सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): कांग्रेस और भाजपा के दो टीकिटार्थी समूहों से आज हुई बातचीत यह स्पष्ट करती है कि पार्षद स्तर तक के टिकिटों में दोनों दलों में विरोधाभास एक ही तरह का है। सामान्य कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहा है कि उसे टिकिट देने का अधिकार किसके पास है। इस बिच छुटभय्ये नेता लगातार उस सम्भवित प्रत्याशी को बड़े नेताओं से अपनी काल्पनिक निकटता के किस्से सुनाकर न सिर्फ अपनी राजनीति चमका रहे हैं बल्कि उसका लगातार दोहन भी कर रहे है। ग्वालियर क्षेत्र से आये हुए दो अलग-अलग प्रत्याशियों और उनके समर्थकों में यह सवाल पूछा है कि क्या सच में स्थानीय संस्थाओं के चुनाव कार्यकर्ताओं को सक्रिय और प्रभावशाली बनाने के लिए है या भविष्य सुधारने के नाम पर उनके दोहन के लिये।
भारतीय जनता पार्टी का टिकिट चाहने वाले और ग्वालियर नगर निगम में और पार्षद का टिकिट की लालसा रखने वाले एक संभवित प्रत्याशी ने अपने दस से अधिक समर्थकों के साथ यह स्पष्ट किया कि पता ही नहीं चल रहा कि टिकिट वितरण में नरेन्द्र सिंह तोमर की चलेगी या ज्योतिरादित्य सिंधिया की। इस प्रत्याशी के अनुसार वो केवल एक वार्ड में पार्षद का टिकिट चाहता है। उसके और उसके परिवार की वर्षो से भाजपा से निकटता को ही वो अपनी वरिष्ठता का प्रमाण मानता है। परंतु उसी के क्षेत्र में एक अन्य व्यक्ति सिंधिया के निकटता के कारण एक प्रभावशील प्रतिद्वन्दी बन कर अचानक उठ खड़ा हुआ है। जिसके परिवार का पिढिंयो से कांग्रेस से नाता रहा है और पिछले और पिछले दिनों हुए घटना क्रम में वो अचानक भाजपाई हो गया था। इस व्यक्ति के अनुसार ग्वालियर, चम्बल, भिण्ड क्षेत्र में कई प्रत्यशी इसी कुहा पोह में परेशान है और भाजपा के स्थापित नाम उन्हें लगातार फूटबाल की तरह उपयोग कर रहे है। इस प्रत्याशी के अनुसार केवल टिकिट की चाह में अपनी सारी क्षमताओं के होने के बावजूद वह निराश है और अब इस आपाधापी से अलग हटकर निर्दलीय रूप से चुनाव में नामांकन भरने की प्रक्रिया को गंभीरता से समझ रहा है।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र से आये हुए एक अन्य कांग्रेस के संभवित उम्मीदवार ने भी स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में बड़े नेताओं की भूमिका पर कई प्रश्न खड़े कर दिये। इस उम्मीदवार के अनुसार कांग्रेस अपने कार्यलय में मिलती नहीं और टिकिट देने वाला कौन है इस बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं है। हां भोपाल में भ्रमण के दौरान इस प्रत्याशी को कई ऐसे छुटभय्ये नेताओं से मिलने का सौभाग्य जरूर मिला, जिनके मोबाइल पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और वर्तमान में मध्यप्रदेश के कांग्रेस सर्वेसर्वा दिग्विजय सिंह के फोन नम्बर उपलब्ध थे। कांग्रेस का एक दस्ता सड़कों में घूम कर कांग्रेस के पक्ष में टिकिट दिलवाने का पक्का आश्वासन दे रहा है। इस प्रत्याशी के अनुसार इस पर भरोसा कर पाना असंभव है, पर कुछ मिनिटों में ही जब मोबाइल नम्बर पर बड़े नेताओं से छुटभय्ये नेता सम्पर्क कर लेते हैं तो इस बात पर अविश्वास कर लेना भी संभव नहीं है कि यह कुछ परिवर्तन ला सकते है ये परिवर्तन बडे नेताओं के सम्पर्क से ला सकते है।
राजधानी में इन दिनों दोनों बड़े राजनैतिक दलों की टिकिटें सामान्यतौर पर प्रभाव के दम पर बांटे जाने या परिवर्तित किये जाने की घटनाएं आम हो रही है। ऐसा महसूस होता है कि टिकिट वितरण का यह सिलसिला पार्टी कार्यालयों से बाहर निकलकर छुटभय्ये की आमदनी बढ़ाने और उन्हें आर्थिक रूप से अधिक मजबूत करने के लिए ज्यादा कारगर सिद्ध हो रहा है। वैसे दोनों ही दलों के कार्यकर्ता टिकिट न मिलने कि दशा में स्वयं को निर्दलीय घोषित करने के लिए मानसिक रूप से तैयार है।