सुधीर पाण्डे

भोपाल(एडवाइजर): कार्यकर्ताओं को न समझ पाने वाले राष्ट्रीय दल अब स्थानीय संस्थाओं के चुनाव के टिकिट बाटने के बाद कार्यकर्ताओं के असंतोष का सामना कर रहे है। मध्यप्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता स्वयं को टिकिट न मिलने की दशा में विद्रोह पर आमादा है। कई क्षेत्रों में तो जिस प्रत्याशी को टिकिट मिला है मतदान के पहले ही उसे निपटाने के पूरे इंतजाम कर लिये गये है। भोपाल के एसी कमरे में बैठ कर राज्य की राजनीति करने वाले भाजपा और कांग्रेस के कठित प्रदेश स्तरीय नेताओं में शायद कभी नहीं सोचा था कि दूर से संगठित नजर आ रही कार्यकर्ताओं की फौज में उनके नेतृत्व के प्रति इतना अंसतोष होगा। 
स्थानीय संस्थाओं चुनाव के टिकिट वितरण की प्रक्रिया ने दोनों ही राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व को गांव-गांव, चौराहे-चौराहे बेनकाब कर दिया है। यह तय हो गया है दोनों ही राष्ट्रीय दल राज्य स्तर पर अपने संगठन के लाख दावों के बावजूद शक्ति के नाम पर पूरी तरह नंगे खडे़ हैं। कार्यकर्ता के आक्रोशित होने का यह मतलब होता है कि संगठन चला रहा नेतृत्व या प्रदेश स्तर पर बैठे हुए नेताओं की पकड़ वास्तविक नहीं काल्पनिक है। वे राजधानी में बैठ कर अपने वैभव का तो प्रदर्शन तो कर सकते हैं, भाड़े के लोगों को बुलाकर प्रदेश में कहीं भी भीड़ जमा कर सकते है। पर वे ये दावा नहीं कर सकते कि राज्य स्तर पर प्रत्येक जिलें में उनके पास ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता है जो उनके नेतृत्व को स्वीकार करते है। 
इसके बावजूद मतदान के दौरान दोनों राष्ट्रीय दलों में से कोई एक इन्हीं कार्यकर्ता के नाम पर अपनी सरकार बना लेता है। वास्तव में मूल्यांकन करें तो मध्यप्रदेश में मतदाता के सामने सांपनाथ या नागनाथ के विकल्पों के अलावा तीसरा कोई माध्यम मौजूद नहीं है जो राज्य स्तर पर प्रभावी हो। राज्य में अभी ताक कोई ऐसी विचार धारा स्थायी रूप में पैदा नहीं हुई, जो मतदाताओं के विवेक को अपनी और आकर्षित कर सकें। यही कारण है कि सरकारें या भाजपा की बनती है या कांग्रेस की और बिना कुछ किये उसके श्रेय लेकर राजधानी के एसी कमरे में बैठा हुआ आधारहीन कोई नेता उस जीत का श्रेय अपने सर बांध लेता है। 
मध्यप्रदेश की इस विषमता से बाहर निकलने के लिए वर्तमान स्थायी संस्थाओं के चुनाव के दौरान एक विकल्प पैदा हो रहा है। जो यह संकेत दे रहा है कि आम व्यक्ति दो राष्ट्रीय दलों के अलावा तीसरा विकल्प स्वयं पैदा कर लेगा। वर्तमान में चल रही गतिविधियों में कांग्रेस और भाजपा से असंतुष्ट कार्यकर्ता आम आमदी पार्टी की ओर अपना रूझान प्रदर्शित कर रहे हैं। इस कार्य के लिए आम आदमी पार्टी प्रसाय कर ही है ऐसा नहीं है, उसके पास प्रदेश स्तर को कोई सक्षम नेतृत्व नहीं है। राजनैतिक रूप से अनुभवहीन चंद लोगों लोगों का समूह राज्य में आम आदमी पार्टी का नेतृत्व कहा जाता है। मध्यप्रदेश जैसे विशाल और विविधता भरे राज्य में आम आदमी पार्टी को दिल्ली या पंजाब जैसा वातावरण नहीं मिलेगा। बिना राजनीति सोच के आम आदमी पार्टी केवल सुधारवादी और आश्वासनों के भरोसे राज्य में पैर नहीं जमा पायेगी।
मध्यप्रदेश को राजनीति और भूगोल की भाषा में मिनी भारत कहा जाता है। जहां हर 100 किमी पर भाषा, संस्कृति, रहन-सहन और खाना-पीना बदल जाता है। राज्य के प्रत्येक क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर अलग है और उनका इतिहास भी अलग है। इन स्थितियों में गैर राजनैतिक व्यक्तियों के भरोसे आम आदमी पार्टी किस तरह अपनी राजनैतिक पहचान बनायेगी यह प्रश्न हमेशा जीवित रहेगा। इसके बावजूद वर्तमान चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और छोटे स्थानीय नेताओं का रूझान आम आमदी पार्टी की और स्वयं जा रहा है। इन स्थितियों में आम आदमी पार्टी किस तरह के राजनैतिक निर्णय और आश्वासन पैदा कर पाती है यह देखना होगा।