सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है और उसके कार्यकर्ता पार्टी के प्रति कितने ईमानदार है, इसके प्रत्यक्ष परिणाम देखने को मिलने लगे है। ग्वालियर में कांग्रेस को सक्रिय करने के लिए एक बड़ी बैठक का आयोजन किया जाना प्रस्तावित है, इस बैठक की अध्यक्षता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्गिविजय सिंह करेंगे। नेता प्रतिपक्ष सहित कई विशिष्ट व्यक्तियों को ग्वालियर की एक बडी वातानुकुलित होटल में बुलाया गया है, जहां राजा दिग्गिविजय सिंह महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगामी चुनाव में पटखनी देने संबंधी योजना को बनायेंगे। स्मरण रहे कि विजय के लिए इस योजना का क्रियान्वयन आम जनता के मध्यम खुले मैदान में होना है। इसके बावजूद बैठक के लिए आलीशान व्यवस्था कर कांग्रेस अभी से अपने वरिष्ठ नेताओं को कष्ट देना नहीं चाहती।
दूसरी और आष्टा से कांग्रेस से पलायन की पहली ख़बर आई है। राज्य भर में इस समय भाजपा कांग्रेस के उन कार्यकताओं और नेताओं की गंभीरता से खोज कर रहे है जो प्रभावशाली है और भविष्य में किसी भी तरह से कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवारी का दावा कर सकते है। यह संकेत मिलने शुरू हो गये है कि कांग्रेस से टिकिट लेने वाले उम्मीदवरों की एक बड़ी संख्या धन-बल, व्यक्तिगत प्रभाव या अपने सम्पर्को के आधार पर टिकिट तो हासिल कर लेगी, पर चुनाव प्रक्रिया के चलते यह टीम कांग्रेस के पक्ष में ही निष्क्रिय रह कर विरोधी दल को जीतने का पूरा अवसर प्रदान करेगी।
ख़बर तो यह भी है कि कांग्रेस में सही समय पर विखण्डन की यह प्रक्रिया अभी होना शेष है। जिसमें राज्य के उपेक्षित पडे़ हुए कई बड़े नेता भाजपा या आम आदमी पार्टी की और रूख कर सकते हैं, वास्तव में कांग्रेस में आंतक धीरे-धीरे बड़ता जा रहा है। प्रदेश संगठन में दिग्गिविजय सिंह की सक्रियता के बाद कांग्रेस के स्वरूप को अब राजा की दृष्टि से जातिगत आधार पर भी विश्लेषित किया जा रहा है। कार्यकर्ताओं के मध्य गुटबाजी से अलग हटने की कोई पक्रिया कहीं भी शुरू नहीं हो रही है, वास्तव में कांग्रेस सम्पूर्ण कांग्रेस बनने की दिशा में अग्रसर ही नहीं है। 
प्रत्येक कार्यकर्ता को यह मालुम है कि कमलनाथ की उपस्थिति में चुनाव लड़ने के लिए फंड की कोई दिक्कत नहीं होगी, पर कार्यकर्ता अभी से इस बात के लिए भी शसंकित है कि इस बार के निर्वाचनों में कांग्रेस से टिकिट लेने के लिए उसे कितना व्यय करना पड़ेगा। कमलनाथ द्वारा राज्य में निरन्तर सर्वे कराया जाता है, राजनैतिक विश्लेषक अभी तक यह नहीं समझ पाये कि सर्वेक्षण में आम कार्यकर्ता और आम मतदाता की विचार धारा मे आ रहे क्रमिक परिवर्तन कमलनाथ तक क्यों नहीं पहुंच पाते हैं। वैसे भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमैटी द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि या प्रभारी महामंत्री राज्य में केवल राजनैतिक औपचरिकता पूर्ण करते है, उनका कोई राजैनेतिक अस्तित्व निर्देशों के रूप में राज्य में प्रभावी नहीं होता। 
आने वाले विधानसभा चुनाव राजा और महाराजा के मध्य होने वाले युद्ध और दोनों की प्रतिष्ठा और अहंकार की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। वैसे भी महाराज कहे जाने वाले सिंधिया अपनी पद की गरिमा से निचे उतर कर भाई साहब बन जाने के बाद भी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से बाहर अपना अस्तित्व नहीं बना पा रहे है। मंत्रिमंडल में शामिल उनके सहयोगी विधायक अब स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। फिर भी कांग्रेस के राजा और भाजपा के महाराज के मध्य आगामी विधानसभा का चुनाव लड़ा जाना है। जिसमें कम से कम कांग्रेस को तो आम मतदाता की जरूरत या परेशानी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है और नाही कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभा पा रही है। परिणाम यह है कि कमलनाथ के सारे प्रयास भविष्य की राजनीति में संकट में पड़ते नज़र आ रहे है और निर्वाचन एक तरफा होने की दिशा में जा रहा है।