सीधी में पुलिस का अमानवीय चेहरा
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): अपने राजनैतिक आकाओं को संतुष्ट करने के लिए अब मध्यप्रदेश की पुलिस भी कानून और कायदों से अलग जाकर रचनाकर्मियों, पत्रकारों और साहित्यकारों के विरुद्ध अपमानजनक दंड प्रावधानों का प्रयोग करने में पीछे नहीं रहती है। बेशर्मी के साथ पुलिस के जिम्मेवार अधिकारी और कर्मचारी इन अपमानजनक गतिविधियों को कानूनी और तर्क संगत बताकर कार्यवाही को उचित ठहराने की कोशिश करते हैं। प्रशासन किस हद तक बेलगाम हो रहा है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पिछले दिनों सीधी में हुए एक हादसे से स्पष्ट हुआ। थाना प्रभारी और पुलिस का उच्च अधिकारी पत्रकारों और रचनाकर्मियों को बेवजह पिटने और उन्हें वस्त्रहीन कर थानें में परेड निकाले की प्रक्रिया को सुरक्षात्मक दृष्टि से अनिवार्य बताता हुआ अपना तर्क दे रहा है।
किसी घटना की कानूनी विवेचना करना और उस पर निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही करना पुलिस और प्रशासन का काम है। सीधी जिले में एक फर्जी आईडी के माध्यम से लिखी गई किसी घटना के विरोध में हुई प्रतिक्रिया के बाद सीधी पुलिस ने जिस तरह पत्रकारों, रचनाकरों, समाजसेवियों को वस्त्रहीन कर न सिर्फ थाने में परेड कराई बल्कि इन वस्त्रहीन लोगों के फोटो को अपनी बहादूरी दिखाते हुए वायरल भी कर दिया। यह समुचा घटनाक्रम जिला के एक नेता को संतुष्ट करने और उसके बेटे को वीआईपी कल्चर के तहत सम्मान देने के लिए पुलिस द्वारा किया गया। प्रश्न यह उठता है कि नियम कानूनों से अलग हटकर मध्यप्रदेश के वर्दीधारी और कानून संरक्षित कर्मियों द्वारा जो आचरण किया गया उसे किस हद तक न्याय संगत माना जाए। घटना होने के उपरांत पुलिस के थाना प्रभारी और वरिष्ठ अधिकारी का बयान अत्यंत अशोभनीय और निंदा जनक है कि इन लोगों नग्न इसलिए किया गया कि कही ये लॉकअप में उपलब्ध कपड़ों के माध्यम से फाँसी लगाने की कोशिश न करें।
यह समूची घटना बताती है कि नेताओं की चापलुसी में हाथ बांधकर खड़े रहने वाले पुलिसकर्मी आज दिमागी रूप से कितने पंगु हो चुके है कि उन्हें अपनी मर्यादाओं का स्वयं ध्यान नहीं रहता। पुलिस आम व्यक्ति की सुरक्षा के लिए है न कि किसी विशिष्ट व्यक्तियों के जूते उठाने के लिए। पुलिस को यदि अपना गौरव कायम रखना है तो सीधी के थाना प्रभारी सहित पुलिस के उच्च अधिकारी को सेवा से प्रथक कर देना चाहिए और आंतक कायम करने वाले पुलिसकर्मियों को आजीवन किसी मैदानी पदास्थापना से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए। सीधी जिले में हुयी यह घटना पुलिस के माथे पर कलंक है। जहां एक और शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में कानून राज होने का दावा करते है और मध्यप्रदेश की पुलिस को अनुशासनप्रिय घोषित करते है। वहीं दूसरी और सीधी जिले की घटना पुलिस की उददंडता और गुण्डागर्दी का एक जीता जागता प्रमाण है।
सीधी की इस घटना से शांत रहने वाले समूह रचनाकारों, कथाकरों, पत्रकारों और समाज सेवकों भी यह सबक ले लेना चाहिए कि किसी भी अनुचित वारदात का विरोध करने का साहस अब उन्हें नहीं करना चाहिए। दूसरे अर्थो में सरकार की प्रत्यक कानूनी या गैरकानूनी गतिविधि का विरोध करना पुलिस के क्रोध को बढ़ा सकता है और इस बढ़े हुए क्रोध का विरोध करने के लिए राज्य का कोई भी विपक्षी नेता उनका सहयोगी नहीं बनेगा ये उन्हें मान लेना चाहिए। मध्यप्रदेश में कानून की परिभाषा प्रभावी या अप्रभावी, विशिष्ट और आतिविशिष्ट श्रेणी में बटने के बाद अब क्षेत्र में भी जातिय प्रभाव पर आधारित हो गई है। राजनीति प्रत्येक परिस्थिति का मूल्यांकन करती है और उसके अनुसार ही पुलिस और प्रशासन अपना व्यवहार तय करते है। मूल रूप से समझा जाए तो प्रशासनिक शब्दावली बदल चुकी है। साथ ही राजनीतिज्ञों की चमचागरी करते हुए प्रशासन भी अब अपनी कमर को पूरी तरह झुका चूका है। इसलिए किसी भी तरह के न्याय या मानवीयता की उम्मीद करना व्यर्थ है।