राष्ट्रीय नेता को - राज्य में कैद नहीं किया जा सकता
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): मध्यप्रदेश की राजनीति में शक्ति परिक्षण करने के उपरांत क्या कमलनाथ अब राष्ट्रीय राजनीति ही करेंगे। राज्य के पूर्व मंत्री एवं कमलनाथ के विश्वस्त रहे सज्जन सिंह वर्मा का दावा यही कहता है। वास्तव में मध्यप्रदेश की राज्य राजनीति में कमलनाथ के अवतरण के बाद से यह धारणा मजबूत रही है कि उनके जैसे राष्ट्रीय सोच वाले नेता मध्यप्रदेश की जमीनी राजनीति का संचालन नहीं कर सकते। कमलनाथ पूरे देश में प्रबंधन की राजनीति के शीर्ष पुरुष हैं, उन्हें राजा बनने के स्थान पर राजा बनाने का व्यापक अनुभव है। इसके साथ ही अपनी अन्तराष्ट्रीय छवि के कारण उनकी सोच का दायरा भी राज्यों की सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता।
राज्य की राजनीति एक खाटी विषय है। इसमें उतना ही समय देना पड़ता है, उतना ही बारीकियों को समझना पड़ता है और बिना कम्प्यूटर या उपकरण का सहारा लिये अपनी सुविधा अनुसार अलग-अलग व्यक्तियों का राजनैतिक उपयोग स्वयं सुनिश्चित करना होता है। कार्पोरेट राजनीति की तरह व्यक्तियों का उपयोग करके फेंक देना राज्य की राजनीति में वर्जित है। छोटे से छोटा उपक्रम राज्य की राजनीति पर थोड़े प्रयासों के बाद बड़ा असर डाल सकता है। इस तथ्य को वही समझ सकता है जो खुले मैदान में खुले आसमान के निचे कार्यकर्ताओं, पत्रकारांे और समाज सेवियों के मध्य घंटों का समय तथ्यों को समझने में गुजार सकें।
मध्यप्रदेश जहां हर 100 किलो मीटर पर भाषा, संस्कृति, रहन-सहन और राजनीति बदल जाती है, केवल एक छिन्दवाड़ा जिले के मूल्यांकन के आधार पर संचालित नहीं हो सकता। इस राज्य की राजनीति को संचालित करने के लिए लोगों पर विश्वास करना होता है, अपनी स्वयं की एक विश्वस्त टीम तैयार करनी होती है और ढ़ेर सारी छोड़ी-बड़ी योजनाओं को सुनकर समझकर उचित समय में उनका क्रियान्वयन सुनिश्चत करना होता है। वास्तव में भिड़तंत्र को सहज कर समूह बना कर उसमें एक अनादिकृत किन्तु शक्तिशाली नेतृत्व पैदा कर मध्यप्रदेश की राजनीति को संचालित किया जा सकता है।
आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसान ऋण माफी जैसे पुराने मुद्दे को पुनः हथियार बनायेगी ऐसा दावा कमलनाथ है। 15 महीनों के दौरान जितने भी कर्ज माफ हुए उनकी सुचनाएं स्वयं कमलनाथ के पास पेन ड्राइव में सुरक्षित है। जमीनी रूप से देखे तो किसी भी किसान संगठन या किसानों के समुहों ने सार्वजनीति रूप से ऋण माफी के लिए कभी कोई धन्यवाद ज्ञापित करने का आयोजन कमलनाथ की उपस्थिति में नहीं किया। यह माना जा सकता है कि ऋण माफ हुए होंगे परंतु उसकी प्रतिक्रिया क्या हुई, इसका संदेश समाज मे क्या गया इसका प्रत्यक्ष प्रमाण कही नहीं मिलता। कुछ चाटुकारों के मुह से ऋण माफी की तारीफ सुनकर उसे सफल मान लेना अनुचित है।
कांग्रेस अपने स्वरूप को बदलकर इस चुनाव में एक बार पुनः भाग्य अजमा रही है। प्राप्त संकेत यह कहते है कि यह चुनाव दिग्गिविजय सिंह की कांग्रेस और मोदी की भाजपा के माध्य राज्य में होने जा रहा है। कांग्रेस के अन्य गुट दर्शकदिर्घा में केवल तालियां बजाने के लिए उपस्थित रहेंगे। दूसरी और मोदी की भाजपा के विजय के लिए उनके दल के भविष्य के मुख्यमंत्री के पद के प्रत्याशियों की एक बड़ी संख्या खड़ी होगी। कांग्रेस जहां पिछले चुनाव में उपयोग किये गये भीड़ माफी औजार को फिर उपयोग करेगी। वहीं भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे हिन्दूवादी कार्यक्रमों को बल देते हुए कई सरकारी योजनाओं का उपयोग चुनाव के दौरान करेगी। सबसे बड़ी बात एक जूट बनाई जा रही कांग्रेस जहां अलग-अलग गुटों में बट कर भी संयुक्त होने का प्रयास करेगी। वहीं भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी इज्जत को सुरक्षित रखने के लिए संयुक्त रूप से प्रचार करेगी। भविष्य के परिणाम को उपरोक्त आकलन के आधार पर व्यवहारिक रूप से समझा जा सकता है, शेष मध्यप्रदेश के मतदाताओं के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।