सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
राजस्थान की चिलचिलाती धूप में तीन दिन तक उदयपुर शहर के गली-गली में कांग्रेस के चिंतन शिविर की बहार बनी रही। पर जैसा की उम्मीद थी कि इस चिंतन शिविर से भी कांग्रेस को अन्य शिविरों की भांति कुछ नया प्राप्त नहीं हुआ। उल्टे क्षेत्रीय दलों की अस्मिता पर उनके अस्तित्व पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर कांग्रेस ने देश के कई राज्यों में गैर भाजपाई नेतृत्व को चुनौती दे दी। मंच से बोलते हुए संभवतः राहूल गांधी भूल गये कि जिन क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को वे विचारहीन कह रहे है उन्होंने ही पंजाब जैसे राज्य को कांग्रेस को दिन में तारे दिखा दिये है। 
चिंतन शिविर में पैदा हुआ यह विवाद यह स्पष्ट कर गया है कि डूबती हुई कांग्रेस की नाव में अहंकार की कोई कमी नहीं है। जो रेखा चित्र कांग्रेस हाई कमान के सामने प्रस्तृत किया जा रहा है उसमें राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प केवल कांग्रेस दिखाई जा रही है। पिछले वर्षो में लगातार मिल रही नाकामी से भी कांग्रेस ने कोई सबक सिखा है ऐसा लगता नहीं है। चिंतन शिविर में स्वयं  कांग्रेस के नेता कांग्रेस के नेतृत्व को ढूंढ रहे थे। लगातार प्रश्न उठ रहे थे नेता सोनिया गांधी है राहूल गांधी है या प्रिंयका गांधी है। गांधी परिवार के अतिरिक्त कांग्रेस का कोई और नेता हो सकता है इस बात चर्चा तक चिंतन के दौरान नहीं हो सकी। धुले कपड़ों में देश भर से आये कांग्रेसी अपने एलबम के लिए बड़े नेताओं के साथ मिलते-जुलते हुए फोटो खिचवा रहे थे, शायद इसी का नाम चिंतन था।
इस शिविर में बहुत दिन बाद कांग्रेस को महंगाई, बेरोजगारी और अन्य आम आदमी के मुद्दों पर चर्चा करने की याद आई। कांग्रेस ने एक कार्यक्रम घोषित किया जो कांग्रेस के नाजुक नेताओं के सेहत के अनुसार गर्मी और बारिश के महीनें बीत जाने के बाद 2 अक्टूबर से प्ररंभ किया जाना तय किया गया है, यह कार्यक्रम कश्मीर से कन्याकुमारी तक पद यात्राओं के रूप में होगा। इस कार्यक्रम को घोषित करने के पहले कांग्रेस को अपने बड़े कहे जाने वाले षडयंत्रकारी नेताओं का मेडिकल परिक्षण करा लेना था कि क्या वे सड़क पर एक किलो मीटर भी बिना गाड़ी और बिना एसी के चलने योग्य है। ऐसा न हो कि 2 अक्टूबर से शुरू होने वाला यह एक इतिहासिक आयोजन पद यात्रा के स्थान पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की हेलिकाप्टर यात्रा में बदल जाए। वस्तुतः कांग्रेस को भारत और उसकी गरीबी को हवाई मार्ग से देखना और तोलना उसे अच्छा लगता है ।
चिंतन शिविर में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपील की कि पार्टी खातिर और देश की खातिर कांग्रेस को एकजुट होकर मुद्दों की राजनीति करनी होगी। कुछ मिनिटों तक चला यह भाषण पंडाल में कोई जोश पैदा कर पाया ऐसा नहीं था। सामान्य श्रोता की तरह कांग्रेस के बड़ें और छोटे लगभग 500 नेताओं ने सोनिया गांधी और राहूल गांधी के भाषण की औपचारिकताओं को ग्रहण किया। चिंतन शिविर तीन दिन तक क्यों हुआ था और उसके बाद कांग्रेस ऐसे कौन से परिवर्तन करने वाली है जिससे सरस्वती नदी की तरह लुप्त हो रही कांग्रेस को पुनः जीवन की धारा मिल सके। कांग्रेस के बहुसंख्यक सदस्यों ने इसे एक बेहतर मिलने अवसर माना है, कई वर्षो बाद कांग्रेस के कई नेता एक दूसरे से प्रत्यक्ष और जीवित मिले। नई राजनीतिक धारा के अनुरूप नये विचारों का आदान-प्रदान हुआ और नये षडयंत्रों का जन्म भी। शिविर में शामिल हुए लोगों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री गेहलोत द्वारा की गई आवभगत और खाने पिने की व्यवस्थाओं का भरपूर आनंद लिया। यह बात अलग है कि सुविधाओं से युक्त इस चिंतन शिवर से भारत के उस आम आदमी को कुछ नहीं मिला जो गरीबी और महंगाई के बोझ से लगभग पूरा झुक चुका है। शेष दो बचे हुए कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस बेहतर व्यवस्थाओं और खाने पिने के इंतजाम के साथ निकट भविष्य में फिर बिना विषय के चिंतन करेगी, इसकी पूरी उम्मीद की जानी चाहिए।