सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): लोकतंत्र के सबसे निचले स्तर के निर्वाचन की प्रक्रिया मध्यप्रदेश में जिस तेजी के साथ आगे बढ़ती जा रही है, उससे राज्य का माहौल धीरे-धीरे चुनावी बनता जा रहा है। यह तय है कि स्थनीय संस्थाओं और पंचायत चुनाव के बाद वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक राज्य का माहौल इसी तरह चुनावी बना रहेगा। लोकतंत्र की बुनियादी सीढ़ी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखने के लिए मध्यप्रदेश में भाजपा ठोस कदम उठा रही है। राष्ट्रीय नेताओं से लेकर ग्रामीण स्तर तक के बड़े चेहरों को वर्ष 2030 तक चलने वाली इस मतदान प्रक्रिया से सीधा जोड़ दिया गया है। आज राज्य में भाजपा के राष्ट्रीय नेता मौजूद है तो बड़ी संख्या में प्रदेश संभाग एवं जिले स्तर के नेताओं ने भी अपनी सक्रीयता बना ली है।
भाजपा बूथ स्तर तक अपनी मजबूती के लिए उन सभी राजनैतिक हथकंडों का उपयोग कर रही है जो एक लम्बे समय तक राज्य में स्थायी राजनैतिक माहौल बनाये रख सके। संगठन और सत्ता के स्तर पर किये जा रहे इन नये और पुराने प्रयासों की विस्तार से समीक्षा और निगरानी राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा सर्वेक्षण संस्थाओं के माध्यम से व्यवसायी गुप्तचरों के माध्यम से और अन्य उपक्रम संसाधनों के माध्यम से सीधे की जा रही है। किसी भी स्तर पर होने वाली किसी भी गलती के लिए भाजपा का हाई कमान सीधे हस्तक्षेप कर रहा है। 
प्रदेश के इतिहास में इतनी संगठीत और प्रभावकारी योजना पर कभी काम नहीं हुआ। एक और तो पूरे देश में हिन्दुत्व के प्रति आम व्यक्ति का रूझान भाजपा को फायदा पहुंचा रहा है तो दूसरी और अयोध्या-काशी जैसे विषय प्रतिदिन जीवित होकर इस धारणा का बल दे रहे है कि आने वाले समय में स्थानीय समस्याओं के अलावा भावानात्मक झुकाव भाजपा के प्रति निरन्तर बना रह सके। इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा ने महसूस किया है। राज्य के राजनैतिक स्वरूप को जातिगत और धर्मगत आधार पर विभाजीत कर सोशल मिडिया के माध्यम से अपनी उपलब्धियों और विचारों को आम व्यक्ति के उपलब्ध या विचार बना देना भाजपा के लिये मुश्किल नहीं है। इस दौर में सबसे आश्र्चय जनक बात यह है कि जहां एक और विपक्षी दल के कार्यकर्ता का मनोबल गुटीय राजनैतिक के कारण पूरी तरह बिखरा हुआ है। वही भाजपा का सबसे छोटा कार्यकर्ता भी वातावरण में पैदा हो रहे प्रत्येक परिवर्तन को उत्साहित होकर देख रहा है। 
राजनैतिक सूत्रों के अनुसार भाजपा के भविष्य के अभियान में विपक्षी दलों के कुछ नेता भी निरन्तर सहयोगी हैं। ये वे ताकते हैं जो समय आने पर विपक्ष के बड़े कहे जाने वाले नेताओं को उनकी हैसियत दिखाकर पलायन करेंगे। निश्चित तौर पर भविष्य में होने वाली इस संभवीत घटना से भाजपा को अप्रत्याशित ताकत मिलेगी और चुनावी दंगल के दौरान एक नई शक्ति भी प्राप्त होगी। 
वैसे भी स्थानीय संस्थाओं और पंचायत के चुनाव में विपक्षी दल की कोई रूची नजर नहीं आती। एक हारे हुए दल के रूप में कम से कम कांग्रेस तो युद्ध शुरू होने के पहले ही उन कारणों की खोज करने में लग गई है जो इस तय हार के लिए जिम्मेवार बताये जा सके। इन स्थितियों में प्रथम चरण के स्थानीय चुनाव में भाजपा को कोई बड़ा प्रतिद्वंदी सामने नजर नहीं आता। बावजूद इसके भाजपा अपनी कमजोरियों को मजबूती में बदलने के लिए बौद्धिक चर्चाओं स्वयं सेवी संगठनों के समर्थन युवाओं एवं किसानों का साथ और अनु. जाति जनजाति के लोगों को विकास योजनाओं को अधिक सक्षम बनाने की दिशा में निरन्तर प्रयासरत है। यह कहना गलत नहीं होगा कि शिवराज सिंह चैहान के नेतत्व में भाजपा मध्यप्रदेश में अपने एक सुनिश्चित भविष्य की और पूरी योजना के साथ बड़ रही है।