिणाम राजनेताओं और राजनैतिक दलों के धड़कनों को बढ़ा रहे है। यह परिणाम उम्मीदवारों के जीत और हार का फैसला तो करेंगे ही मध्यप्रदेश की राजनीति में विधानसभा चुनाव में वर्चस्व की दावेदारी का भी अंदाजा लगाने में मददगार सिद्ध होंगे। ये चुनाव परिणाम पार्टियों के अंदर बड़े नेताओं की राजनैतिक खेमेबाजी और शीर्ष पुरूषों की मध्यप्रदेश में नेतृत्व की दावेदारी पर भी मोहर लगायेंगे।
स्थानीय संस्थाओं के चुनाव मध्यप्रदेश में कभी इतनी बैचेनी में नहीं रहे, कि राज्य के राजनैतिक परिदृष्य में उनके प्रभाव की परिकल्पना इतने बडे़ पैमाने पर की जाय। इस बार के निर्वाचनों में मध्यप्रदेश जैसा राज्य भविष्य की कई राजनैतिक संभावनाओं और परिवर्तनों का आधार स्थानीय संस्थाओं के चुनाव परिणामों का देख रहा है।
राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृष्य में सभी राजनैतिक दलों में जो वैचारिक और आर्थिक परिवर्तन देखने को मिल रहे है अब मध्यप्रदेश भी उससे अछूता नहीं है। इस वर्ष हुए बुनियादी संस्थाओं के निर्वाचित के बाद राज्य में भी राष्ट्रीय राजनीति की भांति नई पद्धति की राजनीति का प्रवेश होना तय है। खरीद-फरोद और लालच में निष्ठा परिवर्तन की प्रवृति का जैसे मध्यप्रदेश के राजनैतिज्ञ इंतजार कर रहे हैं। इसका सफल प्रयोग 15 महीने की कांग्रेस के पतन के रूप में देखा जा चुका है जिन 28 विधायकों ने सिंधिया के साथ कांग्रेस को छोडा था वे आर्थिक रूप से कही अधिक सम्पन्न हुये हैं और उनका राजनैतिक प्रभाव भी राज्य में कांग्रेस और भाजपा के अन्य विधायकों से ज्यादा अधिक है। 
ऐसी संभावना बताई जाती थी कि 28 विधायकों का यह समूह भाजपा में उनके समर्पित कार्यकर्ताओं के मध्य अपना स्थान नहीं बना पायेगा। पर इस धारणा ने गलत साबित होकर यह प्रमाण दे दिया है कि राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए अपने व्यक्तिगत सम्मान को खोना भी पडे या उसे नये स्परूप में परिवर्तत करना पडे तो भी उससे दुरेज नहीं करना चाहिए और संभवतः यही असली नेता की वर्तमान पहचान बन चुकी हैं ।
चुनाव परिणामों के इंतजार का धड़कन बढ़ाने वाला यह काल खण्ड मध्यप्रदेश की भविष्य की राजनीति को भी अंकुरित करेगा। अभी तक राज्य में अपने राजनैतिक अस्तित्व के संरक्षण के लिए दो ही खेमें थे जो परस्पर विरोधी नजर आते थे। पर अब उन नये खमों ने जन्म लिया है जिनका संक्षिप्त इतिहास आम मतदाता को उनकी और आकर्षित कर रहा है। यह तय है कि इस चुनाव में भाजपा का विजयी होना एक स्वाभाविक घटना होगी कम सीटे जीत पाना संगठन समीक्षा का विषय होगा और हार जाना उसके राजनैतिक अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगायेगा। दूसरी और कांग्रेस अपने नेतृत्व के संकट से और परिकल्पना, योजना के अभाव में जमीनी राजनीति से हटकर जीत की परिकल्पना करने वाले दल के रूप में अपनी स्वयं समीक्षा करेगी।