सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बढ़ती हुई सरगर्मी अब राजनैतिक दलों में संगठात्मक परिवर्तन की और जा रही है। कांग्रेस ने यह तय कर लिया है कि पुरानी पीढ़ी के भरोसे ही मध्यप्रदेश में एक बार सत्ता की स्थापना की जायेगी। सबसे रोमांचक पहलू यही है कि मध्यप्रदेश के वरिष्ठ किन्तु विवादास्पद रहे नेता ही अब अग्रिम पंग्ति में आकर संगठन की एकता और सक्रियता को पुनः मजबूत करेंगे। इस प्रयोग से यह संकेत मिलता है कि अखिल भरतीय स्तर पर कांग्रेस का हाई कमान अभी सुधरा नहीं है, बल्कि परम्परागत शैली की राजनीति को ही अपनी आर्थिक मजबूरियों के कारण आश्रय दे रहा है।
कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में अपनी गतिविधियों को कागज़ी तौर पर विस्तार देने की अपनी कोशिशे प्रारंभ कर दी है। सबसे बड़ा परिवर्तन यह है कि कांग्रेस के संगठात्मक ढ़ांचे को बनाने, संचालित करने और सुधारने की जिम्मेवारी प्रदेश अध्यक्ष कामनाथ के निर्देश पर अब लगभग दिग्गिविजय सिंह के हाथों सौप दी गई है। गुना और ग्वालियर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया का व्यापक प्रभाव है और भाजपा की दृष्टि से ये क्षेत्र भाजपा के लिए अधिक मजबूत है में मुकाबला राजा और महाराजा के बीच तय कर दिया गय है। सिंधिया को अपनी साख बचाने के लिए इस क्षेत्र
में दिग्गिविजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस का सामना करना पडेगा। राजनीति के जानकार यह मानते है कि गुना क्षेत्र को छोड़ दे तो शेष ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया दिग्गिविजय सिंह से अधिक प्रभावी है। स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के युग से है कांग्रेस की प्रत्येक विजय का सेहरा सिंधिया राज परिवार के सर पर ही बंधता रहा है। इस क्षेत्र में कांग्रेस बिखरी हुई है जातिगत आधार पर बटी हुई है और कार्यकर्ताओं का मनोबल ग्वालियर किले के प्रति उनके पूर्वजों द्वारा व्यक्त की गई निष्ठा के कारण आज भी संगदिग्ध है।
दिग्गिविजय सिंह प्राप्त जानकारी के अनुसार पांच सालों के बाद पुनः कांग्रेस हाई कमान की टीम के सदस्य बना लिये गये है। अब उन्हें वे समस्त जिम्मेवारियां और जानकारियां सीधे प्राप्त करने के आधिकार है जो पिछले गोवा चुनाव के दौरान उनकी संगदिग्ध गतिविधियों के कारण बाधित कर दी गई थी। वास्तव में ये दिग्गिविजय सिंह की जीत है जो गोवा जैसी बडी राजनैतिक घटना के बाद भी उनकी वापसी कमजोर हाई कमान के समाने एक मजबूरी बन गई। कांग्रेस में पुनः कमलनाथ और दिग्गिविजय सिंह की रणनीति पर चलने का निर्णय किया है। इस राजनीति के दो भाग है, पहला कमरा बंद बैठकों और योजनाओं पर प्रबंध की राजनीति को कमलनाथ संचालित करेंगे और खुली हवाओं में कार्यकर्ताओं के मध्य कांग्रेस को सक्रिय बनाने का कार्य दिग्गिविजय सिंह करेंगे। शेष सारा नेतृत्व इन दोनों के आधीन ही निर्देशों पर कार्य करेगा। कांग्रेस हाई कमान राज्य की राजनीति के लिए इन दोनों शीर्ष पुरुषों पर ही विश्वास करेगा।
राजनीति के जानकार मानते है कि पूरे प्रदेश में बिखरी हुई कांग्रेस को एकत्र कर पाना संभव नहीं है। जहां कांग्रेस के छोटे कार्यकर्ता और स्थानीय नेतृत्व भाजपा के प्रभावी नेताओं के साथ सहभागिता से व्यवसाय संचालित कर रहा है, वहां इस तरह की गतिविधि का स्वतंत्र रूप से पार्टी के पक्ष में संचालित हो पाना असंभव है।
वैसे भी दिग्गिविजय सिंह के दिशा निर्देशों पर कांग्रेस का सामान्य कार्यकर्ता ही निर्देश जारी करने के विरुद्ध कई प्रश्न खड़े कर सकता है। दूसरी और यह राजनीति पार्टी के लिए नहीं हो रही है बल्कि अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए और भविष्य के युवा नेताओं को बरगलाने के लिए हो रही है यह बात भी आम कार्यकर्ता को पूरी तरह स्प्ष्ट है। ऐसी स्थिति में एक गंभीर राजनीतिक संरचना का हो पाना अंसभव कार्य है। पीढ़ियों के बदलावों में वैसे भी निष्ठा और वचन बद्धता की राजनीति को समाप्त कर दिया है। जाती हुई पीढ़ी अपने परिवार के स्वार्थ के लिए राजनीति कर रही है तो आने वाले पीढ़ी सीधे युद्ध करके अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए तटीबद्ध है। इन स्थितियों में भी कांग्रेस हाई कमान को परम्परागत राजनीति ही बेहतर नजर आती है इसे कम से कम कांग्रेस को तो सौभाग्य तो नहीं कह सकते।