सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
सूत न कपास और भविष्य में अधिकारों को प्राप्त करने के लिए खुला मैदानी दंगल कांग्रेस में इन दिनों यही चल रहा है। कांग्रेस हाई कमान ने पांच राज्यों में चुनाव परिणाम के बाद मध्यप्रदेश में थोड़ा ध्यान शुरू किया और हाई कमान के सामने अपने-अपने तर्क लेकर बिना जनाधार वाले बड़े नेता खड़े होने लगे। इन नेताओं से कोई पूछे कि राज्य में ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां ये अपनी राजनीति उपस्थिति के कारण 50 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्र में विजय दिलाने की गारंटी दे सकते है। अपने-अपने तर्को से ये नेता अपने राजनैतिक भविष्य को अंधेरे में जाने से बचा रहे है और यह दिखाना चाहते है कि यही मध्यप्रदेश का भला कर सकते है। कांग्रेस हाई कमान वैसे भी निर्णय लेने के मामले में बहुत कमजोर है, उसके पास कोई सोच कोई आधार नहीं है और हाई कमान ने स्वयं पंजाब जैसे निर्णय लेकर यह दिखा चुका है कि राजनीति में उसकी समझ किस कदर निचले स्तर की है।
मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ ऐसा ही होने जा रहा है जैसा पंजाब में हुआ था। कांग्रेस के युवा किंतु वरिष्ठ नेता अरूण यादव, अजय सिंह, राहुल भैया अब तक कांग्रेस हाई कमान से मिलकर कूटनीति की चर्चा कर चुके है। जो कांग्रेस का हाई कमान राजनीति को रजनीति के रूप में जानता हो उससे कूटनीति चर्चा करना कितना सार्थक रहा होगा इसे स्वयं समझा जा सकता है। मध्यप्रदेश की राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण फेक्टर के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्गिविजय सिंह ही माने जाते है। दिग्गिविजय सिंह इन दिनों राज्य में एक राजनैतिक धारा प्रभावित कर रहे है, चेतावनी भरे अंदाज में वे कार्यकर्ताओं को एक जुट रहने का संदेश दे रहे है तो यह चेतावनी भी दे रहे है कि कांग्रेस 2033 तक सत्ता में नहीं आयेगी जबतक सभी गुट एक नहीं हो जाए। 
दिग्गिविजय सिंह की यह चेतावनी सामायिक नहीं है यह चेतावनी देने वाला नेता स्वयं स्वीकार कर चुका है कि वो जिस विधानसभा क्षेत्र में प्रचार करने जाते है वहां कांग्रेस हार जाती है। इसके बवजूद यदि कांग्रेस 15 महीने के लिए सत्ता में आती है किसी भी विधानसभा में प्रचार न करने वाले दिग्गिविजय सिंह अघोषित रूप से 15 महीनों की सत्ता अघोषित मुख्यमंत्री के रूप में संचालन करते है, बल्कि कांग्रेस के टूट जाने का भी एक प्रमुख कारण बनते है। राजा-महाराज के बीच पीढ़ियों के बिच चली आ रही लड़ाई कांग्रेस के विभाजन के साथ समाप्त होती है और कांग्रेस विपक्ष में चली जाती है। 
यह स्पष्ट होता जा रहा है भविष्य की राजनीति पुनः एक ऐसे दौर में जहां भाजपा की केन्द्र सरकार द्वारा इनकम टेक्स और सीबीआई का भय कांग्रेस के नेतृत्व के हाथ बांध देगा और भारी जन समर्थन के बावजूद राज्य में कांग्रेस गुटबाजी का शिकार होकर पराजय की कगार पर पहुंच जायेगी।
वर्तमान में विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को चुनाव में जिस तरह की तैयारी करनी चाहिए उस शैली की तैयारी भाजपा कर रही है। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय अभी भी सुना पड़ा हुआ है राज्य में कांग्रेसी गतिविधियां शून्य है और कार्यकताग् पूर्व की भांति अपने दैनिक जीवन यापन के लिए विरोधी नेताओं की व्यस्था में लगा हुआ है। कांग्रेस खण्ड-खण्ड होकर टूटते जा रही है उसके पास पार्टी के लिए और योजना बनाने वाले लोगों का आभाव है। वास्तव में मध्यप्रदेश को प्रबंधन की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है जहां जाती हुई पीढ़ी अपने पुत्र और अपने व्यवसाय और दलाली की दीर्घ कालिक सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित है। कांग्रेस का हाई कमान पश्चिम बंगाल और पंजाब की तरह अस्तित्वहीन है चुनाव घोषित होने के बाद मुर्दा पड़ी कांग्रेस में अचानक जान आयेगी और कुछ क्षणों के लिए कम से कम अस्तित्व के लिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस अंतिम सांस जरूर लेगी।