संघ की नीतियों के सामने - निर्बल है कांग्रेस
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राष्ट्रीय राजनीति की स्थितियों में लगातार बदलाव आता जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर जहां एक और यह संकेत स्पष्ट मिल रहे है कि भाजपा वर्ष 2024 से 2029 तक लगातार देश में शासन करने की और बढ़ रही है। वही मध्यप्रदेश राज्य में भाजपा की स्थितियों की बुनियादी मजबूती मे सेंध लग रही है। यह बात जरूर है कि भाजपा के पास राज्य में यह पर्याप्त अवसर है कि प्लान-ए की असफलता या कमजोरी को देखने के बाद वह तत्काल प्लान-बी पर जा सकती है। यह संभावना भाजपा की प्रतिद्वंद्वी दल की पास अभी नजर नहीं आती। यदि राज्य में भापजा अपनी वर्तमान गतिविधियों और अपने नेताओं के व्यापाक आधार को ही बुनियाद बनाकर चुनाव की ओर बढती है तो उसे एक झटका भी लग सकता है।
राज्य स्तर पर सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर जाने के घटना क्रम ने अब कांग्रेस को भी सही समय पर खरीद-फरोख्त के लिए संसाधन जुटाने की प्रेरणा दे दी है। आने वाले चुनाव में कांग्रेस इस बात के लिए तैयार दिख सकती है कि बहुमत के लिए छोटी-मोटी आवश्यकताओं को वह बाजार से खरीदी कर पूरा कर सकें। कार्यक्रमों की दृष्टि से देखा जाए तो मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिति बहुत सक्षम और मजबूत है। कार्यकर्ताओं का मनोबल कांग्रेस की अपेक्षा तो ज्यादा है ही और बडे़ नेताओं का जमीन पर खडे़ हो जाना उसके लिए शुभ संकेत है।
दूसरी और राज्य में हेलीकॉप्टर और एसी गाड़ियों की सवारी कर रही कांग्रेस चुनाव के आर्थिक संसाधनों की चिंता से मुक्त है। सभी जानते है कि उनके प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ इतना व्यापक आधार रखते है कि वे राज्य का नहीं देश की चुनावी प्रक्रिया का संचालन केवल अपने दम पर कर सकते है। यह बात अलग है कि कार्यकर्ताओं से लेकर नेता तक सरकार बनने की दशा में पर्दे के पीछे और आगे बैठे हुए मुख्यमंत्री की प्रणाली से कितना सहमत है। असंतोष का प्रमुख कारण अखिल भारतीय कांग्रेस के स्तर पर कांग्रेस के केवल एक गुट को प्रमुखता देना भी है। कांग्रेस के लोगों का मानना है कि कभी-कभी यह संकेत भी मिलता है कि मध्यप्रदेश की तरह देश में भी केवल एक मात्र व्यक्ति कांग्रेस की डूबती हुई नांव को पार लगाने में सक्षम है। नेतृत्व भले ही यह माने पर मध्यप्रदेश का कांग्रेसी किसी ऐसे नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है जो भूतकाल में कांग्रेस की सरकार के बालात अपहरण का संदेहस्पद आरोपी रह चुका हो।
मध्यप्रदेश में नहीं देश मे भी अब राजनीति में राष्ट्रीय स्वयं संघ की आलोचना करके चुनाव नहीं जीते जा सकते, यह सर्वमान्य सिद्धांत हो चुका है। देश की राजनीति ने पिछले आठ सालों के दौरान जीत तेजी से करवट बदली है उसमें संघ पोषित भाजपा को अपने नेताओं का व्यक्तिगत अहंकार छोड़कर आगे बढ़ना जरूरी है। अपनी महत्वकांशा की पूर्ति के लिए राज्यों तक प्रभावित भाजपा के नेता राष्ट्रीय स्तर पर आजादी के 75 साल बाद बनी संघ की साख और स्वीकार्यता को दांव पर नहीं लगा सकेंगे। सुना तो यह भी जा रहा है कि जिन राज्यों में चुनाव होने है वहां भाजपा हाई कमान अलग-अलग गुप्तचर संस्थाओं और व्यक्तियों के माध्यम से उस प्रत्येक जानकारी को एकत्र कर रहा है, जिससे 20 सालों की अवधी में नेताओं द्वारा लिए गए भ्रष्टाचार, अवैध जनसंग्रह, व्यक्तिगत महत्वाकांशा इत्यादि का प्रमाण मिल सके। फिलहाल राष्ट्र और मध्यप्रदेश दोनों ही राष्ट्रीय स्वयं संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के निशाने पर है। उम्मीद कि जानी चाही कि 2024 से 2029 का कार्यकाल इन्ही प्रयासों के जरिये सार्थक सिद्ध होंगे।