सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी के अवतरण में अब राजनैतिक मुद्दों और राजनीति की परिभाषा को परिवर्तित करना शुरू कर दिय है। आजादी के बाद से किसी न किसी रूप में जाति व धर्म को आधार बनाकर निर्वाचन पक्रिया को प्रभावित करने पर काम करने वाले राजनैतिक दल भी अब सचेत हो रहे है कि आम आदमी के मुद्दों से अलग हट कर भविष्य में किसी राजनीति की संरचना करना मुश्किल होगा। देश के दो राज्य दिल्ली और पंजाब में जिस तरह आम आदमी पार्टी ने बिजली, पानी, भ्रष्टाचार, शिक्षा और बुनियादी मुद्दों को हथियार बनाया है उसके परिणाम स्पष्ट नजर आने लगे है।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में देढ़ साल बाद होने वाले चुनावों के मुद्दों की खोज में लगी हुई भाजपा और कांग्रेस को मजबूर होकर आम आदमी के मुद्दों की और अपना सारा ध्यान केन्द्रित करना पड़ रहा है। किसानों की कर्ज माफी हो शिक्षा, स्वास्थ और बेरोजगारी जैसे मुद्दे हो, इन्हें राष्ट्रीय दल हमेशा से द्वितीयक मानते रहे हैं। मूल रूप से चुनाव लड़ने के लिए मतदाता के समग्र विचार को बुनियादी मुद्दों से दूर ले जाकर कहीं धर्म-जाति पर केन्द्रित कर दिया जाता था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने यह बहुत पहले प्रमाणित कर दिया था कि हवाई राष्ट्रीय मुद्दों और भड़काने वाले भाषणों से अब आम मतदाता ऊब चुका है। अपने प्रतिदिन की परेशानियों कोे हल होता हुआ न देख अब वह अजीब तरह की बैचेनी का अनुभव कर रहा है। आज कांग्रेस अपने प्रचार अभियान की योजना चलाती है तो सबसे पहले किसानों की ऋण माफी को प्राथमिकता देती है। इतना ही नहीं आम आदमी समस्याओं के प्रति भी कांग्रेस के नेता बडे़-बड़े वायदे योजना बनाने के साथ करते है।
यही परिणाम है जो एक दिन देश की लोकतांत्रिक परिक्रिया को आम आदमी की समस्याओं के निवारण के लिए बाध्य कर देगा। भारतीय जनता पार्टी अपनी राजनीति का केन्द्र धार्मिक आधार पर बनाती है पर संभवतः वह भी अच्छी तरह से समझ चुकी है कि बहुत लम्बे समय तक आम आदमी की बेचैनी का सामना वह नहीं कर पायेगी। कहते है लोकतंत्र में एक बार मतदाता जागरूक हो गया तो वह बड़ी से बड़ी सत्ता को उखाड़ फेकता है। आर्थिक आधार पर कमजोर पड़ा हुआ आम आदमी अब पेट्रोल और बाजार की कीमतों को ऊपर जाता हुआ देख कर अपनी मजबूरी और हीनता पर स्वयं रो रहा है। मतदाता को सिर्फ इनता जानना शेष है कि इन्ही राजनैतिक दलों ने झूठ बोल कर पांच साल के लिए उससे सत्ता ली थी और सत्ता मिलते ही ये कार्पोरेट की गोद में जाकर बैठ गये थे। इन राजनैतिक दलों का कोई भी सरोकार आम आदमी के साथ पांच सालों की अवधि के दौरान नहीं रहा। मतदान करने के पांच साल तक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों की प्रताड़ना को झेलना अब आदमी के लिए एक परेशानी का विषय बन चुका है। 
इसी बीच आम आदमी पार्टी ने अपने राजनैतिक एजेंडे में न सिर्फ आम लोगों की बेचैनी को शामिल किया बल्कि पहले दिल्ली और बाद में पंजाब में भी समस्याओं के निवारण की ठोस पहल करना शुरू कर दी। बड़े राजनैतिक दल भले ही न माने कि यह परिवर्तन एक बड़ी आंधी की शुरूआत है, पर यह तय है कि बड़े दलों की बुनियाद में भी अब आम आदमी के जागरूक होने से एक कम्पन महसूस होने लगा है। नये युग में राजनीति बदल रही है और संभवतः यह पीढ़ी झूठे वायदे और साम्प्रदायिक राजनीति से परे हट कर वास्तव में विकास की अवधारणा को सत्य सिद्ध होता हुआ देखना चाहती है। यदि यह सच है तो आने वाले दिनों में राजनीति के स्थापित दल स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे और एक नई संवाद की राजनीति का आरंभ होगा जिसकी डोर आम मतदाता के हाथ में ही होगी।