कांग्रेस को जमीनी नेताओं की - जरूरत ही नहीं है।
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम यह तय हो गया कि कांग्रेस को उन नेताओं की जरूरत नहीं है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष जमीनी आधार को समझते हो, कांग्रेस वास्तव में एक एक्जिकेटिव पार्टी हो चुकी है। आश्चर्य तो यह है कि कांग्रेस के स्वरूप में बदलाव यह देखने के बाद भी नहीं आया कि उसके सामने खड़ी हुई भारतीय जनता पार्टी जमीन से जुड़े हुये मुद्दों को लेकर जन जागरण अभियान पर नेतृत्व राजनैतिक कर रही है। राज्यसभा सीटों के लिए कांग्रेस द्वारा घोषित 10 उम्मीदवारों में मजाल है कि आप कोई ऐसा नेता ढूंढ़ कर निकाल सकें जो गांधी परिवार का विश्वस्त न हो और विभिन्न राष्ट्रीय मसलों पर अपनी स्वतंत्र सोच रखता हो। जिस नेता ने अपने पूरे राजनैतिक जीवन काल मे साधारण मतदाता के ज्वलन्त मद्दों को लेकर कोई आन्दोलन किया हो या उसकी रूपरेखा बनाई हो। कांग्रेस द्वारा सभी उम्मीदवार 5 स्टार होटल कल्चर को दर्शाते है, ऐसी स्थिति में कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन की आप महज कल्पना कर सकते है।
मध्यप्रदेश में विवेक तन्खा से लेकर कांग्रेस के घोषित अंतिम दसवें उम्मीदवार तक निगाह दौड़ाइये तो आपको पता चलेगा कि इस देश में कांग्रेस की निगाह में विश्वास पात्र एक्जिकेटिव लोगों का कितना महत्व है। कांग्रेस जनता की राजनीति करने का दावा करती है, पर लंदन जाकर अपना साक्षात्कार देने वाले और भारत की समस्याओं पर बात करने वाले कांग्रेस के नेताओं की सोच कितनी ऊंची है। बंद वातानुकुलित कमरों मे बैठक कर अपने निजी स्टाफ के भरोसे देश की संस्कृति और समस्याओं को समझने का दावा करने वाले कांग्रेस के नेताओं की यह पीढ़ी स्वयं कांग्रेस को समाप्त करने के पर्याप्त है। कांग्रेस चाहती तो वर्तमान हालातों को सामने रखते हुए राज्यसभा के 10 में से 8 उम्मीदवार जमीन से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं या नेताओं के मध्य से चयन करती। पर हवा को अपना धरातल मानने वाले कांग्रेस के हाई कमान ने अपना आधार जमीन पर नहीं आसमान पर खोजा है।
राजनीति को जानने वाले मानते है कि कांग्रेस के पतन का यह अंतिम बिन्दु आ चुका है। मध्यप्रदेश में तो राज्यसभा घोषणा के साथ ही यह तय हो चुका था कि राज्य का नेतृत्व अपने एक मात्र साथी विवेक तन्खा के साथ खड़ा होगा। यह बात अलग है कि बीच-बीच में कई उन नामों की चर्चा भी हुई जिनका पूर्व कालिक नहीं संक्षिप्त ही जमीनी आधार रहा है। इन स्थितियों में अजय सिंह राहूल, अरूण यादव जैसे नेताओं का नाम सामने आना एक स्वभाविक राजनीति लगती है, इन नेतओं का एक बड़ा राजनैतिक आधार स्वयं के कारण है। यदि भविष्य में कांग्रेस को सरकार बनानी है तो राज्य नेतृत्व के लिए मजबूत विकल्पों के रूप में ये नाम लिये जा सकते है। राज्य मंे किसी को नहीं मालूम कि विवेक तन्खा का क्या योगदान उनके पिछले राज्यसभा कार्यकाल के दौरान राज्य की राजनीति में रहा है। इतना ही है 15 महीनों की सरकार ने जबलपुर में स्वयं को प्रभावशाली घोषित करने के लिए राज्य की पूरी केबिनेट उनके निवास स्थान पर एकत्र होती थी। तन्खा वास्तव में राज्य नेतृत्व मे वर्तमान कें क्रियाशील दोनों नेताओं की पहली जरूरत और पसंद है। यही कारण है कि राज्यसभा निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ होते ही सबसे पहला और अंतिम नाम जो सफल माना जा रहा था वह विवेक तन्खा का ही था। विवेक तन्खा कांग्रेस हाई कमान के परिवार के सदस्य माने जोते है और राज्य के दोनों प्रभावशील नेताओं के बराबर के सहयोगी और मार्गदर्शक भी है। अब भला इतनी बड़ी हस्ती के सामने अरूण यादव या अजय राहूल सिंह की कितनी औकाद ठहरती है कि वे इस नाम को हटाकर अपनी उपियोगिता को प्रमाणित कर सके। भविष्य में राज्य में कांग्रेस के डूबने का प्रथम चरण इस गतिविधि के साथ पूर्ण होता है।