सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): महाराष्ट्र में राजनैतिक घटना क्रम में देश की राजनीति और उसकी सोच को पूरी तरह बदल दिया है। किस दल का, किस गुट का सदस्य वर्तमान में किसके साथ है और राष्ट्र की सेवा के नाम पर अपने निजी स्वार्थो को पालने के लिए या किसी दूरगामी राष्ट्रीय राजनीति के पथ निर्माण के लिए वर्तमान में किसके साथ खड़ा है यह समझ पाना असंभव है। हिन्दुत्व के नाम पर जिस तरह हिन्दुत्व का बाजारीकरण किया जा रहा है, उसका सबसे बड़ा उदाहरण महाराष्ट्र की राजनीति है। पिछले दिनों हुए घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया कि आम हिन्दू समाज की भावनाओं से खेलने वाले चंद नेता हिन्दुत्व को अपने उदर पोषण का माध्यम सफलतापूर्वक बना चुके है। वास्तव में हिन्दुत्व अब चौराहे पर खड़ा हुआ वह शब्द है जिसे फूटबाल की तरह कभी भी कोई भी अनपढ़ नेता एक भगवा वस्त्र पहन कर लात मार सकता है और उसे सच्चा हिन्दू करार दे सकता है।
हिन्दुत्व के नाम पर अपने स्वयं के बाजारीकरण को देखकर भी देश का आम हिन्दु जनमानस शांत है। महाराष्ट्र की घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि राजनीति में ना कोई निष्ठा होती है और नाही कोई आदर्श। किराये का हवाई जहाज, पांच सितारा होटलों की छाव और भारी पुलिस बल की उपस्थिति का संरक्षण चंद पैसे या पदों की लालच में किसी के भी सिद्धांतों को तोड़ने के लिये प्रयाप्त है। ऐसा नहीं है कि विघंडन की यह प्रक्रिया पहली बार हुई है, केवल शिवसेना में ही अब तक कई बार विभाजन हो चुका है। फिर भी स्व. बाला साहेब ठाकरे के प्रति कठित सम्मान और उनके आदर्शो के प्रति जनता की बीच निष्ठा व्यक्त करने में कोई कमी नहीं आई है। 
महाराष्ट्र के इस राजनैतिक नाटक में यदि वास्तव में किसी को कुछ हासिल हुआ है तो वह भाजपा है। भाजपा ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी राजनैतिक जमीन तैयार कर ली है। परंतु इसके साथ-साथ भाजपा में ही मराठा वर्ग विरूद्ध अन्य एक संघर्ष भी आंतरिक रूप से जन्म ले चुका है। राजनैतिक विचारक इस खेल में देवेन्द्र फडणवीस की पराजय के रूप में नितिन गडकरी के आत्म सम्मान में लगी उस ठेस को देख रहें है जो भविष्य की राजनीति को प्रभावित करने वाली थी। पूरा राजनैतिक घटना क्रम महाराष्ट्र की जमीन पर जिस फिल्म अंदाज से हुआ है उसमें राजनीति की गरिमा और जनसेवक की छवि दोनों ही धूमिल हुई है। शिवसेना से टूटे हुए घडे को पद मिल जायेंगे, मलाईदार विभागों की भेट मिल जायेगी। पर विकास जो धारा इन दिनों में टूट गई या आम व्यक्ति के मन से जो जनप्रतिनिधि की निष्ठा का कोहरा छट गया उसका क्या होगा यह कोई नही जानता।
वास्तव में राजनीति के जानकार इस समूचे घटनाक्रम में भाजपा की अंदरूनी राजनीति के भविष्य की पटकथा को देख रहे है। इस पूरी व्यूह रचना कई ऐसी कमजोरियां छूट गई जिन्होंने अति गोपनीय रखे जाने वाले इस षड़यंत्र को भी सामान्य व्यक्ति की चर्चा का केन्द्र बना दिया। यदि शिवसेना छोड़ कर गये लोग सत्ता पर काबिज हो सकते है, तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपने अपनी पार्टी के मूल स्वरूप को किसी भी स्तर पर भंग नहीं होने देगी और एक नया युद्ध कानून के दायरे में अलग-अलग न्यायालयों प्रारंभ होगा। जिससे जन कल्याण का दावा करने वाले जन प्रतिनिधि संलग्न होकर भी पूरी तरह अलग रहेंगे। राजनीति की इस नई बिसात में आने वाले ढाई साल महाराष्ट्र की जनता का हित भले ही न कर सकें, उनकी समस्याओं का समाधान न निकाल सके। पर राष्ट्रीय राजनीति में एक नये महायुद्ध की शुरूआत का आगाज हो चुका है, जिसकी अगली पठकथा संघ मुख्यालय नागपुर में या उत्तर प्रदेश के मैदान में लिखी जायेगी। कुछ भी हो परिणाम 2024 के बाद ही देखने को मिलेगा।