दो दलीय प्रणाली से - अलग हटता हुआ म.प्र.
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश के राजनैतिक मैदान में इस बार छोटे राजनैतिक दलों ने अब तक चली आ रही दो दलीय प्रणाली में खलबली पैदा कर दी है। पहली बार कई क्षेत्रों में यह महसूस हुआ है कि आम मतदाता छोटे दलों ने भी अपनी रूची का प्रदर्शन कर रहा है। दूसरे अर्थो में कांग्रेस और भाजपा के मध्य चलने वाली नूरा कुश्ती पर भविष्य में विराम लगने के संकेत मिल रहे हैं। स्थानीय संस्थाओं के चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस भाजपा के मध्य बयानों के युद्ध से अलग हट कर मध्यप्रदेश का आम मतदाता अब अपनी समस्या का हल छोटे राजनैतिक दलों या निर्दलीय प्रत्याशियों के मध्य खोजने के कोशिश करेगा। अब तक रिकाड रहा है कि भाजपा और कांग्रेस ने चुनावी मैदान में एक दूसरे का विरोध भले ही किया हो, पर किसी भी दल के सत्ता में आने के बाद विपक्षी दल द्वारा सरकार पर जनहित के मुद्दो को लेकर कभी कोई बडा आंदोलन या प्रहार नहीं किया जाता।
आपसी समझ के सहारे चलने वाली राजनीति को जन उपयोगी बनाने की बजाय दोनों ही दल अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए एक माध्यम के रूप में उपयोग करते है। परिणाम यह है कि जन समस्याएं एक दल की सरकार में जन्म लेती है और विपक्ष के सत्ता के आने के बाद भी उनकी विकरातला कम नहीं होती है।
विभिन्न प्रसार माध्यमों के जरिये बार-बार यह दिखाया जाता है कि जन आकांशा की पूर्ति के लिए विपक्ष सत्ता पक्ष से वाक युद्ध कर रहा है। परंतु मतदाता यह समझ चुका है कि टेबल पर मुक्के पटक-पटक कर चिखने वाले राजनैताओं की डोर स्वयं की स्वार्थ सिद्धी पर अटकी होती है। परिणामतः मतदाता हर निर्वाचन के बाद पांच साल तक स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है।
परिवर्तन के इस दौर में छोटे दलों की उत्पत्ती ने और दिल्ली, पंजाब और तिलंगाना जैसे राज्यों में उनके जन उपयोगी कार्यो की लम्बी लिस्ट देखकर मध्चप्रदेश में भी मतदाताओं का रूझान परिवर्तित हो रहा है। मतदाता चाहता है कि उसके द्वारा चुना गया जन प्रतिनिधि उसकी पहुंच में हो और सत्ता का आचरण समस्याओं के दिर्घकालीक निवारण की और योजनाआ के रूप में परिणाम देता हुआ दिखाई पडे़। यही कारण है कि स्थानीय चुनाव में इस बार कई क्षेत्रों में मतदाता अपनी मजबूत राय के साथ उन सभाओं में भी जा रहा है जो छोटे दलों द्वारा आयोजित की गई हैं। यदि यह संकेत सार्थक हुआ तो आने वाले दिनों में बंद कमरों से चलने वाली राजनीति गांव, कस्बे और शहर की गलियों तक प्रभावशाली नजर आयेगी। उन स्थितियों में इस दो दलीय राजनैतिक प्रणाली का पूरी तरह अंत हो जायेगा। जिसकी संभावनाएं वर्तमान निर्वाचन के साथ आंशिक रूप से नजर आने लगी है।