कांग्रेस चिंतन शिविर - केवल दिखावा मात्र है
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): राजस्थान के उदयपुर शहर में कभी भारत का नम्बर-वन कहे जाने वाले राजनैतिक दल कांग्रेस का एक चिंतन शिविर कल से प्रारम्भ हो रहा है। चार सौ से अधिक कांग्रेस के दिग्गज नेता इस चिंतन शिविश विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस के भविष्य पर और राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर स्वयं के चिंतन को प्रगट करेंगे। चिंतन शिविर की अध्यक्षता कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं कांग्रेस का भविष्य कहे जाने वाले राहूल गांधी करेंगे, प्रियंका गांधी भी इस चिंतन शिविर मे उपस्थित रहेंगी।
कांग्रेस इस विषय पर चिंतन कर रही है वह मुद्दा बहुत विस्तृत है। भोपाल के युवक कांग्रेस द्वारा अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में किये गये प्रदर्शन में कांग्रेसी युवा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति यह संकेत देती है। विपक्ष शाषित राज्यों में कांग्रेस का जनाधार क्या है, थोड़ा बहुत उधम मचा लेने से या हल्ला मचा लेने से जनमत के साथ नहीं जोड़ा जा सकता इस तथ्य को कांग्रेस भूल चुकी है। राजस्थान कांग्रेस शाषित प्रदेश है, चिंतन के लिए और चिंतन में आये हुए विद्वानों के लिए राजस्थान की झूलसाने वाली गर्मी के बीच सभी सुविधाएं वातानुकुलित उपलब्ध कराना राज्य सरकार दायित्व है। जिसे राजस्थान की गेहलोत सरकार जनता द्वारा इकट्ठा किये गये कोष से पूरा करेगी। चिंता की परेशानियों को कम करने के स्थान पर करोड़ो रुपये का यह मजमा लगाना कांग्रेस के लिए भले ही चिंता का विषय न हो पर इससे जनमत इकट्ठा नहीं होता।
जिस वातावरण में कांग्रेस आज सास ले रही है वह धार्मिक आधार पर निर्मित है। राजस्थान वैसे भी इन दिनों आन्दोलनों और कर्फ्यू मध्य फंसा हुआ है और प्रदेश का आम जनमानस महगाई बेरोजगारी और कर्फ्यू के कारण बूरी तरह प्रताड़ित है। ऐसी स्थिति में यह चिंतन शिविर घावों पर मरहम का काम तो नहीं करेगा बल्कि आम आदमी के मध्य कांग्रेस की विलासिता के प्रति एक दुर्भावना जरूर पैदा करेगा।
चिंतन शिविर से क्या निकलने वाला है वह सबको भंलिभांति ज्ञात है। नेतृत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करना और अपना झूठा विश्वास नेतृत्व के साथ व्यक्त करना इस तरह के मजमों की एक औपचारिकता होती है, जिसका आम व्यक्ति के साथ कोई सरोकार नहीं है। वैसे भी कांग्रेस में विचारवान नेताओं की परम्परा लगभग समाप्त हो गई है, कांग्रेस आजादी के संघर्ष में यदि महात्मा गांधी के भरोसे नहीं होती तो शायद आजादी के 70 साल बाद तक आम जनता से झूठ बोलकर और कहानियां सुनाकर सत्ताधारी के रूप में शासन नहीं कर पाती। मूलतः कांग्रेस क्या है यह प्रश्न वर्तमान की राजनीति ने खोल कर रख दिया है।
कांग्रेस जानती है कि न सिर्फ उसे जिन्दा होना बल्कि बदलते राजनैतिक संदर्भो में उसे एक नई रणनीति को खोजना है, यह रणनीति चाटूकारों के भरोसे बनाई जा सकती है इसका प्रयास कांग्रेस कर रही है। लोकतंत्र में जनता की समस्याओं के प्रति किस बुनियादी ढांचे की जरूरत है जो वास्तविक संघर्ष दे सके इसका आभास कम से कम कांग्रेस को तो नहीं है। कांग्रेस देश में अपना नेतृत्व राहूल गांधी के भरोस चाहती है और राहूल गांधी में नेतृत्व के वे बुनियादी गुण नहीं है जिनकी आवश्यकता भारत में है। स्वयं राहूल गांधी सुधरना नहीं चाहते या कांग्रेस के लोग उन्हें सुधरने ही नही देना चाहते। पारिवारिक प्रष्ठभूमि के भरोसे सोदागरों के एक बड़ी जमात कांग्रेस के वर्तमान में चिंतन शिविश जैसे कार्यक्रमों में इत्र लगाकर सर झुकाकर खड़ी नजर आती है। वस्तव में यह चिंतन शिविर एक दिखावा है जिसकी वास्तिविकता को शायद कांग्रेस कभी नहीं समझ सकें।