कार्यकर्ता असंतोष से पीड़ित है - कांग्रेस और भाजपा
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): यदि किसी तरह से जमीनी प्रबंधन के माध्यम से भाजपा मध्यप्रदेश में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो क्या पांचवीं बार पुनः शिवराज सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनकर पार्टी का नेतृत्व करेंगे। यदि नहीं तो फिर वह कौन सा चेहरा होगा जो मध्यप्रदेश में भाजपा की संस्कृति और संघ के परम्पराओं को जीवित रख पाने में सक्षम होगा। क्या भाजपा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश में अनु. जाति, जनजाति वर्ग के किसी संभवित नेतृत्व को पैदा करके एक बड़ी राजनैतिक चाल चल सकती है जिसका जवाब कांग्रेस के पास नहीं है।
प्रतिपक्ष के नेता डॉ. गोविन्द सिंह द्वारा दिया गया आज का बयान स्पष्ट करता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ योजना निर्माण के इस कार्यकाल के दौरान प्रदेश से बाहर है। यह कांग्रेस की गंभीरता को दिखाने के लिये प्रयाप्त है, इन स्थितियों में कांग्रेस के प्रत्येक कार्य और योजना की जिम्मेवारी दिग्विजय सिंह के कंधो पर आ पड़ी है। इन स्थितियों में पूरी कांग्रेस यह पूछ रही है कि आखिर चुनाव किसके मार्गदर्शन और निर्देश पर लडे़ जाने है। कांग्रेस की सरकार यदि गलती से बन जाती है तो क्या 15 महीनों का इतिहास पुनः जिवंत हो उठेगा। जहां सचिवालय की पांचवीं मंजिल पर बैठे कमलनाथ प्रतिकात्मक रूप से मुख्यमंत्री होंगे और पूरी कांग्रेस और उसकी सरकार दिग्विजय सिंह के बंगले से संचालित होगी, इन स्थितियों के लिए संभतः कांग्रेस अब तैयर नहीं है। यही कारण है कि अभी से ही कई प्रश्नवाचक चिन्ह कांग्रेस की राजनीति में तैरने लगे है, कांग्रेस स्थाई राजनीति कर रही है ऐसा लगता नहीं है। आंतरिक असंतोष कब फूटेगा इसकी गणना अभी संभव नहीं है, पर यह तय है कि अपने स्वार्थ के लिए भीतरघात होगा जिसका परिणाम 2023 में कांग्रेस को भुगतना होगा।
दूसरी और भाजपा में कार्यकर्ताओं का असंतोष चरम पर है, कयास यह लगाया जा रहा है कि यदि भाजपा चुनाव जीती तो शिवराज पांचवीं बार प्रदेश नेतृत्व संभालेंगे क्या। वर्तमान में बीडी शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव और अन्य कई नेता स्वयं को मुख्यमंत्री के रूप में आईने में देख रहे है। इन स्थितियों में अंतरविरोध की धारा सारे सामन्जस्य दिखाने के बाद भी अंदर ही अंदर सुलग रही है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश अमित शाह और नरेन्द्र मोदी के लिए इस समय सबसे जरूरी है। देश में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में यदि मध्यप्रदेश साथ नहीं रहा तो इसका असर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे पडोसी राज्यों पर पड़ना तय है, भाजपा किसी भी स्थिति में 2024 को खोना नहीं चाहती।
इन स्थितियों में भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई में कार्यकर्ताओं के मध्य उपेक्षा के कारण पनप रहा असंतोष चिंता कारण हो सकता है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपस्थिति उनके समर्थक मंत्री और नेताओं के कारण राजनीति में विपरित प्रभाव डाल रही है। सिंधिया के मंत्री भाजपा में स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर है और उन्हे उनके विभागों में ही उचित अधिकार प्राप्त नहीं है। दूसरे शब्दों में कहे तो कांग्रेस जाति समुदाय से अलग हुए इन लोगों की प्रतिबधता केवल सिंधिया के प्रति है भाजपा के प्रति नहीं। इस बात का एहसास भाजपा के लोगों को भी भंलभांति हो रहा है और यही कारण इन दोनों गुटों में उचित सामन्जस्य बनाने में बाधक है।
आगामी विधाससभा चुनाव के पहले भाजपा मध्यप्रदेश के नेतृत्व में अनु जाति, जनजाति का नेतृत्व पैदा करने की एक नई कोशिश कर परिवर्तन को स्थाई बनाने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है। यदि ऐसा होता है तो राज्य में जातिय संख्या के आधार पर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का यह अभिनव प्रयास होगा, जिसके परिणाम कांग्रेस के लिए भी आश्चर्यजनक हो सकते है।