भाजपा में चुनाव पूर्व -नेतृत्व को लेकर नई बहस प्रारंभ
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को सामने रखते हुए राजनैतिक रूप से कोई बड़ा परिवर्तन करने का संकेत दे रही है। पार्टी ने विगत् 18 सालों तक मध्यप्रदेश में केवल शिवराज सिंह सरकार और उनके कार्यो के माध्यम से होने वाले हानि या लाभ को देखा और परखा है। पार्टी सूत्र बताते है कि यह संभावना तो कम है कि विधानसभा का चुनाव के जीत लेने के उपरांत पुनः पिछडे़ वर्ग के किसी सदस्य को प्रदेश में नेतृत्व सौपा जाए और यह संभावना तो असंभव की ओर जा चुकी है कि शिवराज सिंह चौहान पांचवीं बार राज्य के नेतृत्व को संभाल सकते है।
भाजपा में एक नई सोच प्रांरभ हो रही है, मध्यप्रदेश जैसे सामान्य राज्य में जहां दो दलीय राजनीति का कोई विकल्प ना है और नाही भविष्य में होने की संभावना है। पार्टी अनु. जाति या जनजाति वर्ग का नेतृत्व पैदा करके इसका लाभ विधानसभा बाद लोकसभा में भी ले सकती है, क्या। इस विचार के चलते ही भाजपा में सामान्य वर्ग के लोगों के मध्य राजनीति के शीर्ष पर बैठने की उत्सुकता अधिक तेजी से जाग गई है। यह इतिहास है कि मध्यप्रदेश में कभी मुख्यमंत्री अनु. जाति जनजाति के मध्य से नहीं बनाया गया। राज्य में इन वर्गो की मतदाता संख्या जरूर भाजपा को सरकार बनाने में लगातार मदद करती रही पर अधिकार के नाम पर इन वर्गो को राजनीति का नेतृत्व करने का कभी कोई अवसर नहीं मिला।
हमेशा से आदिवासी बाहुल्य राज्य होने के बावजूद मध्यप्रदेश में इन वर्गो से कोई प्रभावशील नेता भी पैदा नहीं हुआ, जो राज्य में नेतृत्व के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर सके। वर्ष 1980 में शिवभान सिंह सौलंकी राजनीति की इसी लड़ाई में विन्ध्य के ठाकुर नेता अर्जुन सिंह के हाथों अंतिम क्षणों में पराजीत हो गये थे। इसके बाद से कांग्रेस में इन वर्गो से उपमुख्यमंत्री तो बने पर उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया।
बदलती हुई परिस्थितियों में जब मध्यप्रदेश की विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा के चुनाव की तैयारी शुरू हो जायेगी भाजपा एक प्रयोग कर सकती है। 18 वर्षो तक पिछड़े वर्ग को नेतृत्व देने के बाद आगामी विधानसभा चुनाव के पहले अनु. जाति या जनजाति के किसी प्रभावशील नेता को यह अवसर दिया जा सकता है कि आगामी चुनाव इन वर्गो के नेतृत्व में ही लड़ा जाए। वर्तमान में अलग-अलग जातियों को प्रभावशील नेताओं को इस बात के लिए बाध्य किया जा सकता हैं कि राज्य में वे भाजपा की जीत को सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से नये मुख्यमंत्री के नेतृत्व में जोर लगाए। यदि भाजपा के सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार ऐसा होता है तो अनु जाति जनताति और पिछडा वर्ग तीनों संयुक्त रूप से भाजपा की भविष्य की राजनीति को विजयी बनाकर एक नया आधार राष्ट्रीय स्तर पर तैयार कर सकते है। जिसका सीधा लाभ भाजपा को आने वाले लोकसभा चुनाव में निश्चित मिलेगा और भाजपा यह दावा भी करेगी कि आजादी के बाद पहली उसने अनु जाति या जनजाति वर्ग को नेतृत्व सौपने का साहस किया और यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा।